Explainer : जानें क्या है Artificial Rain, कैसे होती है Cloud Seeding और यह Pollution घटाने में कितनी कारगर?
Babushahi Bureau
नई दिल्ली, 28 October 2025 : दम घोंटती हवा, खासकर बड़े शहरों में सर्दियों के दौरान, एक बड़ी चुनौती बन गई है। इस समस्या से निपटने के लिए वैज्ञानिक नए-नए तरीके तलाश रहे हैं, जिनमें से एक है 'कृत्रिम बारिश' (Artificial Rain) कराना। दिल्ली जैसे शहर, जो गंभीर वायु प्रदूषण (severe air pollution) से जूझ रहे हैं, इस तकनीक को आज़माने पर गंभीरता से विचार कर रहे हैं और इसके लिए परीक्षण (trials) भी किए जा रहे हैं।
लेकिन यह कृत्रिम बारिश आखिर है क्या? क्या यह सच में आसमान से पानी बरसा सकती है? इसे कराया कैसे जाता है, और क्या यह वाकई प्रदूषण (Pollution) का रामबाण इलाज साबित हो सकती है? आइए, इन सभी सवालों के जवाब आसान भाषा में समझते हैं।
क्यों पड़ती है Artificial Rain की जरूरत?
मुख्य रूप से दो कारणों से कृत्रिम बारिश कराई जाती है:
1. सूखे से निपटना (Combating Drought): जिन इलाकों में लंबे समय तक बारिश नहीं होती, वहां पानी की कमी को पूरा करने के लिए।
2. वायु प्रदूषण कम करना (Reducing Air Pollution): शहरों में हवा की गुणवत्ता (Air Quality) बेहद खराब हो जाने पर, बारिश के जरिए प्रदूषकों को नीचे बैठाने के लिए (जैसा दिल्ली में विचार किया जा रहा है)। दिल्ली में सर्दियों में PM2.5 और PM10 का स्तर अक्सर 'गंभीर' श्रेणी में पहुंच जाता है, जिससे स्वास्थ्य आपातकाल जैसी स्थिति बन जाती है।
कैसे होती है कृत्रिम बारिश? (Cloud Seeding की साइंस)
सबसे पहले यह समझना जरूरी है कि क्लाउड सीडिंग से बारिश 'पैदा' नहीं की जाती, बल्कि पहले से मौजूद बादलों को बारिश करने के लिए 'उकसाया' (stimulate) जाता है।
1. जरूरी सामग्री: इसके लिए हवाई जहाज या रॉकेट के जरिए बादलों में कुछ खास तरह के केमिकल, जैसे सिल्वर आयोडाइड (Silver Iodide) या सोडियम क्लोराइड (Sodium Chloride - साधारण नमक) के महीन कणों का छिड़काव किया जाता है।
2. कैसे बरसते हैं बादल:
यह केमिकल कण हवा में मौजूद नमी (water vapor) के लिए एक 'न्यूक्लियस' (nucleus) यानी केंद्र का काम करते हैं।
1. नमी इन कणों के चारों ओर जमा होकर पानी की छोटी-छोटी बूंदें (droplets) बनाती है।
2. धीरे-धीरे ये बूंदें आपस में मिलकर बड़ी और भारी हो जाती हैं।
3. जब ये बूंदें इतनी भारी हो जाती हैं कि बादल उन्हें रोक नहीं पाता, तो वे बारिश के रूप में नीचे गिर जाती हैं।
4. शर्तें लागू: यह तकनीक तभी सफल होती है जब:
4.1 आसमान में पहले से बादल मौजूद हों।
4.2 उन बादलों में पर्याप्त नमी (humidity) हो (आमतौर पर 50% से अधिक)।
4.3 बादलों का घनत्व (mass) ठीक-ठाक हो। (अगर बूंदें बहुत छोटी रह गईं, तो वे जमीन तक पहुंचने से पहले ही भाप बन सकती हैं)।
दिल्ली में ट्रायल और IIT कानपुर का रोल
दिल्ली सरकार वायु प्रदूषण से लड़ने के लिए IIT कानपुर के विशेषज्ञों के साथ मिलकर कृत्रिम बारिश की संभावना तलाश रही है।
1. परीक्षण उड़ानें: इसके लिए दिल्ली के कुछ इलाकों (जैसे बुराड़ी) के ऊपर परीक्षण उड़ानें (test flights) आयोजित की गई हैं। इन उड़ानों में विमान (सेसना प्लेन) से सिल्वर आयोडाइड और सोडियम क्लोराइड के फ्लेयर्स ('पाइरो तकनीक' - pyro technique) छोड़े गए।
2. नमी की चुनौती: हालांकि, परीक्षणों के दौरान कई बार हवा में पर्याप्त नमी (required humidity) न होने के कारण तत्काल बारिश नहीं हो सकी, लेकिन इससे तकनीक की तैयारी और समन्वय को परखने में मदद मिली।
क्या इससे प्रदूषण कम होगा?
क्लाउड सीडिंग सीधे तौर पर (directly) प्रदूषक कणों को खत्म नहीं करती, लेकिन यह अप्रत्यक्ष रूप से (indirectly) हवा साफ करने में मदद कर सकती है।
1. 'वॉशआउट' इफेक्ट (Washout Effect): जब बारिश होती है, तो पानी की बूंदें हवा में मौजूद PM2.5, PM10, धूल, पराग (pollen) और अन्य प्रदूषकों को अपने साथ घोलकर या चिपकाकर जमीन पर ले आती हैं। इससे बारिश के बाद हवा की गुणवत्ता में सुधार होता है।
2. कितना प्रभावी: इसका असर बारिश की तीव्रता (intensity) और अवधि (duration) पर निर्भर करता है।
चुनौतियां और वैश्विक प्रयोग
1. मौसम पर निर्भरता: कृत्रिम बारिश की सफलता पूरी तरह से मौसम (बादलों और नमी की मौजूदगी) पर निर्भर करती है।
2. लागत और पर्यावरण: यह एक महंगी तकनीक है और इस्तेमाल होने वाले केमिकल्स (विशेषकर सिल्वर आयोडाइड) के संभावित दीर्घकालिक पर्यावरणीय प्रभावों (long-term environmental impacts) पर भी अध्ययन और बहस जारी है।
3. वैश्विक प्रयोग (Global Usage): इन चुनौतियों के बावजूद, चीन, UAE, अमेरिका, ऑस्ट्रेलिया और थाईलैंड जैसे कई देश सूखे से निपटने, पानी के भंडार भरने, मौसम बदलने या (चीन के मामले में) ओलंपिक जैसे बड़े आयोजनों से पहले हवा साफ करने के लिए क्लाउड सीडिंग का इस्तेमाल करते रहे हैं।
दिल्ली में अधिकारी अब उपयुक्त मौसम (favourable weather conditions) का इंतजार कर रहे हैं, ताकि वास्तविक क्लाउड सीडिंग ऑपरेशन को अंजाम दिया जा सके और देखा जा सके कि यह राजधानी की जहरीली हवा को कितना कम कर पाती है।
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