Vishwakarma Jayanti 2025 : क्यों मशीनों का विश्राम दिवस है ये दिन? जानें पूजा विधि और महत्व
Babushahi Bureau
नई दिल्ली, 22 अक्टूबर, 2025 : आज देशभर में भगवान विश्वकर्मा की जयंती (Vishwakarma Jayanti) पूरे श्रद्धा और उत्साह के साथ मनाई जा रही है। हिंदू पंचांग के अनुसार, यह पर्व भाद्रपद माह के सूर्य कन्या राशि में प्रवेश के दिन मनाया जाता है।
इस साल यह शुभ दिन बुधवार, 22 अक्टूबर 2025 को पड़ा है। भगवान विश्वकर्मा को सृष्टि का पहला शिल्पकार (Divine Architect) और सभी कलाओं व तकनीकी कौशलों का जनक माना जाता है। इसलिए यह दिन इंजीनियरों, कारीगरों, आर्टिज़न (Artisans), आर्किटेक्ट, मशीन ऑपरेटर और टेक्निकल प्रोफेशन में कार्यरत लोगों के लिए अत्यंत विशेष होता है।

कौन हैं भगवान विश्वकर्मा?
पौराणिक मान्यताओं में भगवान विश्वकर्मा को देवताओं के दिव्य शिल्पकार के रूप में मान्यता प्राप्त है। कहा जाता है कि उन्होंने अनेक अद्भुत नगरों और दिव्य वस्तुओं का निर्माण किया था —
1. इंद्र के लिए इंद्रपुरी (Heavenly City)
2. श्रीकृष्ण के लिए द्वारका नगरी (Dwarka City)
3. पांडवों के लिए हस्तिनापुर (Hastinapur Kingdom)
4. रावण के लिए स्वर्ण लंका (Golden Lanka)
5. भगवान शिव का त्रिशूल (Trident) और भगवान विष्णु का सुदर्शन चक्र (Sudarshan Chakra) भी उन्होंने ही बनाया था।
ऋग्वेद और पुराणों में उनका उल्लेख “सर्वशिल्पी” (Master of All Crafts) और “देव शिल्पकार” (Divine Engineer) के रूप में किया गया है।
कैसे मनाई जाती है विश्वकर्मा जयंती
इस दिन देशभर के कारखानों, फैक्ट्रियों, दुकानों और कार्यालयों में विशेष पूजा (Special Worship) का आयोजन किया जाता है।
1. मशीनों और औजारों को अच्छी तरह साफ कर भगवान विश्वकर्मा की मूर्ति के सामने सजाया जाता है।
2. यज्ञ, हवन और आरती कर कार्यस्थल की समृद्धि और सुरक्षा की कामना की जाती है।
3. पूजा के बाद भंडारे और प्रसाद वितरण का कार्यक्रम होता है, जिसमें कर्मचारी और स्थानीय लोग सम्मिलित होते हैं।
इस दिन को “मशीनों का विश्राम दिवस” (Day of Rest for Machines) भी कहा जाता है, क्योंकि परंपरागत रूप से इस दिन औजारों को चलाया नहीं जाता, बल्कि विश्राम दिया जाता है।

इस दिन काम क्यों नहीं किया जाता
भगवान विश्वकर्मा कर्म और श्रम के प्रतीक हैं। इस दिन कार्य न करके अपने औजारों और मशीनों को विश्राम देना श्रद्धा और आभार व्यक्त करने का माध्यम माना जाता है।
1. परंपरा के अनुसार, पूजा के दिन किसी मशीन को नहीं चलाया जाता।
2. ऐसा करने से वर्षभर कार्य में वृद्धि, सुरक्षा और समृद्धि बनी रहती है।
पूजा का संदेश
विश्वकर्मा जयंती केवल धार्मिक पर्व नहीं, बल्कि कर्म और सृजन का उत्सव (Festival of Creation and Work) है।
1. यह हमें सिखाती है कि सृजनशीलता (Creativity) और मेहनत (Hard Work) ही सबसे बड़ा धर्म है।
2. हर निर्माण, चाहे भवन हो या मशीन, किसी के परिश्रम और बुद्धि का परिणाम होता है। (इसलिए यह पर्व हमें हर तरह के श्रम और कौशल का सम्मान करना सिखाता है।)
व्रत और अनुष्ठान
इस दिन व्रत का कोई कठोर नियम नहीं है। श्रद्धालु अपनी आस्था के अनुसार पूजा या उपवास रख सकते हैं।
1. हवन, आरती और सामूहिक भंडारे का आयोजन आम होता है।
2. कई औद्योगिक क्षेत्रों में आज के दिन नई मशीनों या उपकरणों का शुभारंभ (Inauguration) किया जाता है।
भगवान विश्वकर्मा के प्रसिद्ध मंदिर
भारत के विभिन्न राज्यों — बिहार, झारखंड, मध्य प्रदेश, राजस्थान, उत्तर प्रदेश और दक्षिण भारत — में भगवान विश्वकर्मा के अनेक मंदिर स्थित हैं।
1. इन मंदिरों में आज विशेष पूजा, भजन और भंडारे के आयोजन किए जा रहे हैं।
2. विश्वकर्मा समाज के लोग इस दिन श्रद्धा से एकत्र होकर सामूहिक आराधना करते हैं।
आज के युग में विश्वकर्मा पूजा का महत्व
आधुनिक समय में यह पर्व केवल पौराणिक श्रद्धा नहीं, बल्कि “टेक्नोलॉजी और इंजीनियरिंग की आस्था” (Faith in Technology and Engineering) का प्रतीक बन चुका है।
1. उद्योग, निर्माण और मशीनरी क्षेत्र से जुड़े लोग इस दिन अपने उपकरणों की पूजा कर वर्षभर की सफलता की कामना करते हैं।
2. इसे “वर्क ऐंड वर्शिप (Work and Worship)” के आदर्श का जीवंत उदाहरण भी कहा जाता है।
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