कब होंगे SGPC के चुनाव? गुरुद्वारा चुनाव के मुख्य आयुक्त को सेवा विस्तार देने से इनकार, जानें पूरा राजनीतिक गणित
Babushahi Bureau
नई दिल्ली/चंडीगढ़ | 10 अगस्त, 2025 : सिखों की सबसे बड़ी और सबसे शक्तिशाली संस्था, शिरोमणि गुरुद्वारा प्रबंधक कमेटी (SGPC) के चुनाव एक बार फिर अनिश्चितकाल के लिए टल गए हैं। केंद्र सरकार ने गुरुद्वारा चुनाव के मुख्य आयुक्त, जस्टिस (रिटायर्ड) एस.एस. सरोन का कार्यकाल बढ़ाने से इनकार कर दिया है, जिससे यह महत्वपूर्ण पद खाली हो गया है। इस घटनाक्रम ने उन चुनावों पर पूरी तरह से 'ब्रेक' लगा दिया है, जो पहले से ही एक दशक से ज्यादा समय से लंबित हैं और इसने सिख राजनीति में एक नई बहस छेड़ दी है।
पूरा मामला: आखिर क्यों और कैसे टल गए चुनाव?
गुरुद्वारा चुनाव प्रक्रिया के रुकने की मुख्य वजह कानूनी और प्रक्रियात्मक है:
1. कानूनी मजबूरी: जस्टिस एस.एस. सरोन 30 जून, 2025 को 70 वर्ष के हो गए। सिख गुरुद्वारा अधिनियम, 1951 में यह स्पष्ट नियम है कि मुख्य आयुक्त 70 साल की उम्र के बाद इस पद पर नहीं रह सकते। इसी कानून के कारण केंद्र सरकार ने उनका कार्यकाल बढ़ाने से इनकार कर दिया।
2. पद खाली, प्रक्रिया ठप: अब चुनाव कराने वाले मुख्य अधिकारी का पद ही खाली हो गया है। जब तक नया अधिकारी नहीं आएगा, चुनाव से जुड़ी कोई भी प्रक्रिया आगे नहीं बढ़ सकती।
नई नियुक्ति में देरी क्यों और चुनाव कब तक टलेंगे?
नए आयुक्त की नियुक्ति की प्रक्रिया लंबी और जटिल है:
1. गृह मंत्रालय पहले पंजाब और हरियाणा हाईकोर्ट से तीन योग्य रिटायर्ड जजों का एक पैनल मांगेगा।
2. इस लिस्ट को एक सर्च-कम-सिलेक्शन कमेटी जांचेगी।
3. इसके बाद कैबिनेट की नियुक्ति समिति (ACC) से अंतिम मंजूरी मिलेगी।
इस पूरी प्रक्रिया में कम से-कम दो से तीन महीने लगते हैं। पिछला रिकॉर्ड देखें तो यह पद 2014 से 2020 तक खाली रहा था। विशेषज्ञों का मानना है कि इन सभी कारणों से चुनाव अब 2026 के अंत या 2027 की शुरुआत तक खिंच सकते हैं।
इस देरी के पीछे की राजनीति: किसे हो रहा फायदा?
यह देरी ऐसे समय में हुई है जब सिख राजनीति में भारी उथल-पुथल है। इस यथास्थिति (Status Quo) से कई राजनीतिक दलों को फायदा होता दिख रहा है:
1. शिरोमणि अकाली दल (बादल गुट): सबसे बड़ा फायदा बादल गुट को है। 2011 में चुने गए हाउस के दम पर उनका SGPC पर संस्थागत नियंत्रण बना हुआ है। चुनाव न होने से उनकी सत्ता सुरक्षित रहती है।
2. केंद्र सरकार (BJP): केंद्र भी कोई जल्दी में नहीं दिख रहा। अकाली दल में इस समय फूट है (एक बादल गुट, एक बागी गुट)। यह देरी केंद्र को यह देखने का समय देती है कि कौनसा गुट मजबूत होता है, ताकि 2027 के पंजाब विधानसभा चुनावों से पहले किसी के साथ गठबंधन की संभावनाएं तलाशी जा सकें।
लोकतंत्र और वैधता पर सबसे बड़ा संकट
SGPC के चुनाव आखिरी बार 2011 में हुए थे। इस लंबी देरी के कारण कई गंभीर सवाल उठ रहे हैं:
1. एक पूरी पीढ़ी वंचित: 2011 के बाद 21 साल के हुए युवा सिखों की एक पूरी पीढ़ी को कभी भी अपने प्रतिनिधि चुनने का मौका नहीं मिला है।
2. पुराना सदन: 2011 में चुने गए 30 से ज्यादा सदस्यों की मृत्यु हो चुकी है, फिर भी वही पुराना सदन काम कर रहा है।
3. वैधता का संकट: आलोचकों का कहना है कि जब एक संस्था का नेतृत्व 13 साल पुराने सदन द्वारा चुना जा रहा हो, तो उसकी लोकतांत्रिक वैधता पर गंभीर सवाल खड़े होते हैं।
जब तक गुरुद्वारा चुनाव आयोग में मुख्य आयुक्त की नियुक्ति तेजी से नहीं होती, सिखों की यह 'मिनी-संसद' अपने उस दावे को और कमजोर कर देगी, जिसमें वह 21वीं सदी में पूरे 'पंथ' का प्रतिनिधित्व करने की बात करती है।
MA
Click to Follow हिन्दी बाबूशाही फेसबुक पेज →