चंडीगढ़ एसडीएम कार्यालय में 'वायलेशन नोटिस' का खेल: करोड़ों की वसूली, सवालों के घेरे में प्रशासन !
बाबूशाही ब्यूरो
चंडीगढ़, 10 जून – चंडीगढ़ में एसडीएम कार्यालयों द्वारा जारी किए जाने वाले निर्माण उल्लंघन नोटिस अब एक गंभीर विवाद का विषय बनते जा रहे हैं। आरोप हैं कि इन नोटिसों के ज़रिए एक सुनियोजित और बार-बार दोहराया जाने वाला चक्र चल रहा है – जिसमें करोड़ों रुपये के जुर्माने तो वसूले जा रहे हैं, लेकिन पारदर्शिता और जवाबदेही नदारद है। इस मामले की कोई आधिकारिक पुष्टि नहीं है मगर चर्चा का विषय है।
"वायलेशन हटाओ, नहीं तो जुर्माना भरो" – लेकिन फिर भी खत्म नहीं होता खेल
स्थानीय सूत्रों की मानें तो रिहायशी और व्यावसायिक संपत्तियों पर नियमों के उल्लंघन को लेकर नोटिस जारी करना अब एक सामान्य प्रक्रिया बन गई है। इन नोटिसों में चेतावनी दी जाती है कि तय समयसीमा में वायलेशन नहीं हटाया गया तो जुर्माना लगेगा – जो धीरे-धीरे हजारों से लाखों और फिर करोड़ों तक पहुंच सकता है।
लेकिन हैरानी की बात यह है कि वायलेशन हटने के बाद भी प्रक्रिया समाप्त नहीं होती। नए नोटिस, नए दंड और बार-बार दोहराए जाने वाला यही सिलसिला – जिसे अब लोग 'नोटिस का खेल' कहने लगे हैं।
काग़ज़ों में साफ़, ज़मीन पर जस का तस
कई मामलों में यह भी देखने में आया है कि बिना किसी फील्ड निरीक्षण के, रिकॉर्ड में वायलेशन को हटा हुआ दिखा दिया गया – जबकि मौके पर निर्माण जस का तस मौजूद रहा। इससे प्रशासनिक पारदर्शिता पर गंभीर सवाल खड़े हो गए हैं: आखिर यह निर्णय किसके निर्देश पर लिया गया? और इसमें कौन-कौन अधिकारी संलिप्त हैं?
'सोर्स' से निपटते हैं बड़े नोटिस?
सूत्रों का दावा है कि भारी भरकम जुर्माने वाले मामलों में अक्सर ‘सोर्स’ और ऊपरी संपर्कों के माध्यम से समझौते किए जाते हैं। कहीं जुर्माना घटा दिया जाता है, तो कहीं फाइलें ठंडे बस्ते में डाल दी जाती हैं। यह संदेह पैदा करता है कि कहीं यह पूरा सिस्टम ही एक संगठित चक्र तो नहीं बन गया है?
लग्जरी कार बनी चर्चा का विषय
हाल ही में एक अधिकारी द्वारा एक महंगी लग्जरी गाड़ी भी खरीदने पर चर्चा का विषय बनी हुई है। हालांकि इस पर कोई आधिकारिक बयान सामने नहीं आया है।
नागरिक संगठन बोले – "जांच हो, जवाबदेही तय हो"
पारदर्शिता की मांग कर रहे संगठनों ने प्रशासन से स्पष्ट सवाल किए हैं:
पिछले दो वर्षों में कितने वायलेशन नोटिस जारी हुए?
कुल कितना जुर्माना लगाया गया?
और वास्तव में वसूली कितनी हुई?
इन सवालों का उत्तर यह तय करेगा कि क्या प्रशासनिक कार्रवाई ज़मीनी हकीकत पर आधारित थी या केवल फाइलों की खानापूर्ति।
प्रशासन की चुप्पी और बढ़ती सुर्खियाँ
इस पूरे मामले को लेकर अभी तक प्रशासन की ओर से कोई स्पष्ट प्रतिक्रिया नहीं आई है। लेकिन जिस तरह से यह मामला चर्चाओं में है, उससे स्पष्ट है कि अब यह महज़ एक अफवाह नहीं, बल्कि एक बड़ी प्रशासनिक पड़ताल का विषय बन चुका है।
अब देखना यह होगा कि क्या इस ‘नोटिस चक्र’ की जांच के लिए कोई स्वतंत्र और निष्पक्ष समिति गठित होती है, या यह मामला भी अन्य विवादों की तरह समय के साथ दबा दिया जाएगा
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