RSS का 100वां स्थापना दिवस: ‘स्व’ बोध, पर्यावरण संरक्षण और नागरिक कर्तव्यों से होगा समग्र विकास : मुख्य वक्ता प्रमोद
Babushahi Bureau
14 अक्टूबर, 2025 : विजयादशमी (Vijayadashami) के अवसर पर राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ (RSS) ने अपना 100वां स्थापना दिवस (centenary) मनाया। 1925 में डॉ. केशव बलिराम हेडगेवार ने नागपुर में संघ की स्थापना की थी, जो आज दुनिया के सबसे बड़े स्वयंसेवी संगठनों में माना जाता है। देशभर में विभिन्न स्थलों पर कार्यक्रम आयोजित हुए। स्थानीय सन्मति मातृ सेवा संघ हॉल में आयोजित समारोह में अध्यक्ष महंत बबला दास, संघ पदाधिकारी डॉ. भारत भूषण, आकाश गुप्ता, मुख्य अतिथि राजेंद्र जैन, मुख्य वक्ता प्रमोद, लवनीश कुमार और विनोद कुमार ने विधि-विधान से शस्त्र पूजन किया। बड़ी संख्या में गणमान्य नागरिक और स्वयंसेवक उपस्थित रहे।
मुख्य संबोधन: ‘पंच परिवर्तन’ पर जोर : मुख्य वक्ता श्री प्रमोद कुमार ने कहा कि भारत का समग्र विकास संघ के बताए पांच आयामों—
1. ‘स्व’ बोध (self-awareness)
2. पर्यावरण संरक्षण (environmental conservation)
3. नागरिक कर्तव्य निर्वहन (civic duties)
4. समरसता (social harmony)
5. आदर्श परिवार प्रणाली (ideal family system) पर चलकर ही संभव है। उनके अनुसार, किसी भी राष्ट्र के उत्थान के लिए नागरिकों का चरित्रवान और देशभक्ति से ओत-प्रोत होना आवश्यक है; चरित्र के बिना शिक्षा और ज्ञान कई बार घातक सिद्ध हो सकते हैं। संघ “चरित्र निर्माण से राष्ट्र निर्माण” (character building → nation building) की कार्यपद्धति पर कार्य कर रहा है।
धार्मिक स्वतंत्रता और मानवीय मूल्य
श्री गुरु तेगबहादुर जी के 350वें बलिदान दिवस के संदर्भ में श्री प्रमोद ने कहा कि गुरुजी का त्याग संपूर्ण मानवता के लिए प्रेरणा है। उनका संदेश स्पष्ट था—मानवाधिकार (human rights) और धार्मिक स्वतंत्रता (religious freedom) की रक्षा सर्वोपरि है; किसी को धर्म के आधार पर अत्याचार करने या धर्म परिवर्तन के लिए विवश करने का अधिकार नहीं। स्वधर्म की रक्षा हेतु बलिदान भी स्वीकार्य है।
समरस समाज, सशक्त परिवार
प्रमोद ने कहा, सामाजिक समरसता के बिना सशक्त, सुसंस्कृत और प्रगतिशील राष्ट्र की कल्पना अधूरी है। जाति, धर्म, वंश और लिंग के आधार पर विभाजन राष्ट्रीय एकता और आंतरिक सुरक्षा को कमजोर करता है। संघ ‘परिवार’ को भारतीय संस्कृति, मूल्यों और संस्कारों की आधारशिला मानता है। बदलती जीवनशैली और बाहरी सांस्कृतिक दबाव से पारंपरिक पारिवारिक मूल्य क्षीण हो रहे हैं; ऐसे में कुटुंब प्रबोधन के माध्यम से परिवारों को संस्कृति और मूल्यों से जोड़ना आवश्यक है।
पर्यावरण और अर्थचेतना
समकालीन परिदृश्य में पर्यावरण संरक्षण एक बड़ी वैश्विक चुनौती है। संसाधनों का अंधाधुंध दोहन और प्रदूषण मानव जीवन के भविष्य को प्रभावित कर रहा है; इसलिए पर्यावरण हितैषी जीवनशैली (eco-friendly lifestyle) अपनानी होगी।
राष्ट्र के विकास के लिए आर्थिक आत्मनिर्भरता (self-reliance) जरूरी है। अत्यधिक आयात-निर्भरता और उपभोक्तावादी संस्कृति दीर्घकाल में प्रतिकूल है। स्थानीय उद्यमों का उन्नयन, स्वदेशी (swadeshi) उत्पादों का उपयोग और पारंपरिक कौशल-उद्योगों का पुनरुद्धार आवश्यक है।
नागरिक कर्तव्य: सक्रिय भागीदारी का आह्वान
एक उन्नत लोकतंत्र के लिए नागरिकों का अपने मौलिक कर्तव्यों (civic duties) के प्रति जागरूक और उत्तरदायी होना जरूरी है—मतदान, कर भुगतान, सार्वजनिक संपत्ति की रक्षा, कानून का पालन और सामाजिक कार्यों में भागीदारी से ही स्वस्थ नागरिक समाज का निर्माण होता है। संघ इन्हीं ‘पंच परिवर्तन’ आधारित कार्यक्रमों के साथ समाज में व्यापक संवाद कर रहा है।
अध्यक्ष के उद्बोधन
समारोह के अध्यक्ष परमहंस स्वामी महंत बबला दास ने कहा कि सद्कर्म और सकारात्मक कार्यपद्धति के चलते 100 वर्षों में संघ देशभक्ति, भाईचारे और सेवा का पर्याय बन चुका है। उन्होंने कहा, राष्ट्र पर संकट के समय स्वयंसेवक सदैव अग्रिम पंक्ति में खड़े दिखाई देते हैं। उपस्थित जनों में बलराम कुमार, पंकज कुमार, राकेश कुमार, विपन कुमार, राजिंदर वर्मा, अशोक कुमार, डॉ. राजिंदर पाल, राज कुमार, हरविंदर कुमार, विनय कुमार, प्रदीप कुमार, प्रिं. नीलू, कमलदीप बांसल, डॉ. विपन, जवाहर कुमार, तरसेम कुमार, पुलकित कुमार, अरुण कुमार सहित बड़ी संख्या में स्वयंसेवक सम्मिलित रहे।
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