हिमाचल संगीत नाटक अकादमी की स्थापना की मांग, गेयटी थियेटर से उठी सशक्त आवाज
बाबूशाही ब्यूरो
शिमला, 12 जुलाई 2025 : ऐतिहासिक गेयटी थियेटर, शिमला: वैश्विक रंगमंच संदर्भ में अस्तित्व और भविष्य की संभावनाएं विषय पर आयोजित विशेष व्याख्यान के दौरान, राष्ट्रीय संगीत नाटक अकादमी पुरस्कार प्राप्त एवं प्रख्यात रंगनिर्देशक केदार ठाकुर ने वित्तीय बोझ से जूझ रहे हिमाचल प्रदेश में "हिमाचल संगीत नाटक अकादमी" की स्थापना की पुरजोर मांग उठाई।
राज्य सरकार का यह कदम न सिर्फ सांस्कृतिक उत्थान करेगा बल्कि राज्य पर सांस्कृतिक गतिविधियों से पड़ रहे वित्तीय बोझ को भी लगभग समाप्त ही कर देगा l हिमाचल संगीत नाटक अकादेमी भाषा एवं संस्कृति विभाग व गेयटी ड्रामेटिक सोसाइटी के साथ सांस्कृतिक उन्नयन में एक मज़बूत और आर्थिक रूप से सशक्त साझेदार के रूप में उभरेगा।
व्याख्यान के दौरान गेयटी थियेटर के ऐतिहासिक, सांस्कृतिक और वैश्विक महत्व पर बोलते हुए ठाकुर ने कहा,
“यह थियेटर केवल एक इमारत नहीं, बल्कि हिमाचल की सांस्कृतिक चेतना का जीवंत प्रतीक है। अब समय आ गया है कि इसकी परंपरा को संरक्षित रखने और नई पीढ़ी से जोड़ने के लिए एक राज्य स्तरीय सांस्कृतिक निकाय — ‘हिमाचल संगीत नाटक अकादमी’ की स्थापना की जाए।”
उन्होंने कहा कि हिमाचल की सांस्कृतिक विरासत में जहां एक ओर करियाला, बाँठड़ा, हरण, धाजा, भगत, ठोडा, हारुल, खेल व सवांग आदि प्रचलित लोक नाट्य विधाएं हैं तो दूसरी ओर कुल्लवी नाटी, किन्नौरी लोकनृत्य, पहाड़ी गायन, और पारंपरिक नाट्य विधाएं भी समृद्ध रही हैं।
अभी तक राष्ट्रीय स्तर की किसी समर्पित संस्था द्वारा हिमाचल की सांस्कृतिक विरासत को संरक्षित करने का कोई प्रयास नहीं हुआ है जो दुर्भाग्य पूर्ण है। उन्होंने चंडीगढ़ संगीत नाटक अकादमी का उदाहरण देते हुए यह प्रश्न उठाया कि जब एक केंद्र शासित प्रदेश में यह मॉडल बहुत सफलतापूर्वक काम कर पा रहा है, तो हिमाचल जैसे सांस्कृतिक रूप से समृद्ध राज्य में यह अब तक क्यों नहीं हुआ?
ठाकुर ने जो प्रस्ताव रखा, उसमें अकादमी के मुख्य उद्देश्य यह होंगे:
• हिमाचली प्रदर्शनकारी कलाओं का प्रलेखन और शोध
• राज्य स्तरीय रंग महोत्सवों और कार्यशालाओं का निरंतरता से आयोजन
• युवा कलाकारों के लिए छात्रवृत्तियाँ और फैलोशिप
• वरिष्ठ एवं युवा अति उत्कृष्ट कलाकारों को राज्य स्तरीय सम्मान
• राष्ट्रीय व अंतरराष्ट्रीय मंचों पर हिमाचल की सांस्कृतिक उपस्थिति जो अब तक शून्य है l
उन्होंने कहा कि यह अकादमी गेयटी थियेटर, शिमला को केंद्र बनाकर स्थापित की जा सकती है और इसे राष्ट्रीय संगीत नाटक अकादमी व संस्कृति मंत्रालय के सहयोग से संचालित किया जा सकता है, जिससे राज्य सरकार पर वित्तीय बोझ भी नहीं पड़ेगा और प्रदेश का रंगमंच भी राष्ट्रीय अंतराष्ट्रीय स्तर तक समृद्ध होगा l”
“यह एक कम लागत, उच्च प्रभाव वाली सांस्कृतिक पहल होगी, जो हिमाचल की आत्मा — उसकी लोक और रंगमंचीय परंपराओं — को जीवित रखेगी,”
ठाकुर ने अपने व्याख्यान में कहा कि गेयटी थिएटर शिमला को एक आर्थिक रूप से स्वावलंबी, पेशेवर, और दीर्घकालिक रूप से सशक्त सांस्कृतिक संस्थान बनाना अत्यंत आवश्यक है, जिससे यह वित्तीय बोझ की तरह केवल राज्य सरकार पर आश्रित न रहे और स्वतंत्र रूप से राष्ट्रीय-अंतरराष्ट्रीय स्तर पर अपनी गतिविधियाँ भी अपने ही संसाधनों से संचालित कर सके।
इस उद्देश्य को हासिल करने के लिए उन्होंने आवाज़ उठाई कि राज्य सरकार पर सांस्कृतिक गतिविधियों से पड़ने वाले अतिरिक्त आर्थिक बोझ को लगभग समाप्त करने और गेयटी ड्रामेटिक सोसाइटी को आर्थिक रूप से आत्मनिर्भर बनाने के लिए यह आवश्यक है कि हिमाचल प्रदेश सरकार गेयटी ड्रामेटिक सोसाइटी के माध्यम से राष्ट्रीय व अंतराष्ट्रीय स्तर के वित्त पोषक संस्थानों में गेयटी थिएटर शिमला के लिए *"विशेष आर्थिक पैकेज"* के लिए बढ़ चढ़ कर आवेदन करें जिनमें प्रमुख हैं ;
1. भारत सरकार का संस्कृति मंत्रालय (Ministry of Culture)
2. संगीत नाटक अकादमी, नई दिल्ली (Sangeet Natak Akademi)
3. राष्ट्रीय नाट्य विद्यालय (National School of Drama)
4. उत्तर क्षेत्रीय सांस्कृतिक केंद्र, पटियाला (NZCC) व अन्य सभी जोनल सांस्कृतिक केंद्र
5. CCRT – Centre for Cultural Resources and Training
6. ICCR
7. अन्य राज्य अकादमियाँ व सांस्कृतिक निकाय (राज्य स्तरीय सांस्कृतिक आदान प्रदान संचालित करने हेतु)
गेयटी ड्रामेटिक सोसाइटी को कॉर्पोरेट सोशल रिस्पॉन्सिबिलिटी (CSR) के अंतर्गत स्थायी फंडिंग हेतु पैनल में शामिल करने की मांग
गेयटी ड्रामेटिक सोसाइटी को प्रतिष्ठित कंपनियों के CSR कार्यक्रमों के अंतर्गत स्थायी सूचीबद्धता (Permanent Empanelment) हेतु सरकार के माध्यम से आवेदन करना चाहिए l जबकि गेयटी थिएटर अभी भी सीमित संसाधनों में काम कर रहा है और *वित्तीय घाटे* में चल रहा है जबकि थोड़ी सी मज़बूत कोशिशों से गेयटी थिएटर न केवल आर्थिक रूप से आत्मनिर्भर होगा बल्कि यह रंगमंच के विश्व मानचित्र पर अपनी एक अलग न्यायपूर्ण पहचान बनाने में भी सक्षम होगा l”
इस मौके पर प्रदेशभर से आए रंगकर्मियों, छात्रों, शोधकर्ताओं, और सांस्कृतिक कर्मियों ने इस मांग का समर्थन किया और इसे नीति-स्तर पर जल्द लागू करने का आह्वान किया। (SBP)
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