Himachal Pradesh: दो दिवसीय हिमालय सम्मेलन 15–16 नवम्बर को साक्षरता भवन, मंडी में होगा
हिमाचल प्रदेश — पर्यावरण, जलवायु परिवर्तन, आपदा, आजीविका और जन सहभागिता पर होगी चर्चा
बाबूशाही ब्यूरो
मंडी, 14 नवंबर 2025 :
हिमालय, जो हमारे देश की जीवनरेखा है, आज गंभीर संकट के दौर से गुजर रहा है। हिमाचल प्रदेश जैसे संवेदनशील पर्वतीय राज्य जलवायु परिवर्तन, अव्यवस्थित विकास और बढ़ती आपदाओं के प्रभावों को प्रत्यक्ष रूप से झेल रहे हैं। यह एक निर्णायक समय है — जब हमें यह तय करना होगा कि हम विनाश की राह पर आगे बढ़ेंगे या प्रकृति के साथ पुनर्संतुलन की दिशा में कदम बढ़ाएँगे।
हिमालय नीति अभियान के संयोजक गुमान सिंह ने कहा कि औद्योगिक क्रांति के बाद से पृथ्वी का औसत तापमान लगभग 1.2°C बढ़ चुका है। वैज्ञानिक अध्ययन बताते हैं कि हिमालयी क्षेत्र वैश्विक औसत की तुलना में लगभग दो गुना तेज़ी से गर्म हो रहा है, जिससे यहां की पारिस्थितिकी, हिमनद और जल स्रोत गंभीर संकट में हैं।
अंतरराष्ट्रीय समझौतों के बावजूद, कार्बन उत्सर्जन कम करने की प्रतिबद्धताएँ पूरी नहीं हो पाई हैं। विकसित देश, जो विकासशील देशों की तुलना में कहीं अधिक कार्बन उत्सर्जन करते हैं, अपने दायित्वों से पीछे हट रहे हैं। वहीं भारत जैसे विकासशील देश न्यायपूर्ण जलवायु समाधान के लिए तकनीकी सहयोग और जवाबदेही की मांग कर रहे हैं।
पिछले कुछ वर्षों में हिमाचल प्रदेश में असामान्य बारिश, हिमनदों के पिघलने, बाढ़ और भूस्खलन जैसी आपदाओं ने हजारों परिवारों को प्रभावित किया है। इन आपदाओं के पीछे सिर्फ “प्रकृति का क्रोध” नहीं, बल्कि हमारे असंतुलित विकास मॉडल की भूमिका भी है — वनों की कटाई, नदी घाटियों में अव्यवस्थित निर्माण, जल स्रोतों की अनदेखी और पर्यावरणीय आकलन के बिना सड़कों व अन्य परियोजनाओं का विस्तार इसके प्रमुख कारण हैं।
इन आपदाओं के कारण हजारों परिवार भूमिहीन और बेघर हो चुके हैं। 2023 की आपदा से प्रभावित लोग अब भी पुनर्वास की प्रतीक्षा में हैं, जबकि हर साल नई आपदाएँ और नए विस्थापन जुड़ते जा रहे हैं। केंद्रीय वन और पर्यावरण कानूनों के कारण राज्य सरकार पुनर्वास की प्रक्रिया आगे नहीं बढ़ा पा रही है, क्योंकि हिमाचल का लगभग 67% भूभाग वन क्षेत्र के अंतर्गत आता है और राज्य के पास पर्याप्त गैर-वन भूमि उपलब्ध नहीं है।
सिर्फ सड़कें, बिजली या पर्यटन का विस्तार विकास का प्रतीक नहीं हो सकते। सच्चा विकास वह है जो जीवन की गुणवत्ता, पारिस्थितिक संतुलन और स्थानीय समुदायों की आत्मनिर्भरता को मजबूत करे। कुल्लू, मंडी, शिमला, किन्नौर और लाहौल-स्पीति जैसे क्षेत्रों में अति-पर्यटन, भूमि क्षरण और संसाधनों पर बढ़ते दबाव ने खतरे की घंटी बजा दी है। अब समय है कि विकास की दिशा बदलकर पारिस्थितिक पुनर्स्थापन (इको-रेस्टोरेशन), जलग्रहण क्षेत्र प्रबंधन (वाटरशेड मैनेजमेंट) और सतत आजीविका पर ध्यान केंद्रित किया जाए।
हिमाचल की अर्थव्यवस्था कृषि, बागवानी, वानिकी और पर्यटन पर आधारित है। बदलते समय के साथ पहाड़ों के लोगों के सामने नई चुनौतियाँ और अवसर दोनों हैं। अब आवश्यक है कि संवैधानिक प्रावधानों को मजबूती से लागू करते हुए पंचायतों और स्थानीय निकायों को योजना निर्माण, आपदा प्रबंधन और प्राकृतिक संसाधनों के संरक्षण में प्रमुख भूमिका लेनी होगी।
इन सभी ज्वलंत मुद्दों पर सामूहिक चर्चा और समाधान की दिशा में आगे बढ़ने के उद्देश्य से, 15–16 नवम्बर 2025 को मंडी में दो दिवसीय हिमालय सम्मेलन आयोजित किया जा रहा है। आयोजकों ने सभी संगठनों, कार्यकर्ताओं, शोधकर्ताओं और नागरिकों से आग्रह किया है कि इस पहल में शामिल होकर अपने विचार, अनुभव और सहयोग साझा करें।
यह होगी दो दिवसीय कार्यक्रम की रूपरेखा
*15 नवम्बर 2025 | जनसुनवाई*
आपदा प्रभावित समुदायों की आवाज़ों को केंद्र में लाने का प्रयास — उनके अनुभवों, संघर्षों और सीखों के माध्यम से प्रभावी पुनर्वास की रणनीतियाँ तैयार करना।
*16 नवम्बर 2025 | चर्चा और आगे की राह*
1. हिमालयी पारिस्थितिकी पर मेगा प्रोजेक्ट्स का प्रभाव: स्वतंत्र पारिस्थितिकीय जोखिम आकलन और हिमालय के लिए विशेष नीति पर विमर्श (हिमालय नीति अभियान की सिफारिश)।
2. भूमि उपयोग परिवर्तन (Land Use Change) और कानून: जमीन से जुड़े कानूनों और राज्य की इन्वेस्टमेंट नीतियों (इज ऑफ डूइंग बिजनेस) पर चर्चा — वन संरक्षण अधिनियम, वन अधिकार अधिनियम, हिमाचल प्रदेश टेनेंसी एंड लैंड रिफॉर्म्स एक्ट 1972 (धारा 118) आदि अन्य कानून।
3. ग्रामीण हिमालय के लिए सतत विकास रणनीति: नागरिक जागरूकता, पर्यावरण-अनुकूल आजीविका और जवाबदेह शासन की दिशा में साझा कार्ययोजना।
4. हिमालय के जल, जैव विविधता और सामाजिक विविधता का सम्मान करने वाला विकास मॉडल: आपदा तैयारी और जलवायु अनुकूल नीतियों पर विचार-विमर्श।
यह सम्मेलन हिमालय क्षेत्र — विशेष रूप से हिमाचल प्रदेश — के गहराते पर्यावरणीय संकट, बदलते जलवायु परिदृश्य, आपदा अनुभवों और स्थानीय समुदायों की आवाज़ों को एक साझा मंच पर लाने का प्रयास है। इसका उद्देश्य नीति, विज्ञान और जन आंदोलनों के बीच संवाद स्थापित करना है, ताकि ऐसा विकास मॉडल उभर सके जो हिमालय की आत्मा के अनुरूप हो — संतुलित, समावेशी और भविष्य-सुरक्षित।
यह पहल इस विश्वास पर आधारित है कि हिमालय को बचाने की मुहिम तभी सफल होगी, जब यह गाँव-गाँव और पंचायत-पंचायत तक पहुँचे — जब जनता स्वयं अपने जल, जंगल और जमीन की संरक्षक बने।
आयोजक:
एकल नारी शक्ति संगठन | भूमि अधिग्रहण प्रभावित मंच | हिमालय नीति अभियान | हिमलोक जागृति मंच | हिमाचल ज्ञान-विज्ञान समिति | हिमधरा पर्यावरण समूह | जीभी वैली टूरिज्म डेवलपमेंट एसोसिएशन | लोकतंत्र | लोकतांत्रिक राष्ट्रनिर्माण अभियान | मंडी साक्षरता समिति | पीपल फॉर हिमालय अभियान | पर्वतीय महिला अधिकार मंच | सामाजिक आर्थिक समानता के लिए जन अभियान | सेव लाहौल-स्पीति
(SBP)
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