Himachal Flood Research : GB Pant Institute: University of Cumbria : हिमाचल से लेकर पंजाब तक कुल्लू घाटी के पांच नाले बरपा रहे तबाही, अध्ययन रिपोर्ट में हुआ बड़ा खुलासा
बाबूशाही ब्यूरो
कुल्लू/मनाली 15 सितंबर 2025 : हिमाचल प्रदेश की कुल्लू घाटी में बरसात का मौसम हर साल नई तबाही लेकर आता है। ताज़ा अध्ययन में खुलासा हुआ है कि घाटी के पांच प्रमुख नाले फोजल, सरवरी, कसोल, हुरला और मौहल लगातार बाढ़ और विनाश का कारण बन रहे हैं। इन नालों से उफनती व्यास नदी का जलस्तर मनाली से लेकर पंजाब तक तबाही मचा रहा है।
11 साल का शोध, 200 साल का रिकॉर्ड
कुल्लू स्थित जीबी पंत राष्ट्रीय हिमालयी पर्यावरण अनुसंधान संस्थान ने 2014 से 2025 तक ब्रिटेन की कुंब्रिया यूनिवर्सिटी और दिल्ली व हिमाचल विश्वविद्यालयों के साथ मिलकर विस्तृत अध्ययन किया। इसमें 1835 से लेकर 2020 तक के ऐतिहासिक रिकॉर्ड, शोध रिपोर्ट और ब्रिटिश लाइब्रेरी लंदन में उपलब्ध दस्तावेजों को खंगाला गया।
रिपोर्ट बताती है कि 1990 से 2020 के बीच इन नालों में बाढ़ की घटनाएं 68% तक बढ़ीं। 175 वर्षों में कुल्लू जिले में 128 बाढ़ की घटनाएं दर्ज की गईं। इनमें से 55% बादल फटने और भारी बारिश से जुड़ी रहीं, जबकि 87% घटनाएं जून से सितंबर के बीच ग्रीष्मकालीन मानसून में हुईं।
साल दर साल तबाही का सिलसिला
इस बरसात में भी खोखन, सरवरी, कसोल, फोजन और हुरला नालों ने तबाही मचाई।
25 जून को कसोल नाले में आई बाढ़ से कई गाड़ियां बहने से बचीं। 2023 में इसी नाले में 10 से ज्यादा वाहन बह गए थे।
सरवरी नाले ने पेयजल योजनाओं को नुकसान पहुंचाया।
हुरला नाले में तीन साल से लगातार बाढ़ आ रही है। यहां खेत, बगीचे और पुल तक बह चुके हैं।
अगस्त में खोखन नाले ने आठ गाड़ियां बहा दीं और लोगों की जमीन को नुकसान पहुंचा।
मौहल में स्थित जीबी पंत संस्थान को भी करीब दो करोड़ का नुकसान झेलना पड़ा।
सरकार को सौंपी रिपोर्ट
संस्थान ने मई 2025 में यह रिपोर्ट राज्य सरकार और राष्ट्रीय आपदा प्रबंधन प्राधिकरण को सौंपी है। इसमें साफ चेतावनी दी गई है कि अगर समय रहते कदम नहीं उठाए गए तो स्थिति और गंभीर हो सकती है।
सुझाए गए समाधान
रिपोर्ट में दो प्रमुख सुझाव दिए गए हैं
1. पांचों नालों का तत्काल तटीकरण (Channelization) किया जाए।
2. नालों के किनारे निर्माण और खनन पर रोक लगाई जाए।
साथ ही लोगों को भी नालों से दूर बसने की हिदायत दी गई है।
अब इन नालों पर भी होगा अध्ययन
संस्थान अब मनाली क्षेत्र के अन्य अति संवेदनशील नालों—अलेऊ, हरिपुर, मनालसु, बड़ाग्रां और खाकी—की स्थिति पर भी अध्ययन करेगा। ये नाले भी हर बरसात में खतरा बढ़ा रहे हैं।
—डॉ. केसर चंद, वैज्ञानिक, जीबी पंत राष्ट्रीय हिमालयी पर्यावरण अनुसंधान संस्थान
(SBP)
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