10 महीने के वंश ने दी अमरता की मिसाल: अंगदान के बाद शरीरदान करने वाला पहला मामला बना PGIMER में
बाबूशाही ब्यूरो
चंडीगढ़/संगरूर, 23 मई 2025:
संगरूर के लहरागागा कस्बे से आई एक दिल दहला देने वाली, लेकिन प्रेरक घटना ने पूरे पंजाब और चिकित्सा जगत को झकझोर दिया है। 10 महीने के वंश के माता-पिता ने अपने नवजात पुत्र के निधन के बाद अंगदान और फिर शरीरदान कर एक ऐतिहासिक और भावनात्मक मिसाल कायम की है। यह PGIMER चंडीगढ़ में अपनी तरह का पहला मामला है, जहां अंगदान के बाद एक नवजात का शरीर मेडिकल रिसर्च के लिए दान किया गया।
गुरु की सीख, सेवा का संदेश
वंश के पिता टोनी बंसल और माता प्रेमलता, सिरसा स्थित डेरा सच्चा सौदा के अनुयायी हैं। उन्होंने अपने बेटे की आकस्मिक मृत्यु के बाद उसे अमरता का रास्ता दिखाते हुए अंगों और फिर शरीर को दान किया।
“हम उसे नहीं बचा सके, लेकिन किसी और की जिंदगी बच सकती है, यही सोचकर हमने यह कदम उठाया,” श्री टोनी बंसल ने भर्राए स्वर में कहा।
अस्पताल से इतिहास तक
16 मई को अपने पालने से गिरने के बाद वंश को पहले संगरूर के सिविल अस्पताल और फिर पटियाला के प्राइवेट अस्पताल में भर्ती कराया गया। 18 मई को उसे PGIMER चंडीगढ़ रेफर किया गया, जहां डॉक्टरों ने हरसंभव प्रयास किया, लेकिन सिर की गंभीर चोट के चलते वंश को नहीं बचाया जा सका।
PGIMER में पहली बार अंगदान के बाद शरीरदान
PGIMER के निदेशक प्रो. विवेक लाल ने कहा:
“यह मामला मानवीय करुणा और त्याग का अप्रतिम उदाहरण है। अंगदान के बाद शरीरदान का यह पहला मामला PGIMER के इतिहास में दर्ज हो गया है। वंश अब कई लोगों में जीवित रहेगा।”
अंगदान से जीवन, शरीरदान से शिक्षा
PGIMER की बहु-विषयक टीम, जिसमें डॉ. आशीष शर्मा (रीनल ट्रांसप्लांट विभाग प्रमुख), डॉ. कार्थी (बाल रोग विशेषज्ञ) और अन्य शामिल थे, ने इस चुनौतीपूर्ण प्रक्रिया को सफलतापूर्वक अंजाम दिया।
डॉ. शर्मा ने बताया कि,
“वंश के गुर्दे इतने छोटे थे कि उन्हें एक वयस्क को ट्रांसप्लांट किया गया, जो अब स्वस्थ है। यह चिकित्सा विज्ञान के लिए बड़ी उपलब्धि है।”
माँ की ममता, सेवा में परिणत
श्रीमती प्रेमलता ने नम आंखों से बताया,
“हमारे बेटे ने बहुत छोटा जीवन जिया, लेकिन हम चाहते थे कि उसकी याद किसी के जीवन में उजाला बने। यही हमारी श्रद्धा है, यही हमारी भक्ति।”
सामाजिक प्रेरणा बनी एक मासूम आत्मा
PGIMER के गलियारों में 23 मई की शाम को जब वंश के शरीर को विदाई दी गई, तो वहाँ मौजूद हर व्यक्ति भावुक था। डॉक्टर, नर्स, अधिकारी और स्वयंसेवी—सभी की आंखें नम थीं, लेकिन उनके दिल गर्व से भरे हुए थे।
यह केवल अंगदान नहीं था—यह आशा, सेवा और आत्मीयता का प्रतीक था।
वंश अब एक नाम नहीं, एक प्रेरणा बन चुका है।
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