भगदड़ को रोकने के लिए अलग-अलग राज्यों के नियम और DMA एक्ट
तमिलनाडु के करूर में हाल ही में हुई भगदड़ की घटना ने एक बार फिर से भीड़-भाड़ वाले आयोजनों में सुरक्षा नियमों पर सवाल खड़े कर दिए हैं। हालांकि, देश में भगदड़ को रोकने के लिए कोई ठोस केंद्रीय कानून नहीं है, फिर भी आपदा प्रबंधन अधिनियम (DMA), 2005 के तहत राज्यों और जिलों को भीड़ नियंत्रण के लिए योजनाएं बनाना अनिवार्य है।
DMA एक्ट के तहत जिम्मेदारियां
दिसंबर 2005 में लागू हुए DMA के तहत तीन स्तरों पर प्राधिकरण बनाए गए हैं:
राष्ट्रीय आपदा प्रबंधन प्राधिकरण (NDMA): प्रधानमंत्री इसके अध्यक्ष होते हैं।
राज्य आपदा प्रबंधन प्राधिकरण (SDMA): मुख्यमंत्री इसके अध्यक्ष होते हैं।
जिला आपदा प्रबंधन प्राधिकरण (DDMA): जिलाधिकारी इसके अध्यक्ष होते हैं।
ये प्राधिकरण NDMA द्वारा जारी की गई गाइडलाइंस के अनुसार मानक संचालन प्रक्रिया (SOP) बनाते हैं ताकि भीड़ को नियंत्रित किया जा सके।
प्रमुख घटनाओं के बाद राज्यों द्वारा उठाए गए कदम
भारत के विभिन्न राज्यों ने बड़ी भगदड़ की घटनाओं के बाद अपने-अपने नियम और SOPs बनाए हैं:
महाराष्ट्र (2005): मांडरदेवी मंदिर में हुई भगदड़ के बाद राज्य ने भीड़ प्रबंधन के लिए अलग एंट्री-एग्जिट प्वाइंट और स्वास्थ्य टीमों की तैनाती को अनिवार्य किया।
राजस्थान (2008): जोधपुर के चामुंडा देवी मंदिर में भगदड़ के बाद बैरिकेडिंग, पुलिस बल और मॉक ड्रिल को लेकर नियम जारी किए गए।
उत्तर प्रदेश (2013-19): प्रयागराज कुंभ मेले के लिए एक विशेष मास्टर प्लान बनाया गया, जिसमें CCTV, मेडिकल पोस्ट और डिजिटल टिकटिंग जैसी व्यवस्थाएं शामिल थीं।
मध्य प्रदेश (2013): दतिया मंदिर में हुई भगदड़ के बाद "मास गैदरिंग गाइडलाइंस" को आपदा प्रबंधन योजना में जोड़ा गया, जिसमें भीड़ के प्रवाह को नियंत्रित करने पर ध्यान दिया गया।
तमिलनाडु/केरल (2015): सबरीमाला और पोंगल जैसे त्योहारों के लिए ऑनलाइन पास सिस्टम, मेडिकल कैंप्स और ड्रोन सर्विलांस को प्राथमिकता दी गई।
जम्मू-कश्मीर (2022): वैष्णो देवी भगदड़ के बाद डिजिटल रजिस्ट्रेशन, CCTV और AI सर्विलांस के साथ-साथ स्लॉट बुकिंग को अनिवार्य किया गया।
पश्चिम बंगाल/बिहार: गंगासागर मेला और छठ पूजा जैसे त्योहारों के लिए भी भीड़ को नियंत्रित करने के लिए विशेष योजनाएं बनाई गई हैं।
ये सभी उदाहरण दर्शाते हैं कि हर राज्य ने अपनी पिछली घटनाओं से सबक लेकर भीड़ प्रबंधन के नियमों में सुधार किया है, लेकिन एक राष्ट्रीय स्तर पर ठोस कानून की कमी अभी भी महसूस की जाती है।
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