Sikh Panth Special : तख्तों के कौन से जत्थेदार बाद में अकाली दल के अध्यक्ष भी रहे और सियासतदान भी? पढ़ें पूरी खबर
Babushahi Bureau
चंडीगढ़, 13 अगस्त, 2025 : सिख धर्म के पवित्र तख्तों के जत्थेदारों के राजनीति में आने को लेकर इन दिनों पंजाब में माहौल काफी गरमाया हुआ है। यह बहस तब और तेज हो गई, जब श्री अकाल तख्त साहिब के पूर्व जत्थेदार ज्ञानी हरप्रीत सिंह ने अकाली दल के बागी गुट द्वारा बनाए गए नए दल की अध्यक्षता स्वीकार कर ली।
कई आलोचक यह सवाल उठा रहे हैं कि श्री अकाल तख्त साहिब जैसे सर्वोच्च पद पर रहने के बाद ज्ञानी हरप्रीत सिंह राजनीति में क्यों आए और एक अलग अकाली दल के अध्यक्ष क्यों बने?
इन सवालों के जवाब में ज्ञानी हरप्रीत सिंह ने अपने कदम को सही ठहराते हुए इतिहास के पन्ने पलटे हैं। उन्होंने उन सभी पूर्व जत्थेदारों और धार्मिक हस्तियों की एक सूची जारी की है, जो उच्च धार्मिक पदों पर रहने के बाद सक्रिय राजनीति में आए और यहां तक कि अकाली दल के अध्यक्ष भी बने।
ज्ञानी हरप्रीत सिंह द्वारा दिए गए 7 ऐतिहासिक उदाहरण:
1. जत्थेदार तेजा सिंह अकरपुरी : वह श्री अकाल तख्त साहिब के जत्थेदार थे, जो बाद में शिरोमणि अकाली दल के अध्यक्ष बने। पहली ऑल इंडिया अकाली कांफ्रेंस 2021 फरवरी 1940 ई में इन्हीं की अध्यक्षता में हुई थी और इसी दौरान 'अकाल रेजिमेंट' की स्थापना भी की गई।
2. ज्ञानी गुरमुख सिंह मुसाफिर : वह श्री अकाल तख्त साहिब के जत्थेदार थे, जो बाद में राज्यसभा के सदस्य बने और 1 नवंबर, 1966 को पंजाब के मुख्यमंत्री भी बने।
3. जत्थेदार ऊधम सिंह नागोके : वह श्री अकाल तख्त साहिब के जत्थेदार थे, जो बाद में शिरोमणि गुरुद्वारा प्रबंधक कमेटी (SGPC) और शिरोमणि अकाली दल, दोनों के अध्यक्ष बने।
4. जत्थेदार अच्छर सिंह : वह श्री अकाल तख्त साहिब और तख्त श्री केसगढ़ साहिब, दोनों के जत्थेदार रहे और बाद में शिरोमणि अकाली दल के अध्यक्ष बने। करनाल में हुई ऑल-इंडिया अकाली कांफ्रेंस भी इन्हीं की अध्यक्षता में हुई थी।
5. सिंह साहिब ज्ञानी भूपिंदर सिंह : वह श्री दरबार साहिब, अमृतसर के मुख्य ग्रंथी थे, जो बाद में शिरोमणि अकाली दल के अध्यक्ष बने और राज्यसभा के सदस्य भी रहे।
6. जत्थेदार मोहन सिंह तूड़ : वह श्री अकाल तख्त साहिब के जत्थेदार थे, जो बाद में शिरोमणि अकाली दल के अध्यक्ष बने और लोकसभा के सदस्य भी चुने गए।
7. संत हरचंद सिंह लोंगोवाल : वह तख्त श्री दमदमा साहिब के जत्थेदार थे, जो बाद में शिरोमणि अकाली दल के अध्यक्ष बने। वह इमरजेंसी के खिलाफ लगे मोर्चे और धर्म युद्ध मोर्चे के 'मोरचा डिक्टेटर' भी थे।
अब सवाल यह उठता है कि क्या ज्ञानी हरप्रीत सिंह के इस ऐतिहासिक जवाब से यह विवाद और बहस खत्म हो जाएगी? इसका जवाब तो भविष्य ही देगा।
MA
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