मुसलमानों को राष्ट्रीय अल्पसंख्यक दर्जा तुरंत समाप्त किया जाए, भारत को चाहिए समानता, तुष्टीकरण नहीं : सुखमिंदरपाल सिंह ग्रेवाल भूखड़ी कलां
चंडीगढ़, 5 अक्तूबर 2025: भारतीय जनता पार्टी के राष्ट्रीय नेता सुखमिंदरपाल सिंह ग्रेवाल भूखड़ी कलां ने आज कहा कि उन्होंने मुसलमानों को दिए गए तथाकथित “संवैधानिक अल्पसंख्यक” दर्जे की तत्काल समीक्षा और वापसी की औपचारिक मांग की है। उन्होंने इसे समानता और न्याय के सिद्धांतों पर दशकों से चल रहे एक संवैधानिक छल और राजनीतिक धोखे के रूप में करार दिया।
उन्होंने कहा कि यह अत्यंत विडंबनापूर्ण और शर्मनाक है कि 20 करोड़ से अधिक आबादी वाला समुदाय, जो कई राज्यों में राजनीतिक रूप से बेहद प्रभावशाली है, आज भी “अल्पसंख्यक” का विशेषाधिकार भोग रहा है। ग्रेवाल ने तीखे शब्दों में कहा कि यह तुष्टीकरण की राजनीति अब खत्म होनी चाहिए।
ग्रेवाल ने कहा कि भारत में मुसलमान अब अल्पसंख्यक की सीमा से बहुत आगे निकल चुके हैं। उन्होंने कहा, “वे कई राज्यों में मजबूत राजनीतिक शक्ति, आर्थिक रूप से प्रभावशाली वर्ग और निर्णायक वोट बैंक बन चुके हैं। फिर भी वे उन संवैधानिक सहूलियतों का लाभ उठा रहे हैं जो वास्तव में कमजोर तबकों के लिए थीं। यह समानता नहीं, बल्कि भारत के सच्चे अल्पसंख्यकों के साथ अन्याय है।”
उन्होंने कहा कि अल्पसंख्यक का दर्जा राष्ट्रीय स्तर पर नहीं, बल्कि राज्यवार तय होना चाहिए, क्योंकि उत्तर प्रदेश, बिहार, पश्चिम बंगाल, केरल, असम और जम्मू-कश्मीर जैसे राज्यों में मुसलमान संख्यात्मक और राजनीतिक रूप से प्रभुत्वशाली हैं। “जब इन राज्यों में वे बहुसंख्यक हैं, तो उन्हें राष्ट्रीय स्तर पर अल्पसंख्यक लाभ कैसे मिल सकता है? यह सिख, जैन, बौद्ध, ईसाई और पारसी समुदायों का खुला अपमान है, जो सचमुच संरक्षण के पात्र हैं,” उन्होंने तीखे शब्दों में कहा।
ग्रेवाल ने सरकारी आंकड़ों का हवाला देते हुए कहा कि आर्थिक सलाहकार परिषद के अनुसार, भारत में मुस्लिम आबादी 1950 में 9.84% से बढ़कर 2015 में 14% से अधिक हो गई, जबकि हिंदू आबादी 84.68% से घटकर 78.06% पर आ गई। 2023 तक मुसलमानों की संख्या 20 करोड़ से अधिक हो चुकी है, जबकि सिख 1.85%, ईसाई 2.36%, बौद्ध 0.81%, जैन 0.36% और पारसी मात्र 0.004% हैं। उन्होंने कहा कि इतने बड़े वर्ग को अब भी ‘अल्पसंख्यक’ कहना केवल राजनीतिक पाखंड और संवैधानिक दुरुपयोग है।
उन्होंने कहा कि केंद्र सरकार को अब साहसिक कदम उठाते हुए मुसलमानों का राष्ट्रीय अल्पसंख्यक दर्जा समाप्त करना चाहिए और सभी संवैधानिक संरक्षण उन वास्तविक अल्पसंख्यकों की ओर मोड़ना चाहिए जिनकी संस्कृति, शिक्षा, धार्मिक संस्थान और अस्तित्व सच में खतरे में हैं। किसी एक प्रभावशाली समुदाय को स्थायी विशेषाधिकार देना लोकतंत्र के मूल सिद्धांतों के खिलाफ है।
ग्रेवाल ने चेतावनी दी कि अनियंत्रित अवैध घुसपैठ, धार्मिक परिवर्तन और जनसांख्यिकीय हेरफेर ने कई सीमावर्ती राज्यों में आबादी का संतुलन खतरनाक रूप से बदल दिया है। उन्होंने कहा, “भले ही मुस्लिम जनन दर पिछले 15 वर्षों में 1% घटी हो, लेकिन अवैध आव्रजन और धर्मांतरण के नेटवर्क इस वृद्धि को लगातार बढ़ा रहे हैं। यह जनसंख्या वृद्धि नहीं, बल्कि जनसंख्या आक्रमण है।”
उन्होंने कहा कि अगर केंद्र और चुनाव आयोग ने जल्द कदम नहीं उठाए, तो यह जनसांख्यिकीय असंतुलन जल्द ही राष्ट्रीय सुरक्षा संकट बन जाएगा। उन्होंने कहा, “अब बहुत हो चुका, तुष्टीकरण की राजनीति खत्म होनी चाहिए। भारत को अब दिखावे की नहीं, सच्ची न्यायपूर्ण नीतियों की जरूरत है। अल्पसंख्यक ब्लैकमेलिंग का दौर अब समाप्त होना चाहिए।”
उन्होंने अंत में कहा कि अब समय आ गया है संवैधानिक सुधार का। मुसलमानों को अब राष्ट्रीय अल्पसंख्यक के रूप में नहीं देखा जाना चाहिए और सिख, जैन, बौद्ध, ईसाई व पारसी समुदायों के अधिकारों की सच्चे अर्थों में रक्षा और सुदृढ़ीकरण होना चाहिए।