भट्ठे वाले से 'रीसाइक्लिंग किंग' बनने तक! जानें कनाडा में मारे गए बिजनेसमैन Darshan Sahsi की 'अनसुनी' कहानी
Babushahi Bureau
दोराहा (लुधियाना)/चंडीगढ़, 29 अक्टूबर, 2025 : कनाडा (Canada) के एबॉट्सफ़ोर्ड (Abbotsford) में मंगलवार को गोली मारकर हत्या कर दिए गए 68 वर्षीय पंजाबी कारोबारी दर्शन सिंह सहसी (Darshan Singh Sahsi) सिर्फ एक बिजनेसमैन नहीं थे, बल्कि वे जमीन से उठकर आसमान छूने की एक प्रेरणादायक कहानी थे। उनकी मौत की खबर ने न सिर्फ कनाडा में, बल्कि उनके पैतृक गांव राजगढ़ (दोराहा, लुधियाना) में भी मातम पसरा दिया है, जहां लोग उन्हें 'मिट्टी से जुड़ा' अरबपति कह कर याद कर रहे हैं।
जिस शख्स की आज पूरी दुनिया में कपड़े रीसाइक्लिंग की सबसे बड़ी कंपनियों में से एक थी, उसने कभी दुबई में क्रूज शिप पर भी काम किया था। आइए जानते हैं दर्शन सिंह सहसी के फर्श से अर्श तक के सफर के बारे में।
राजगढ़ गांव से कनाडा तक: सहसी का सफरनामा
1. जन्म और शिक्षा: दर्शन सिंह सहसी का जन्म 1956 में लुधियाना के राजगढ़ गांव में हुआ था। उन्होंने गांव के सरकारी स्कूल से ही 12वीं तक पढ़ाई की और फिर दोराहा के कॉलेज से ग्रेजुएशन (Graduation) की।
2. दुबई का सफर: करीब 35 साल पहले, वह काम की तलाश में दुबई (Dubai) चले गए और वहां एक क्रूज शिप (cruise ship) पर नौकरी करने लगे। ग्रामीणों के मुताबिक, यहीं उन्होंने कपड़ों के रीसाइक्लिंग कारोबार की बारीकियां सीखीं।
3, कनाडा का बुलावा: उस समय तक सहसी के पिता अपनी बेटियों के पास कनाडा जा चुके थे। जब पिता को PR (Permanent Residency) मिली, तो उन्होंने दुबई में काम कर रहे दर्शन सिंह को भी कनाडा बुला लिया।
3. खुद का कारोबार: रिश्तेदार बताते हैं कि कनाडा पहुंचकर सहसी ने पहले छोटे-मोटे काम किए, फिर कपड़ों की रीसाइक्लिंग (clothing recycling) का अपना कारोबार शुरू किया। धीरे-धीरे उनका काम बढ़ता गया और उनकी कंपनी 'कैनम इंटरनेशनल' (Canam International) दुनिया की सबसे बड़ी रीसाइक्लिंग कंपनियों में गिनी जाने लगी। उनका कारोबार दुनिया के कई देशों में फैला था।
'भट्ठे वाले' से लेकर अरबपति तक
1. गांव में पहचान: गांव में सहसी परिवार की काफी जमीन थी और उन्होंने एक ईंट का भट्टा (brick kiln) भी लगाया था। इसी वजह से गांव में उन्हें 'भट्ठे वाले' के नाम से जाना जाता था। विदेश जाने के बाद भी यह भट्टा चलता रहा, लेकिन करीब 8 साल पहले कारोबार बढ़ने पर उन्होंने इसे बंद कर दिया।
2. 'लकी' भट्ठे की जगह बनाया दफ्तर: सहसी इस भट्ठे को अपने लिए लकी (lucky) मानते थे। इसलिए, भट्टा बंद करने के बाद उन्होंने उसी जगह पर अपनी कंपनी 'कैनम' का एक आलीशान दफ्तर (office) बनाया, जो आज भी गांव में मौजूद है।
"बॉस नहीं, पिता जैसे थे" - लोगों की यादों में सहसी
सहसी की मौत के बाद गांव में हर कोई उनकी दरियादिली और जमीन से जुड़े स्वभाव को याद कर रहा है।
1. भारतीय मैनेजर नितिन: "वो हमारे बॉस नहीं, पिता से बढ़कर थे। कभी एहसास ही नहीं हुआ कि इतने बड़े उद्योगपति से बात कर रहे हैं। हत्या वाले दिन भी मेरी उनसे आधा घंटा बात हुई थी।"
2. बुजुर्ग गुरबख्श सिंह: "अरबपति बनने के बाद भी घमंड नहीं किया। परिवार, रिश्तेदार, सबको जोड़े रखा। कई रिश्तेदारों को कनाडा में सेट किया।"
3. गुजरात में 700 घर: कांडला पोर्ट (गुजरात) पर उनकी कंपनी में काम करने वाले करीब 700 मजदूरों के लिए उन्होंने घर बनवाए, बच्चों की पढ़ाई का खर्च उठाया, गरीब लड़कियों की शादियां कराईं। गांव वाले कहते हैं- "वो पैसा नहीं, इंसानियत कमाते थे।"
4. गांव का युवा: "साहब जैसे लोग हर पीढ़ी में एक-दो ही होते हैं। वो सिखा गए कि अमीरी दिल में नहीं होनी चाहिए और जिस मिट्टी से निकले, उसे कभी भूलना नहीं चाहिए।"
आखिरी बार फरवरी में आए थे गांव
दर्शन सिंह सहसी इसी साल फरवरी में गांव आए थे और करीब एक महीना यहीं रहे थे।
1. उस दौरान वह गांव के हर छोटे-बड़े व्यक्ति से मिले थे। जाते वक्त उन्होंने कहा था, "आज जो भी हूं, इस मिट्टी की वजह से हूं। इसका कर्जदार रहूंगा। अब हर साल जनवरी-फरवरी में एक महीने के लिए गांव आया करूंगा।"
2. ग्रामीणों ने उनके पुराने घर के बाहर मोमबत्तियां जलाकर उन्हें भावभीनी श्रद्धांजलि दी।
(सहसी के परिवार में पत्नी और 2 बेटे हैं, जो कनाडा में ही रहते हैं। उनका एक भाई भी कनाडा में उनके साथ रहता है, जबकि एक भाई की 1979 में सड़क हादसे में मौत हो गई थी।)
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