Explainer : क्या है जेनिटल फीचर मैपिंग, जिसने Prajwal Revanna को दिलाई उम्रकैद? जानें कैसे हुआ इसका इस्तेमाल और इसने कैसे बदला पूरा केस
Babushahi Bureau
नई दिल्ली, 4 August 2025 : कर्नाटक के पूर्व सांसद और देश के पूर्व प्रधानमंत्री के पोते प्रज्वल रेवन्ना को रेप केस में उम्रकैद की सजा हुई है। लेकिन यह सजा इतनी आसानी से नहीं मिली। प्रज्वल को सलाखों के पीछे पहुंचाने में एक ऐसी फॉरेंसिक तकनीक ने सबसे बड़ी भूमिका निभाई, जिसका इस्तेमाल भारत में पहली बार किया गया। इस तकनीक का नाम है- जेनिटल फीचर मैपिंग (Genital Feature Mapping)। आइए, आसान भाषा में समझते हैं कि यह तकनीक क्या है, यह कैसे काम करती है, और इसने प्रज्वल रेवन्ना को रेपिस्ट साबित करने में कैसे मदद की।
सबसे पहले, मामला क्या था?
24 अप्रैल, 2024 को लोकसभा चुनाव से ठीक पहले प्रज्वल रेवन्ना के हजारों अश्लील वीडियो वाली पेन ड्राइव सामने आईं। इन वीडियो में वह कई महिलाओं का यौन शोषण करता दिख रहा था। मामला बढ़ा तो वह जर्मनी भाग गया, लेकिन लौटते ही उसे गिरफ्तार कर लिया गया। उस पर चार केस दर्ज हुए, जिनमें से एक (घर में काम करने वाली महिला से रेप) में उसे उम्रकैद की सजा मिली है।
क्या थी पुलिस के सामने सबसे बड़ी चुनौती?
जिस वीडियो के आधार पर रेप का केस चल रहा था, उसमें आरोपी का चेहरा साफ नहीं दिख रहा था। प्रज्वल के वकील बार-बार यही दलील दे रहे थे कि वीडियो में दिख रहा शख्स प्रज्वल नहीं है। ऐसे में यह साबित करना पुलिस के लिए सबसे बड़ी चुनौती थी कि वीडियो में मौजूद शख्स प्रज्वल ही है। यहीं पर जेनिटल फीचर मैपिंग तकनीक काम आई।
क्या है जेनिटल फीचर मैपिंग? (सरल शब्दों में)
यह एक तरह की वैज्ञानिक 'पहचान परेड' है, लेकिन इसमें चेहरे की जगह शरीर के निजी अंगों (Genitals) का मिलान किया जाता है।
1. कैसे काम करती है: ठीक वैसे ही जैसे हर इंसान के फिंगरप्रिंट या DNA अलग होते हैं, वैसे ही हर व्यक्ति के शरीर की बनावट, त्वचा का रंग, तिल, मस्से या निशान भी अलग होते हैं।
2. इस तकनीक में विशेषज्ञ:
2.1 वीडियो या फोटो में दिख रहे व्यक्ति के शरीर के अंगों की हाई-क्वालिटी तस्वीरें लेते हैं।
2.2 फिर आरोपी व्यक्ति की मेडिकल जांच के दौरान उसी अंग की तस्वीरें ली जाती हैं।
2.3 इसके बाद दोनों तस्वीरों का मिलान किया जाता है। त्वचा की बनावट से लेकर छोटे-से-छोटे निशान तक का विश्लेषण होता है।
3. फायदा: यह तकनीक उन केसों में रामबाण साबित होती है, जहाँ वीडियो में अपराधी का चेहरा न दिख रहा हो।
प्रज्वल केस में कैसे हुआ इसका इस्तेमाल?
1. वीडियो की जांच: फॉरेंसिक टीम ने सबसे पहले यह पक्का किया कि वीडियो असली हैं और उन्हें प्रज्वल के फोन से ही रिकॉर्ड किया गया था।
2. शारीरिक जांच: इसके बाद अटल बिहारी वाजपेयी रिसर्च इंस्टीट्यूट में प्रज्वल का मेडिकल टेस्ट हुआ। डॉक्टरों और फॉरेंसिक एक्सपर्ट्स की टीम ने उसके शरीर के निजी अंगों की हाई-रिजॉल्यूशन तस्वीरें लीं।
3. तस्वीरों का मिलान: इन तस्वीरों का मिलान वायरल वीडियो से निकाले गए स्क्रीनशॉट से किया गया।
4. नतीजा: मिलान 100% सफल रहा। विशेषज्ञों ने पुष्टि की कि वीडियो में दिख रहे व्यक्ति की कमर, हाथ और जननांगों की बनावट पूरी तरह से प्रज्वल से मेल खाती है। इसके अलावा, वीडियो में सुनाई दे रही आवाज का सैंपल भी प्रज्वल की आवाज से मैच हो गया।
इस तकनीक ने कैसे बदला पूरा केस?
1. सबसे बड़ा सबूत: जेनिटल फीचर मैपिंग की रिपोर्ट कोर्ट में सबसे बड़ा और निर्णायक सबूत बनी। इसने बिना किसी शक के यह साबित कर दिया कि वीडियो में दिख रहा शख्स प्रज्वल ही है।
2. सख्त सजा का आधार: अगर यह साबित नहीं होता, तो प्रज्वल को शायद इतनी सख्त सजा (उम्रकैद) नहीं मिलती। लेकिन इस तकनीक ने अपराध की गंभीरता को सीधे तौर पर प्रज्वल से जोड़ दिया, जिससे जज के लिए सख्त सजा सुनाना आसान हो गया।
तुर्किये जैसे देशों में इस्तेमाल होने वाली यह तकनीक अब भारत में भी यौन अपराध के मामलों में न्याय दिलाने में एक मील का पत्थर साबित हो सकती है।
MA
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