चंडीगढ़ ट्रैफिक पुलिस की तानाशाही बनी जनता की मुसीबत;
नाजायज़ चालान, डराने-धमकाने और बिना कारण रोकने की घटनाओं से बढ़ा तनाव
रमेश गोयत
पंचकूला/चंडीगढ़, 13 जुलाई — चंडीगढ़ की ट्रैफिक पुलिस का रवैया इन दिनों आम लोगों के लिए परेशानी का कारण बनता जा रहा है। शहर में प्रवेश करने वाले वाहनों को हर मोड़ पर, खासकर स्लीप रोड पर जिस तरह से रोका और चेक किया जा रहा है, उसने यह सवाल खड़ा कर दिया है कि "सबसे ज़्यादा खेल स्लीप रोड पर ही क्यों होता है? यह जांच का विषय है।"
चंडीगढ़ में घुसते ही चालकों की चेकिंग, जाते समय क्यों नहीं?
यह भी एक महत्वपूर्ण और सोचने योग्य पहलू है कि जब कोई वाहन चंडीगढ़ में प्रवेश करता है तो स्लीप रोड पर ट्रैफिक पुलिस तुरंत हरकत में आ जाती है, मगर जब वही वाहन शहर से बाहर निकलता है, तो ऐसा कोई चेकिंग सिस्टम नजर नहीं आता। आखिर यह दोहरा मापदंड क्यों?
वरिष्ठ नागरिक राजबीर सिंह, भारतीय रिटायर्ड सुपरिंटेंडेंट (ऑफिस ऑफ एडवोकेट जनरल, हरियाणा – हाईकोर्ट) और मनीमाजरा ईडब्ल्यूएस रेजिडेंस वेलफेयर एसोसिएशन के वरिष्ठ उपाध्यक्ष ने कहा कि चंडीगढ़ ट्रैफिक पुलिस की कार्यप्रणाली अब तानाशाही जैसी हो चुकी है। बिना किसी स्पष्ट कारण के चालकों को रोका जाता है, और कई बार गाड़ियों को ऐसे निशाना बनाया जाता है जैसे कोई अपराधी हों।
शहर में ट्रैफिक जाम और पुलिस की टकराहट दोनों बन रहे संकट
पंचकूला हाउसिंग बोर्ड से लेकर मध्यमार्ग तक, अम्बाला-ज़ीरकपुर रोड, मोहाली, नयागांव और पीजीआई जैसी जगहों से चंडीगढ़ में प्रवेश करने वाले हजारों लोगों को रोज ट्रैफिक जाम और पुलिस की पूछताछ दोनों से जूझना पड़ता है।
"लोग अपने शौंक पूरे करने नहीं, ज़रूरतों के लिए आते हैं"
चंडीगढ़ में सरकारी कार्यालय, पीजीआई, हाईकोर्ट, एशिया की सबसे बड़ी मोटर मार्केट जैसी संस्थाएं हैं, जहां आम लोग इलाज, न्याय या व्यवसायिक कारणों से आते हैं। ऐसे में हर रोज की पूछताछ, कागज़ देखने के नाम पर तंग करना, और बिना कारण चालान काटना, उनके समय और मानसिक शांति दोनों पर भारी पड़ता है।
कैमरे हैं, फिर भी हर चौराहे पर पुलिस क्यों?
जब शहर में 300 करोड़ रुपये से अधिक खर्च कर आधुनिक कैमरा सिस्टम लगाया गया है और लाखों चालान इन कैमरों से स्वतः हो रहे हैं, तो फिर हर चौराहे पर पुलिस की तैनाती क्यों? जनता यह सवाल कर रही है कि क्या यह चेकिंग वाकई सुरक्षा के लिए है या फिर किसी और मंशा से?
राजबीर सिंह ने कहा, "ट्रैफिक पुलिस ड्यूटी सेवा का कार्य है, लेकिन कुछ मुलाजिम इसे बापोती समझ बैठे हैं। ऐसे कर्मचारियों का रोटेशन होना चाहिए ताकि व्यवस्था में पारदर्शिता बनी रहे।"
राजधानी नहीं, 'खौफ का इलाका' बनता जा रहा है चंडीगढ़?
वरिष्ठ नागरिक राजबीर सिंह, भारतीय रिटायर्ड सुपरिंटेंडेंट (ऑफिस ऑफ एडवोकेट जनरल, हरियाणा – हाईकोर्ट) और मनीमाजरा ईडब्ल्यूएस रेजिडेंस वेलफेयर एसोसिएशन के वरिष्ठ उपाध्यक्ष, ने इस गंभीर समस्या पर आवाज़ उठाई है।
उनका कहना है –"लोग चंडीगढ़ घूमने नहीं, अपने ज़रूरी कामों से आते हैं — पीजीआई, हाईकोर्ट, सरकारी दफ्तर, व्यापार आदि। लेकिन यहां घुसते ही उन्हें पुलिस के रोकने, डराने और चालान काटने का सामना करना पड़ता है। बाहर की गाड़ियों को ऐसे टारगेट किया जाता है जैसे वे कोई अपराधी हों।"
ट्रैफिक जाम, तनाव और झगड़ों की जड़ – बेवजह चेकिंग
पंचकूला हाउसिंग बोर्ड से लेकर मध्यमार्ग, मोहाली, नयागांव, अम्बाला-ज़ीरकपुर और पीजीआई जैसे सभी मार्गों से चंडीगढ़ में रोजाना भारी संख्या में वाहन प्रवेश करते हैं। लेकिन सबसे ज्यादा ट्रैफिक स्लीप रोड पर रोका जाता है। इससे न केवल जाम की स्थिति बनती है बल्कि कई बार होमगार्ड के अचानक सामने आ जाने से दुर्घटनाएं भी होते-होते बचती हैं।
जनता का संदेश: सहयोग करो, डर मत फैलाओ
उन्होंने प्रशासन से अपील की कि ट्रैफिक पुलिस को विशेष प्रशिक्षण दिया जाए ताकि वह जनता के प्रति सहयोगात्मक रवैया अपनाए और कानून का डर दिखाने की बजाय जनसेवा की भावना से कार्य करे।
चंडीगढ़ जैसे अनुशासित शहर में ट्रैफिक पुलिस की दोहरी नीति और तानाशाही से जनता त्रस्त है। स्लीप रोड जैसे मार्गों पर विशेष रूप से पुलिसिया रवैया लोगों में डर पैदा कर रहा है। अब वक्त आ गया है कि प्रशासन इस रवैये पर गंभीरता से विचार करे और व्यवस्था में सुधार लाए — ताकि चंडीगढ़ आने वाला हर व्यक्ति खुद को सुरक्षित और सम्मानित महसूस कर सके, न कि डरा हुआ।
पुलिस सरकार के लिए पैसा कमाने का जरिया नहीं है!
मैं यह साफ कहना चाहता हूँ कि पुलिस की ड्यूटी ‘आमदनी बढ़ाने’ की नहीं, बल्कि ‘जनसेवा’ की है।
पुलिस नियमों में कहीं नहीं लिखा कि ‘चालान से इतना रेवेन्यू आएगा’। लिखा है — "सहायता, सुरक्षा और सहयोग"।
अगर सरकार को पैसा कमाना है, तो इनकम टैक्स, एक्साइज, रजिस्ट्रेशन जैसे विभाग हैं।
पुलिस का काम डर पैदा करना नहीं, भरोसा जगाना होना चाहिए।
पुलिस सेवा बने, धंधा नहीं।
— राजबीर सिंह
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