INA आजाद हिंद फौज दिवस पर विशेष लेख
लेखक: रमेश गोयत (पुत्र स्वतंत्रता सेनानी स्व. श्री मनी राम गोयत, गांव नरड़, जिला कैथल)
21 अक्टूबर का दिन भारतीय स्वतंत्रता संग्राम के इतिहास में एक स्वर्णिम अध्याय है। यह वह दिन है जब वर्ष 1943 में नेताजी सुभाष चंद्र बोस ने सिंगापुर में आजाद हिंद फौज और आजाद हिंद सरकार की स्थापना की, यह घोषणा करते हुए कि भारत अब स्वतंत्र है। यह दिन केवल एक तारीख नहीं, बल्कि उन लाखों वीर सैनिकों के बलिदान, साहस और देशभक्ति का प्रतीक है, जिन्होंने मातृभूमि की आजादी के लिए अपने प्राणों की आहुति दी। इन्हीं वीरों में से एक थे मेरे पिता, स्वतंत्रता सेनानी स्व. श्री मनी राम गोयत, जिनका जीवन देशप्रेम और त्याग की एक अनुपम गाथा है।
आजाद हिंद फौज: स्वतंत्रता का प्रतीक
आजाद हिंद फौज, जिसे इंडियन नेशनल आर्मी (INA) के नाम से भी जाना जाता है, का गठन नेताजी सुभाष चंद्र बोस ने ब्रिटिश शासन के खिलाफ सशस्त्र संघर्ष के लिए किया था। उनका नारा "तुम मुझे खून दो, मैं तुम्हें आजादी दूंगा" हर भारतीय के हृदय में आज भी गूंजता है। यह फौज केवल एक सैन्य संगठन नहीं थी, बल्कि यह भारतीयों में आत्मविश्वास, एकता और स्वतंत्रता की भावना को जागृत करने का एक सशक्त माध्यम थी। रानी झांसी रेजिमेंट जैसी महिला इकाइयों ने यह सिद्ध किया कि स्वतंत्रता संग्राम में पुरुषों के साथ-साथ महिलाएं भी कंधे से कंधा मिलाकर लड़ीं।
स्व. श्री मनी राम गोयत: देशभक्ति की मिसाल
मेरे पिता, स्व. श्री मनी राम गोयत, का जन्म हरियाणा के कैथल जिले के छोटे से गांव नरड़ में हुआ था। उस समय कैथल, करनाल जिले का हिस्सा था और देश पर ब्रिटिश शासन का अंधकार छाया हुआ था। लेकिन उनके हृदय में देशप्रेम की ज्योति सदा जलती रही। 10 जून 1941 को वे ब्रिटिश भारतीय सेना में भर्ती हुए, उनका सैनिक क्रमांक 50733 था और वे 13 हांगकांग सिंगापुर तोपखाना की गांधी ब्रिगेड में सिपाही के रूप में तैनात थे।
द्वितीय विश्व युद्ध के दौरान सिंगापुर में तैनाती के समय, नेताजी सुभाष चंद्र बोस के जोशीले भाषण ने उनके जीवन की दिशा बदल दी। नेताजी के शब्दों, "तुम मुझे खून दो, मैं तुम्हें आजादी दूंगा", ने उन्हें ब्रिटिश सेना छोड़कर आजाद हिंद फौज में शामिल होने के लिए प्रेरित किया। यह निर्णय उनके जीवन का एक ऐतिहासिक मोड़ था, जिसने उन्हें देशभक्ति के सर्वोच्च पथ पर ले गया।
युद्ध, कैद और अटूट विश्वास
आजाद हिंद फौज में शामिल होने के बाद, श्री मनी राम गोयत ने कई विदेशी मोर्चों पर ब्रिटिश शासन के खिलाफ बहादुरी से युद्ध लड़ा। मणिपुर, कोहिमा और इम्फाल जैसे युद्धक्षेत्रों में उनकी वीरता और समर्पण ने आजाद हिंद फौज की गौरव गाथा को और समृद्ध किया। युद्ध के दौरान उन्हें विदेशों और भारत में कई जेलों में बंदी बनाकर कठोर यातनाएं दी गईं। लेकिन इन अभावों और यातनाओं के बावजूद, नेताजी के सपनों के स्वतंत्र भारत के प्रति उनका विश्वास कभी डगमगाया नहीं।
गांव की वापसी: शहीद से जीवित नायक तक
स्वतंत्रता प्राप्ति के बाद, जब वे अपने गांव नरड़ लौटे, तो परिवार और ग्रामीणों को विश्वास ही नहीं हुआ कि वे जीवित हैं। परिवार ने तो उन्हें शहीद मान लिया था। कई लोगों ने उन्हें पहचानने से भी इंकार कर दिया। लेकिन मेरे पिता ने इस स्थिति को भी सकारात्मक रूप में स्वीकार किया। उन्होंने कहा था, "अगर मेरा नाम शहीदों में शामिल हो गया, तो इससे बड़ा सम्मान और क्या होगा।" यह उनकी विनम्रता और देशप्रेम की गहराई को दर्शाता है।
स्वतंत्रता के बाद: पुलिस सेवा में राष्ट्रसेवा
आजादी के बाद, श्री मनी राम गोयत ने राष्ट्रसेवा का संकल्प दोहराया और संयुक्त पंजाब पुलिस में भर्ती हो गए। 1966 में हरियाणा राज्य के गठन के बाद, वे हरियाणा पुलिस में स्थानांतरित हुए। अपने कर्तव्य, अनुशासन और ईमानदारी के लिए वे हमेशा प्रसिद्ध रहे। 1972 में वे हरियाणा पुलिस से पेंशन पर सेवानिवृत्त हुए और 1978 में उनका स्वर्गवास हो गया। उस समय मैं केवल 8 वर्ष का था, लेकिन उनके कर्म और देशभक्ति की कहानियां आज भी मेरे जीवन का मार्गदर्शन करती हैं।
सरकारी सम्मान और अमर विरासत
1972 में तत्कालीन प्रधानमंत्री श्रीमती इंदिरा गांधी ने आजाद हिंद फौज के वीर सैनिकों को ताम्रपत्र और ₹200 की समान पेंशन देकर सम्मानित किया। मेरे पिता भी इस राष्ट्रीय सम्मान से विभूषित हुए। यह सम्मान केवल एक पुरस्कार नहीं, बल्कि राष्ट्र की ओर से उन वीरों के प्रति कृतज्ञता का प्रतीक था।
हरियाणा सरकार और गांव नरड़ की जनता ने उनके योगदान को अमर बनाने के लिए कई कदम उठाए। आज गांव में स्थित सरकारी स्कूल का नाम उनके सम्मान में “स्वतंत्रता सेनानी श्री मनी राम गोयत पीएम श्री गवर्नमेंट मॉडल संस्कृति सीनियर सेकेंडरी स्कूल, नरड़ (कैथल)” रखा गया है। इसके साथ ही, गांव की एक सड़क को “स्वतंत्रता सेनानी श्री मनी राम गोयत मार्ग” के नाम से समर्पित किया गया है। हरियाणा सरकार ने उनके नाम पर एक आधुनिक ई-लाइब्रेरी स्थापित करने की स्वीकृति भी दी है, ताकि नई पीढ़ी उनके जीवन से प्रेरणा ले सके।
नई पीढ़ी के लिए प्रेरणा
श्री मनी राम गोयत का जीवन हमें सिखाता है कि देशभक्ति केवल युद्ध के मैदान तक सीमित नहीं है। यह एक ऐसी भावना है जो हर जिम्मेदारी, हर कर्तव्य और हर कार्य में प्रकट हो सकती है। सैनिक, पुलिस अधिकारी और एक पिता के रूप में उन्होंने जो मिसाल कायम की, वह आज भी हमें प्रेरित करती है। मेरे पिता कहते थे, "देश की सेवा कोई पद नहीं, एक भावना है—जो दिल में बस जाए, तो जीवन स्वयं एक तपस्या बन जाता है।"
नमन उन अमर बलिदानियों को
21 अक्टूबर, आजाद हिंद फौज दिवस, के अवसर पर मैं अपने पिता, स्वतंत्रता सेनानी स्व. श्री मनी राम गोयत, और उनके सभी साथियों को शत-शत नमन करता हूं। उनकी कहानी केवल इतिहास की किताबों तक सीमित नहीं है, बल्कि यह एक प्रेरणा का दीपक है, जो आने वाली पीढ़ियों को राष्ट्रप्रेम, अनुशासन और निष्ठा का मार्ग दिखाता रहेगा।
आजाद हिंद फौज के इस स्थापना दिवस पर, आइए हम सब मिलकर नेताजी सुभाष चंद्र बोस और उनके वीर सैनिकों के बलिदान को याद करें। उनका सपना एक स्वतंत्र, समृद्ध और एकजुट भारत था। यह हमारी जिम्मेदारी है कि हम उनके सपनों को साकार करने में अपना योगदान दें।
रमेश गोयत
जय हिंद!
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रमेश गोयत, लेखक
rameshgoyat2011@gmail.com
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