हरियाणा के 80 नगर निकायों में नॉमिनेटेड सदस्यों की नियुक्ति, कानून के प्रावधानों के उलट सत्तारूढ़ पार्टी के नेताओं की तैनाती पर सवाल
एडवोकेट हेमंत कुमार बोले – “विशेषज्ञों की जगह हार चुके या उपेक्षित नेताओं को किया जा रहा मनोनीत”
बाबूशाही ब्यूरो
चंडीगढ़, 10 जुलाई 2025:
हरियाणा शहरी स्थानीय निकाय विभाग ने प्रदेश के 80 नगर निकायों – जिनमें नगर निगम, नगरपालिका परिषद एवं नगरपालिका समितियाँ शामिल हैं – में मनोनीत सदस्यों (नॉमिनेटेड मेंबर्स) की अधिसूचना 9 जुलाई को जारी कर दी है। यह अधिसूचना विभाग के आयुक्त एवं सचिव विकास गुप्ता के हस्ताक्षर से दो अलग-अलग नोटिफिकेशन के माध्यम से जारी की गई।
हालांकि इस नियुक्ति प्रक्रिया पर सवाल उठने लगे हैं। पंजाब एवं हरियाणा हाईकोर्ट के एडवोकेट और नगरपालिका कानून विशेषज्ञ हेमंत कुमार ने बताया कि यह मनोनयन संविधान के अनुच्छेद 243(आर) और हरियाणा नगर निगम कानून, 1994 तथा हरियाणा नगरपालिका अधिनियम, 1973 की भावना के प्रतिकूल है। कानून के अनुसार, नगर निकायों में केवल उन्हीं व्यक्तियों को मनोनीत किया जा सकता है, जो नगरपालिका प्रशासन में विशेष ज्ञान या अनुभव रखते हों।
एडवोकेट हेमंत का कहना है कि व्यवहार में यह नियम केवल कागज़ों तक सीमित रह गया है। सरकार अक्सर ऐसे लोगों को नॉमिनेट करती है, जो या तो सत्ताधारी दल के कार्यकर्ता होते हैं या चुनाव हार चुके नेता, या फिर जिन्हें पार्टी टिकट नहीं मिल पाया होता। यह मनोनयन राजनीतिक “एडजस्टमेंट” का एक माध्यम बन गया है।
कानूनी सीमाएँ और सुविधाएँ:
नगर निगम व परिषदों में अधिकतम 3, और नगरपालिका समितियों में अधिकतम 2 नॉमिनेटेड सदस्य रखे जा सकते हैं।
ये सदस्य कोई भी वोटिंग अधिकार नहीं रखते, चाहे सामान्य बैठक हो या विशेष।
वे सीनियर डिप्टी मेयर या डिप्टी मेयर का चुनाव नहीं लड़ सकते, न ही नगर निगम की स्थायी समितियों के सदस्य बन सकते हैं।
उनके लिए कोई शपथग्रहण अनिवार्य नहीं, केवल सरकारी गजट में प्रकाशित अधिसूचना ही पर्याप्त होती है।
मानदेय का बोझ जनता की जेब पर:
हेमंत कुमार ने यह भी बताया कि नॉमिनेटेड सदस्यों को हर माह मानदेय के रूप में:
नगर निगम में ₹15,000,
नगरपालिका परिषद में ₹12,000, और
नगरपालिका समिति में ₹8,000 दिए जाते हैं।
यह खर्चा हरियाणा सरकार नहीं बल्कि स्थानीय निकाय के फंड से किया जाता है। चाहे बैठक हो या न हो, सभी को प्रतिमाह यह राशि मिलती रहती है, जिससे हर महीने लाखों रुपये का बोझ नगरपालिका फंड पर आता है।
निष्कर्ष:
नॉमिनेटेड मेंबर व्यवस्था का उद्देश्य स्थानीय निकायों को विशेषज्ञों की सलाह से सशक्त बनाना था, लेकिन राजनीतिक उपयोग ने इस व्यवस्था की प्रासंगिकता और पारदर्शिता पर प्रश्नचिह्न खड़ा कर दिया है। विशेषज्ञों का मानना है कि सरकार को इस प्रक्रिया में संवैधानिक एवं विधिक प्रावधानों का पालन करते हुए पारदर्शिता लानी चाहिए।
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