वर्ल्ड थैलेसीमिया डे पर डॉ नीरज ने चेताया : भारत में 42 मिलियन लोग हैं थैलेसीमिया के वाहक, हर साल 15,000 बच्चे पैदा होते हैं इस बीमारी के साथ
साथ मिलकर हराएँ थैलसिमिआ को - शादी से पहले कुंडली मिलाने के साथ थैलासीमिया की जांच भी करवाएं - डॉ नीरज
चंडीगढ़ |
भारत में हर साल 10 से 15 हजार बच्चे थैलेसीमिया मेजर जैसी गंभीर बीमारी के साथ जन्म लेते हैं। इस अनुवांशिक रक्त विकार से जूझ रहे मरीजों की संख्या लगातार बढ़ रही है। वर्ल्ड थैलेसीमिया डे आई एम् ए के पूर्व प्रेजिडेंट डॉ नीरजकी ओर से जागरूकता अभियान चलाया गया, जिसमें समय पर जांच और इलाज पर जोर दिया गया।
क्या है थैलेसीमिया?
थैलेसीमिया एक ऐसी बीमारी है जिसमें शरीर में हीमोग्लोबिन ठीक से नहीं बन पाता। इससे शरीर में ऑक्सीजन की कमी हो जाती है। यह बीमारी तब होती है जब मां और पिता दोनों थैलेसीमिया के वाहक होते हैं। खुद वाहक व्यक्ति को कोई लक्षण नहीं होते, लेकिन दो वाहकों के बच्चे को यह बीमारी हो सकती है।
साधारण टेस्ट से हो सकती है समय रहते पहचान
पेडिएट्रिशियन डॉ. नीरज कुमार, के अनुसार
“अगर बच्चे बार-बार थकते हैं, खून की कमी रहती है, या उनका शारीरिक विकास धीमा है तो यह थैलेसीमिया का संकेत हो सकता है। साधारण ब्लड टेस्ट से इसकी पहचान संभव है।”
इलाज में नियमित ब्लड ट्रांसफ्यूजन, शरीर में जमा आयरन को निकालने वाली दवाएं, और कुछ मामलों में बोन मैरो ट्रांसप्लांट किया जाता है। नई तकनीक जीन थैरेपी से अब इस बीमारी को जड़ से खत्म करने की उम्मीद भी बढ़ी है।
डॉ. पवनदीप सिंह, शिशु रोग विशेषज्ञ, मदरहुड कहते हैं,
“हमारा काम सिर्फ इलाज करना नहीं है, बल्कि परिवारों को जानकारी देना और उन्हें पूरा सहयोग देना भी है। अगर शादी से पहले या प्रेग्नेंसी के शुरुआती दौर में HbA2 टेस्ट करवा लिया जाए तो इस बीमारी से बचा जा सकता है।”
थीम: साथ मिलकर थैलेसीमिया को हराएं
इस साल वर्ल्ड थैलेसीमिया डे की थीम है—‘Together for Thalassaemia’। मदरहुड हॉस्पिटल्स ने सभी माता-पिता और युवाओं से अपील की है कि सामयिक जांच करवाएं, जागरूक रहें और थैलेसीमिया से लड़ाई में भागीदारी करें ।
Kk