डिजिटल इंडिया के 10 वर्ष: डिजिटल विभाजित राष्ट्र से विश्व की डिजिटल राजधानी बनने तक भारत की परिवर्तनकारी यात्रा
1990 के दशक में ई-गवर्नेंस परियोजनाओं की शुरुआत के बावजूद, भारत लंबे समय तक 'डिजिटल विभाजन' से जूझता रहा। तकनीक तक सीमित पहुँच ने आर्थिक असमानता को बढ़ाया और विकास को प्रभावित किया। हालांकि, 1 जुलाई 2015 को प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी द्वारा शुरू किए गए डिजिटल इंडिया अभियान से अभूतपूर्व बदलाव आया है। इस पहल का उद्देश्य भारत को डिजिटल रूप से सशक्त समाज और ज्ञान आधारित अर्थव्यवस्था में बदलना था।
डिजिटल इंडिया पहल के 10 साल पूरे होने का जश्न मनाते हुए, भारत जो 2014 तक टेक्नोलॉजी में पिछड़ा माना जाता था, आज वहीं सेवाओं की डिजिटल डिलीवरी, डिजिटल अर्थव्यवस्था और रोजगार के अवसरों के विस्तार के माध्यम से सभी नागरिकों के जीवन में सुधार करके दुनिया की डिजिटल राजधानी बन गया है।
डिजिटल इंडिया पहल की सफलता को दर्शाते हुए, 95% से अधिक गांवों को अब इंटरनेट तक पहुंच प्राप्त हो गई है, ग्रामीण टेलीफोन कनेक्शन 2014 में 377.78 मिलियन से बढ़कर 536.65 मिलियन हो गए हैं। ग्रामीण टेली-घनत्व 2014 में 44% से बढ़कर 2025 में 59.06% हो गया है। इसी तरह, भारत में इंटरनेट प्रवेश दर 2014 में लगभग 14% से बढ़कर 2025 में 55% से अधिक हो गई है, इंटरनेट उपयोगकर्ताओं की संख्या 2014 में 25 करोड़ से बढ़कर 2025 में 97 करोड़ हो गई है, जो लगभग 288% की वृद्धि को दर्शाता है।
डिजिटल अर्थव्यवस्था का उदय
भारतीय अर्थव्यवस्था पिछले दशक में उल्लेखनीय गति से डिजिटल हुई है, भारत डिजिटल अर्थव्यवस्था रिपोर्ट 2024 के अनुसार भारत अब अमेरिका और चीन के बाद तीसरी सबसे बड़ी डिजिटल अर्थव्यवस्था है, जो यूके, जर्मनी और दक्षिण कोरिया जैसे विकसित देशों को पीछे छोड़ चुका है।
2022–23 में डिजिटल अर्थव्यवस्था का राष्ट्रीय आय में योगदान 11.74% था, जो 2024–25 तक 13.42% और 2029–30 तक लगभग 20% तक पहुँचने का अनुमान है—जो कृषि और विनिर्माण को भी पीछे छोड़ देगा। यह तेज़ी से बढ़ता क्षेत्र समग्र अर्थव्यवस्था की तुलना में लगभग दोगुनी रफ्तार से आगे बढ़ रहा है।
डिजिटल भुगतान क्रांति
यूनिफाइड पेमेंट्स इंटरफेस (UPI) — भारत की एक अनूठी डिजिटल भुगतान प्रणाली — आज यूएई, सिंगापुर, भूटान, नेपाल, श्रीलंका, फ्रांस और मॉरीशस सहित सात देशों में सक्रिय है। फ्रांस में इसका प्रवेश यूरोप में पहला कदम है, जो दर्शाता है कि भारत की तकनीकी दक्षता और डिजिटल इनोवेशन ने सबसे उन्नत पश्चिमी देशों को भी पीछे छोड़ दिया है।
गेट्स फाउंडेशन के अध्यक्ष, माइक्रोसॉफ्ट के को-फाउंडर और पूर्व सीईओ बिल गेट्स के शब्दों में, "आधार और UPI जैसी भारत की डिजिटल इनोवेशन ने डिजिटल सार्वजनिक इंफ्रास्ट्रक्चर के लिए 'स्वर्ण मानक' स्थापित किया है, जो अन्य देशों को दिखाता है कि अपने लोगों को बेहतर सेवाएँ कैसे प्रदान की जाती हैं।"
आज भारत की फिनटेक अपनाने की दर 87% है, जो वैश्विक औसत 67% से कहीं अधिक है। मई 2025 में UPI ने 25.14 लाख करोड़ रुपये का रिकॉर्ड लेन-देन दर्ज किया, जिसमें औसत दैनिक लेनदेन 81,106 करोड़ रुपये रहा — यह भारत में चल रही एक मूक डिजिटल क्रांति का प्रमाण है।
राजकोषीय आवंटन का अनुकूलन
प्रत्यक्ष लाभ अंतरण (DBT) देश की कल्याणकारी प्रणाली में एक क्रांतिकारी सुधार साबित हुआ है। DBT से पहले, कल्याणकारी योजनाओं में अक्सर लाभार्थियों की गलत पहचान, फर्जी प्रविष्टियाँ और बिचौलियों द्वारा भ्रष्टाचार की समस्याएँ होती थीं। लेकिन DBT ने आधार-सत्यापन के माध्यम से बिचौलियों और फर्जी प्रविष्टियों को हटाते हुए 44 लाख करोड़ रुपये सीधे लाभार्थियों तक पहुँचाए हैं।
इससे आधार-लिंक्ड सार्वजनिक वितरण प्रणाली (PDS) सुधारों से 3.48 लाख करोड़ रुपये की संचयी बचत हुई है, जिसमें अकेले खाद्य सब्सिडी से 1.85 लाख करोड़ रुपये (53%) का योगदान है।
DBT से पहले के दौर (2009-2013) में, सब्सिडी कुल सरकारी खर्च का लगभग 16% थी, जो सालाना 2.1 लाख करोड़ रुपये थी। 2024 तक, यह आंकड़ा घटकर 9% रह गया, जबकि लाभार्थी कवरेज 11 करोड़ से 16 गुना बढ़कर 176 करोड़ हो गया।
कवरेज में उल्लेखनीय वृद्धि के बावजूद सब्सिडी के बोझ में कमी, फर्जी लाभार्थियों और बिचौलियों को खत्म करके राजकोषीय आवंटन को अनुकूलित करने में डीबीटी की भूमिका को रेखांकित करती है। डीबीटी ने 5.87 करोड़ से अधिक अयोग्य राशन कार्ड धारकों को हटाने और 4.23 करोड़ डुप्लिकेट या फर्जी एलपीजी कनेक्शन रद्द करने में मदद की है।
ग्रामीण भारत से जुड़ाव
डिजिटल इंडिया ने भारतनेट परियोजना के तहत 6.92 लाख किमी ऑप्टिकल फाइबर बिछाकर 2.18 लाख ग्राम पंचायतों तक हाई-स्पीड इंटरनेट पहुँचाया है। प्रधानमंत्री ग्रामीण डिजिटल साक्षरता अभियान (पीएमजीदिशा) के माध्यम से 4.78 करोड़ ग्रामीण नागरिक डिजिटल साक्षर बने हैं,जिससे उन्हें जानकारी, सेवाओं और अवसरों तक पहुँचने में मदद मिली है। डिजिटल तकनीक ने वित्तीय सेवाओं को दूरदराज के क्षेत्रों के लोगों को करीब ला दिया है, भारत में आधे से अधिक फिनटेक उपभोक्ता अर्ध-शहरी और ग्रामीण क्षेत्रों से हैं। एक तिहाई से अधिक डिजिटल भुगतान उपयोगकर्ता ग्रामीण क्षेत्रों से हैं। उद्यमशीलता की भावना भारत के दूरदराज क्षेत्रों में भी फल-फूल रही है। 45% स्टार्टअप टियर 2 और 3 शहरों से आ रहे हैं, जिससे जिससे ग्रामीण भारत डिजिटल नवाचार और उद्यमिता का नया केंद्र बन रहा है।
समावेशी सार्वजनिक सेवाएँ
ई-गवर्नेंस पहलों ने भारत में सार्वजनिक सेवाओं को नया रूप दिया है। 709 जिलों में 4,671 ई-सेवाएँ उपलब्ध हैं, जबकि ग्रामीण क्षेत्रों में कॉमन सर्विस सेंटर 400+ डिजिटल सेवाएँ प्रदान कर रहे हैं। यूनिफाइड मोबाइल एप्लीकेशन फॉर न्यू-एज गवर्नेंस (UMANG) ऐप पर 1,668+ ई-सेवाएँ और 20,197+ बिल भुगतान सेवाएँ मौजूद हैं।
प्रामाणिक दस्तावेजों तक डिजिटल पहुंच प्रदान करने के लिए 2015 में शुरू की गई डिजी लॉकर के अब 51.6 करोड़ उपयोगकर्ता हैं। BHASHINI (भारत के लिए भाषा इंटरफ़ेस), जिसका उद्देश्य प्रौद्योगिकी के माध्यम से भारत की भाषाई विविधता को जोड़ना है, 1,600 से ज़्यादा AI मॉडल और 18 भाषा सेवाओं के साथ 35+ भाषाओं सहायता करता है। इसी तरह, वन नेशन वन सब्सक्रिप्शन (ONOS) पहल 30 अंतरराष्ट्रीय प्रकाशकों की 13,000 से ज़्यादा अकादमिक पत्रिकाओं तक पहुँच प्रदान करके भारत के रिसर्च परिदृश्य को बदल रही है।
सभी के लिए डिजिटल इकोसिस्टम
सार्वजनिक सेवाओं के अलावा, सरकार ने विभिन्न क्षेत्रों में भी ई-गवर्नेंस पहल शुरू की है। 2022 में लॉन्च किए गए ओपन नेटवर्क फॉर डिजिटल कॉमर्स (ONDC) ने 616 से अधिक शहरों में 7.64 लाख रजिस्टर्ड विक्रेताओं और सेवा प्रदाताओं के साथ खरीदारों, विक्रेताओं और सेवा प्रदाताओं, विशेष रूप से एमएसएमई के लिए एक खुला, समावेशी इकोसिस्टम बनाकर भारत में डिजिटल कॉमर्स को लोकतांत्रिक बनाया है। इसके अलावा, 2016 में लॉन्च किए गए सरकारी ई-मार्केटप्लेस (GeM) ने सरकारी विभागों के लिए खरीद को सुव्यवस्थित किया है और देश भर में 22.5 लाख से अधिक विक्रेताओं और सेवा प्रदाताओं के साथ 1.6 लाख से अधिक सरकारी खरीदारों को जोड़ा है।
सुझाव
- डिजिटल टेक्नोलॉजी को निर्यात के रूप में बढ़ावा दें: जिस प्रकार अन्य राष्ट्र अपनी टेक्नोलॉजी निर्यात करते हैं, उसी प्रकार ही भारत को भी यूपीआई या आधार आधारित प्रणाली जैसे डिजिटल टेक्नोलॉजी उपकरण अन्य राष्ट्रों को उपलब्ध कराने चाहिए जिससे यह निर्यात के रूप में आय का एक प्रमुख स्रोत बन सकता है।
- भविष्य की डिजिटल टेक्नोलॉजी के विकास के लिए रोजगार सृजन: जैसे-जैसे भारत डिजिटल टेक्नोलॉजी का प्रमुख निर्यातक बनता जाएगा, यह भारतीय युवाओं के लिए विकास संबंधित लाखों रोजगार अवसरों का सृजन करेगा।
- भ्रष्टाचार के विरुद्ध उपकरण के रूप में डिजिटल टेक्नोलॉजी को बढ़ावा दें: आधार और यूपीआई आधारित भारत का डिजिटल स्टैक, भ्रष्टाचार को रोकने के लिए विशेष रूप से विकासशील देशों और विश्व निकायों में वैश्विक प्रणालियों के लिए एक संप्रभु-अनुकूल सौम्य विकल्प के रूप में उभरना चाहिए।
- डिजिटल मुद्रा को वैश्विक मुद्रा के रूप में बढ़ावा दें: भारत को वैश्विक लेनदेन को सुविधाजनक बनाने के लिए खुद को वैश्विक केंद्र के रूप में स्थापित करना चाहिए, जहां डिजिटल मुद्रा और धन का हस्तांतरण दुनिया भर में व्यापार करने के लिए मानक बन जाएं।
प्रौद्योगिकी की दौड़ में पिछड़े भारत ने पिछले दशक में, डिजिटल इंडिया के माध्यम से खुद को वैश्विक डिजिटल नेतृत्व के मॉडल के रूप में स्थापित किया है। सुशासन और डिजिटलीकरण के माध्यम से नागरिकों को सशक्त बनाकर, डिजिटल इंडिया एक अधिक समावेशी, समृद्ध और डिजिटल रूप से जुड़े भारत का मार्ग प्रशस्त कर रहा है।
प्रो. हिमानी सूद
प्रो-चांसलर - चंडीगढ़ यूनिवर्सिटी
संस्थापक- इंडियन माइनॉरिटी फेडरेशन
himani.sood@cumail.in
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प्रो. हिमानी सूद, प्रो-चांसलर - चंडीगढ़ यूनिवर्सिटी
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