हिमाचल प्रदेश में बढ़ती आपदाएं प्राकृतिक नहीं, नीतिगत गलती; जन संगठनों की बैठक में अव्यवस्थित विकास पर उठे सवाल
बाबूशाही ब्यूरो
मंडी, 17 नवंबर 2025 : मंडी में प्रदेश भर के जन संगठनों की बैठक में अव्यवस्थित विकास पर सवाल उठे हैं। इस दौरान सामुदायिक संसाधनों की रक्षा का प्रस्ताव रखा गया।
हिमाचल प्रदेश जलवायु परिवर्तन, अव्यवस्थित विकास नीतियों और लगातार बढ़ती आपदाओं की गंभीर चुनौतियों से जूझ रहा है। अव्यवस्थित विकास बताता है कि हिमाचल में बढ़ती आपदाएं प्राकृतिक नहीं, नीतिगत गलती है। इन्हीं मुद्दों को केंद्र में रखकर 15-16 नवंबर को दो दिनों तक मंडी में प्रदेश के विभिन्न जन संगठनों की दो बैठक हुई। बैठक में सुरक्षित हिमाचल के लिए सामूहिक रणनीति और मजबूत जन-दबाव तैयार करने पर चर्चा हुई। बैठक में कहा गया कि हिमाचल में हाल के वर्षों में बारिश, भूस्खलन और बाढ़ जैसी घटनाएं केवल प्राकृतिक आपदाएं नहीं, बल्कि अव्यवस्थित और असंतुलित विकास मॉडल का प्रत्यक्ष परिणाम हैं। बैठक में मौजूद जागोरी ग्रामीण से जुड़ी चंद्रकांता ने कहा कि सरकारें जिस तरह बिना पर्यावरणीय संवेदनशीलता के परियोजनाएं लागू कर रही हैं, वहीं हिमाचल की आपदाओं की जड़ हैं। इसे प्राकृतिक कहना वास्तविकता में सही नहीं है। हिमधरा पर्यावरण समूह के प्रतिनिधि प्रकाश भंडारी ने कहा कि सामुदायिक संसाधनों जंगल, घास के मैदान, नदी-नालों को सुरक्षित रखे बिना कोई भी आपदा-नियंत्रण संभव नहीं। जहां सामुदायिक भूमि पर अंधाधुंध छेड़छाड़ होती है, वहीं से आपदाओं की शुरुआत होती है।
वरिष्ठ सामाजिक कार्यकर्ता श्याम सिंह ने स्थानीय सहमति को अनिवार्य बताते हुए कहा कि लोगों को नजरअंदाज कर दी गई परियोजनाएं अंतत: खतरा ही बनती हैं। इसके अलावा पद्मश्री नेकराम शर्मा ने जलवायु परिवर्तन के प्रभावों पर बात रखते हुए कहा कि हिमाचल की कृषि और बागबानी को नए जलवायु परिदृश्यों के अनुसार ढालना होगा। (SBP)
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