बड़ी ख़बर : पूर्व मुख्यमंत्री का बेटा गिरफ़्तार, जानें क्या लगे आरोप?
Babushahi Bureau
नई दिल्ली | 20 July 2025 कहानी किसी सस्पेंस-थ्रिलर फिल्म जैसी है, लेकिन ये हकीकत है. प्रवर्तन निदेशालय (ED) ने छत्तीसगढ़ के सबसे बड़े 'शराब घोटाले' का कच्चा चिट्ठा खोलकर रख दिया है. इस घोटाले के तार सीधे राज्य के पूर्व मुख्यमंत्री भूपेश बघेल के बेटे चैतन्य बघेल से जुड़ रहे हैं, जिनकी गिरफ्तारी ने छत्तीसगढ़ की सियासत में भूचाल ला दिया है.
ED की चार्जशीट के मुताबिक, 2019 से 2023 के बीच छत्तीसगढ़ में शराब का व्यापार एक सरकारी नीति की आड़ में चल रही 'लूट की मशीन' थी. इस पूरे खेल का कथित किंगपिन पूर्व CM के बेटे चैतन्य बघेल को बताया गया है, जो न सिर्फ काली कमाई के तार जोड़ रहे थे, बल्कि उसे रियल एस्टेट में ठिकाने भी लगा रहे थे.
अफसरों की मिलीभगत, पूर्व मुख्य सचिव के संरक्षण में चलता था सिंडिकेट
ED ने जो खुलासा किया ہے, वो और भी चौंकाने वाला है. जांच एजेंसी का दावा है कि शराब सिंडिकेट के मुख्य किरदार— अनवर ढेबर, अनिल टुटेजा और अरुण पति त्रिपाठी— को राज्य के पूर्व मुख्य सचिव और रिटायर्ड IAS अधिकारी विवेक ढांड का संरक्षण मिला हुआ था. ED के मुताबिक, विवेक ढांड सिर्फ निगरानी नहीं कर रहे थे, बल्कि इस घोटाले में सीधे तौर पर लाभार्थी भी थे. यानी, अफसरों की मिलीभगत से एक संगठित गिरोह पूरे सिस्टम पर कब्जा कर चुका था.
घोटाले का 3-पार्ट फॉर्मूला: ED ने बताया कैसे काम करती थी ये लूट मशीन
ED के अनुसार, यह पूरा घोटाला तीन हिस्सों में बांटा गया था, जिससे करीब 2161 करोड़ रुपए की काली कमाई की गई.
1. पहला तरीका: हर पेटी पर सीधी वसूली
शराब बनाने वाली कंपनियों (डिस्टिलरीज़) से हर एक केस (पेटी) पर ₹75 की अवैध वसूली की जाती थी. यह पैसा सिंडिकेट की जेब में जाता था. इस तरीके से ₹319 करोड़ कमाए गए.
2. दूसरा तरीका: नकली होलोग्राम और अवैध शराब
यह सबसे बड़ा खेल था. नकली होलोग्राम लगाकर अवैध शराब बाजार में बेची जाती थी. 2022-23 में हर महीने 400 ट्रक बिना किसी सरकारी रिकॉर्ड के शराब ले जाते रहे. एक पेटी पर ₹3,880 वसूले जाते, जिसमें से सिर्फ ₹590 सरकार को मिलते और बाकी ₹3,000 सीधे काले धन में बदल जाते.
3. तीसरा तरीका: विदेशी शराब के लाइसेंस का खेल
विदेशी शराब की सप्लाई के लिए चुनिंदा कंपनियों को लाइसेंस दिए गए. इन कंपनियों ने पुरानी दरों पर शराब खरीदकर नई और ऊंची कीमतों पर बेची. इससे मिले ₹211 करोड़ के मुनाफे का 60% हिस्सा सीधे राजनीतिक आकाओं तक पहुंचाया गया.
रियल एस्टेट बना 'मनी लॉन्ड्रिंग लैब', शेल कंपनी से आए 5 करोड़
ED के मुताबिक, चैतन्य बघेल का रियल एस्टेट प्रोजेक्ट 'विठ्ठल ग्रीन' असल में एक "मनी लॉन्ड्रिंग लैब" था.
* चैतन्य की कंपनी को 'सहेली ज्वेलर्स' नाम की एक फर्जी कंपनी से ₹5 करोड़ मिले, जिसे लोन दिखाया गया.
* प्रोजेक्ट की लागत कागजों में सिर्फ ₹7.14 करोड़ दिखाई गई, जबकि असल में ₹13-15 करोड़ खर्च हुए.
* ठेकेदारों को ₹4.2 करोड़ का भुगतान कैश में किया गया.
कैश कलेक्टर का कबूलनामा- 'मैंने खुद 1000 करोड़ मैनेज किए'
इस घोटाले के कैश कलेक्टर लक्ष्मीनारायण बंसल उर्फ पप्पू ने ED के सामने एक चौंकाने वाला कबूलनामा किया है. उसने बताया कि ₹1,000 करोड़ से ज्यादा की नकदी उसने खुद मैनेज की और चैतन्य बघेल के कहने पर ₹80–100 करोड़ कैश केके श्रीवास्तव नाम के व्यक्ति तक पहुंचाए.
फिलहाल, चैतन्य बघेल ED की 5 दिन की कस्टडी में हैं, लेकिन सूत्रों का कहना है कि वह जांच में सहयोग नहीं कर रहे हैं. ED का दावा है कि इस घोटाले से हुई कमाई का एक बड़ा हिस्सा कांग्रेस और उसके सहयोगियों को मिला. अब सबकी निगाहें इस पर टिकी हैं कि जांच की आंच और किन-किन बड़े चेहरों तक पहुंचती है.
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