चंडीगढ़ प्रशासन की कार्यप्रणाली पर उठे सवाल: पेंशन और मकान एनओसी के लिए भी लोग पहुंच रहे राज्यपाल के दरबार में
रमेश गोयत
चंडीगढ़, 23 जुलाई 2025:
यूटी प्रशासन की कार्यप्रणाली पर एक बार फिर सवालिया निशान खड़े हो गए हैं। पेंशन, मकान की एनओसी और अन्य बुनियादी सुविधाओं से जुड़ी समस्याओं के समाधान के लिए लोगों को प्रशासनिक कार्यालयों की बजाय सीधे पंजाब के राज्यपाल एवं चंडीगढ़ प्रशासक श्री गुलाबचंद कटारिया के जनता दरबार का दरवाजा खटखटाना पड़ रहा है।
प्रत्येक सप्ताह आयोजित हो रहे राज्यपाल के जनता दरबार में बड़ी संख्या में बुजुर्ग, विधवा महिलाएं, कर्मचारी और आम नागरिक पहुंच रहे हैं। इन लोगों की शिकायतें होती हैं कि महीनों से पेंशन अटकी हुई है, मकान की एनओसी के लिए फाइलें धूल फांक रही हैं, अफसर सुनवाई नहीं करते, और कॉल या मेल का कोई जवाब नहीं मिलता।
यह सवाल बनता है – क्या पेंशन और मकान एनओसी जैसे सामान्य प्रशासनिक कामों के लिए भी अब लोगों को राज्यपाल के पास जाना पड़ेगा?
जनता में यह धारणा बनती जा रही है कि यूटी प्रशासन के कई विभागों में जवाबदेही का अभाव है और अफसरशाही जनसुविधाओं से जुड़े मामलों में लापरवाही बरत रही है। कई मामलों में देखा गया है कि शिकायतकर्ता महीनों से नगर निगम, संपदा कार्यालय या सामाजिक सुरक्षा विभाग के चक्कर काटते हैं, लेकिन फाइल आगे नहीं बढ़ती।
राज्यपाल खुद कह चुके हैं – "जनता की पीड़ा को समझना और समाधान देना ही मेरा धर्म है", लेकिन क्या यह जिम्मेदारी सिर्फ राज्यपाल की है?
विशेषज्ञों का मानना है कि यदि सामान्य प्रशासनिक सेवाओं के लिए भी लोगों को प्रशासक के पास जाना पड़े, तो यह सीधे तौर पर विभागीय असफलता और अधिकारियों की लापरवाही का प्रमाण है। राज्यपाल का दरबार अंतिम विकल्प होना चाहिए, न कि रूटीन समाधान का मंच।
अब यह जांच का विषय है कि संबंधित विभागों के अधिकारी क्या कर रहे हैं? क्यों पेंशन के लाभार्थी महीनों तक इंतज़ार करते हैं? क्यों मकान की एनओसी जैसी प्रक्रिया में भी अनावश्यक देरी हो रही है?
यदि प्रशासन समय रहते इस स्थिति को नहीं सुधारेगा, तो आमजन का भरोसा व्यवस्था से उठता चला जाएगा और हर छोटी-बड़ी समस्या के लिए लोग सीधे राजभवन की चौखट पर दस्तक देते रहेंगे।
प्रशासन को चाहिए कि वह अपने सिस्टम को दुरुस्त करे, जवाबदेही तय करे और अधिकारियों को आम जनता की समस्याओं को प्राथमिकता से हल करने के स्पष्ट निर्देश दे। वरना यह स्थिति न केवल प्रशासनिक अक्षमता को उजागर करती है, बल्कि शासन की छवि को भी धूमिल करती है।
"तीन दर्जन अफसर, फिर भी जनता दरबार!"
चंडीगढ़ प्रशासन में आईएएस, पीसीएस, एचसीएस और दानिक्स कैडर के तीन दर्जन से अधिक अधिकारी तैनात हैं, जिनका कार्य आम लोगों की समस्याओं का समाधान करना है।
इसके बावजूद पेंशन, मकान की एनओसी और अन्य छोटे-मोटे कामों के लिए भी लोगों को राज्यपाल एवं प्रशासक के जनता दरबार में जाना पड़ रहा है।
यह स्थिति प्रशासनिक ढांचे पर गंभीर सवाल खड़े करती है – क्या ये अफसर सिर्फ फाइलें देखने के लिए हैं या जनता की सेवा के लिए?
जब इतने अधिकारी होने के बाद भी आम नागरिकों को 'राज दरबार' की चौखट पर जाना पड़े, तो यह निश्चित रूप से 'जांच का विषय' बनता है।
प्रशासन को अब जवाब देना होगा कि जनता की सुनवाई नीचे स्तर पर क्यों नहीं हो पा रही?
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