हरियाणा में निदेशक अभियोजन (जनरल) की नियुक्ति लंबित, हाईकोर्ट में उठी प्रक्रिया सुधार की मांग
बाबूशाही ब्यूरो
चंडीगढ़, 12 जून 2025 — हरियाणा में डायरेक्टर ऑफ प्रॉसिक्यूशन (जनरल) पद की नियुक्ति को लेकर असमंजस की स्थिति बनी हुई है। मौजूदा निदेशक संजय हुड्डा का कार्यकाल 31 मई को समाप्त हो गया, लेकिन दस दिन बीत जाने के बाद भी नए निदेशक की नियुक्ति नहीं हो पाई है।
संजय हुड्डा की नियुक्ति 1 जून 2022 को हुई थी और सेवा नियमों के अनुसार तीन वर्ष का कार्यकाल पूर्ण करने के बाद उन्हें निदेशक अभियोजन (विशेष) के रूप में पदांकित किया जाना अनिवार्य है। हुड्डा की सेवानिवृत्ति अगस्त 2027 में प्रस्तावित है।
इस बीच, पंजाब एवं हरियाणा हाईकोर्ट के एडवोकेट हेमंत कुमार ने रजिस्ट्रार-जनरल को पत्र लिखकर आग्रह किया है कि यह विषय हाईकोर्ट के मुख्य न्यायाधीश के संज्ञान में लाया जाए। उन्होंने सुझाव दिया है कि नए निदेशक की नियुक्ति भारतीय नागरिक सुरक्षा संहिता (B.N.S.S.), 2023 की धारा 20(2)(a) के तहत की जाए, न कि केवल राज्य के सेवा नियमों के अनुसार।
सेवा नियमों और B.N.S.S. के बीच विरोधाभास
हेमंत कुमार के अनुसार, हरियाणा अभियोजन विभाग के मौजूदा नियमों के तहत निदेशक के पद पर नियुक्ति के लिए कम से कम एक वर्ष का अनुभव रखने वाला अतिरिक्त निदेशक ही पात्र होता है। लेकिन वर्तमान में चारों अतिरिक्त निदेशकों के पास इतना अनुभव नहीं है। साथ ही, सेवा नियमों में इस पद को सीधी भर्ती से भरने का कोई प्रावधान नहीं है।
2022 में हरियाणा सरकार द्वारा नियमों में संशोधन के बाद निदेशक अभियोजन का पद दो भागों में विभाजित किया गया — निदेशक अभियोजन (जनरल) और निदेशक अभियोजन (स्पेशल)। यह कदम नरशेर सिंह को पदच्युत किए बिना नए निदेशक की नियुक्ति सुनिश्चित करने के लिए उठाया गया था, जिनका कार्यकाल 2016 से चला आ रहा था। नरशेर सिंह अब भी निदेशक अभियोजन (विशेष) के रूप में कार्यरत हैं और अक्टूबर 2025 में सेवानिवृत्त होंगे।
नए कानून के तहत नियुक्ति की मांग
हेमंत ने तर्क दिया कि B.N.S.S., 2023 की धारा 20(2) के अनुसार केवल वही व्यक्ति निदेशक अभियोजन पद हेतु योग्य है जिसने या तो सेशंस जज के रूप में कार्य किया हो या जिसे कम से कम 15 वर्ष का वकालत का अनुभव हो। ऐसे में राज्य सरकार को इस केंद्रीय कानून के अनुरूप अपने सेवा नियमों में संशोधन करना चाहिए था, जो अभी तक नहीं किया गया।
उन्होंने यह भी स्पष्ट किया कि संसद द्वारा पारित कानून राज्य के सेवा नियमों पर वरीयता रखते हैं और इसलिए अगली नियुक्ति केवल B.N.S.S. के तहत की जानी चाहिए।
यह मामला केवल एक प्रशासनिक नियुक्ति का नहीं बल्कि एक महत्वपूर्ण कानूनी प्रक्रिया का भी प्रतीक बन गया है, जिसमें केंद्र और राज्य के नियमों के बीच सामंजस्य की आवश्यकता है। अगर समय पर आवश्यक संशोधन और नियुक्ति नहीं की गई, तो यह विभागीय कामकाज और पारदर्शिता दोनों पर प्रश्नचिह्न लगा सकता है।
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