हर्ष गुप्ता: समर्पण, अनुशासन और उत्कृष्टता की मिसाल
रमेश गोयत
चंडीगढ। चंडीगढ़ के सेक्टर-44बी निवासी हर्ष गुप्ता ने अपने समर्पण, अनुशासन और कड़ी मेहनत से एक मिसाल कायम की है। हर्ष की शैक्षिक यात्रा करनाल के कुंजपुरा स्थित प्रतिष्ठित सैनिक स्कूल से शुरू हुई। वहीं से उनके भीतर देशभक्ति और राष्ट्र सेवा की भावना मजबूत हुई और उन्होंने अपने करियर को भारतीय सेना के प्रति समर्पित करने का निश्चय किया।
अपने लक्ष्य की ओर अग्रसर होते हुए, हर्ष ने देश की प्रतिष्ठित परीक्षा राष्ट्रीय रक्षा अकादमी/नौसेना अकादमी को सफलता पूर्वक उत्तीर्ण किया। इसके बाद उनका चयन भारतीय नौसेना अकादमी , एझिमाला, केरल में हुआ, जहां उन्होंने चार वर्षों तक कड़ा अनुशासन, कठोर प्रशिक्षण और कठिन परिश्रम के माध्यम से स्वयं को साबित किया।
हर्ष का सफर यहीं नहीं रुका। उन्होंने अपने असाधारण नेतृत्व गुणों और उत्कृष्ट अकादमिक प्रदर्शन के बल पर पासिंग आउट परेड में कमान संभालने का सम्मान प्राप्त किया, जो कि एक दुर्लभ और अत्यंत प्रतिष्ठित उपलब्धि है। यह अवसर केवल उन्हीं चुनिंदा कैडेट्स को मिलता है, जो अकादमी के दौरान उत्कृष्ट प्रदर्शन के साथ सभी के लिए प्रेरणास्रोत बनते हैं।
हर्ष की उपलब्धियों की सूची में एक और स्वर्णिम अध्याय तब जुड़ा जब उन्हें अकादमी के सर्वश्रेष्ठ सर्वांगीण प्रदर्शन के लिए चीफ ऑफ नेवल स्टाफ मेडल से सम्मानित किया गया। यह सम्मान हर्ष के कठोर परिश्रम, अनुशासन और राष्ट्र के प्रति उनके समर्पण का प्रमाण है।
हर्ष गुप्ता के परिवार की पृष्ठभूमि भी प्रेरणादायक है। उनके पिता संजीव कुमार गुप्ता, पंजाब, चंडीगढ़ में प्रधान महालेखाकार (लेखा परीक्षा) के कार्यालय में सहायक लेखा परीक्षा अधिकारी के पद पर कार्यरत हैं। उनकी मां मोनिका गुप्ता एक समर्पित गृहिणी हैं, जो परिवार को सशक्त और संगठित बनाए रखने में अहम भूमिका निभाती हैं। हर्ष के दादा भारतीय सेना के गौरवशाली भूतपूर्व सैनिक रहे हैं, जिन्होंने राष्ट्र सेवा की परंपरा को परिवार में आगे बढ़ाया। इस तरह हर्ष का परिवार सेवा, ईमानदारी और समर्पण की मजबूत नींव पर खड़ा है।
हर्ष गुप्ता की यह उपलब्धि न केवल उनके परिवार के लिए गर्व का विषय है, बल्कि पूरे देश के उन युवाओं के लिए भी एक प्रेरणा है, जो भारतीय सशस्त्र बलों में सेवा करने का सपना देखते हैं। हर्ष का जीवन इस बात का उदाहरण है कि यदि समर्पण और अनुशासन के साथ लक्ष्य की ओर बढ़ा जाए, तो कोई भी सफलता असंभव नहीं होती।
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