129 वर्ष की आयु में योगगुरु स्वामी शिवानंद का निधन — तप, सेवा और साधना की एक जीवित मूर्ति अब स्मृति बनी
योग, सेवा और तपस्या की जीवंत मिसाल माने जाने वाले स्वामी शिवानंद सरस्वती अब इस दुनिया में नहीं रहे। 129 वर्षों की अविश्वसनीय आयु में भी पूरी तरह सक्रिय और आत्मनिर्भर जीवन जीने वाले इस संत का रविवार को वाराणसी में निधन हो गया। उनके निधन से काशी ही नहीं, देशभर में शोक की लहर दौड़ गई। उनकी अंतिम यात्रा में श्रद्धालुओं का जनसैलाब उमड़ पड़ा सारे लोग आखों मे आंसू लिए उन्हें अंतिम बार प्रणाम कर रहे थे। एक ऐसा साधक, जिसने न कभी शोहरत चाही, न सुविधा, केवल सेवा को ही धर्म माना।
सादगी में शक्ति, सेवा में साधना
2022 में पद्मश्री से सम्मानित स्वामी शिवानंद अपने सादगीपूर्ण जीवन, अनुशासन, और अटूट सेवा भावना के लिए जाने जाते थे। वे न सिर्फ योग के ज्ञाता थे, बल्कि वे हर दिन सुबह योगाभ्यास करते थे। वे स्वयं खाना बनाते, सफाई करते और दूसरों की मदद में लगे रहते।
स्थानीय निवासी धर्मेंद्र सिंह टिंकू बताते हैं, “1998 से हम बाबा को देख रहे थे। उन्होंने कभी भेदभाव नहीं किया। जिस साधना से उन्होंने उम्र को हराया, वैसी साधना आज के युवा भी नहीं कर पाते।”
कुष्ठ रोगियों के लिए मसीहा बने
स्वामी शिवानंद ने अपनी पूरी जिंदगी समाज के सबसे वंचित तबके को समर्पित कर दी। वे 400 से 600 कुष्ठ रोगियों के बीच नियमित रूप से जाते, उनकी झोपड़ियों में मिलते और मदद करते। यही नहीं, उन्होंने अपने जीवन में सेवा को प्रचार से दूर रखा। अनुयायी परिमल मुखर्जी कहते हैं, “उन्हें देखना ही जीवन बदलने जैसा था। उन्होंने सेवा को जीकर दिखाया, सिर्फ उपदेश नहीं दिए।”
प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने दी श्रद्धांजलि
प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने भी X (पूर्व ट्विटर) पर श्रद्धांजलि अर्पित करते हुए लिखा: "योग और साधना को समर्पित शिवानंद बाबा जी का जीवन पीढ़ियों को प्रेरणा देता रहेगा। उनका शिवलोक गमन हम सभी के लिए अपूरणीय क्षति है।" PM मोदी ने बाबा के साथ अपनी एक पुरानी तस्वीर भी साझा की, जो एक साधु और एक राष्ट्र प्रमुख के आत्मिक जुड़ाव को दर्शाती है।
100 वर्षों तक महाकुंभ में भागीदारी
स्वामी शिवानंद 2025 में तब सुर्खियों में आए जब पता चला कि वे लगातार 100 वर्षों से महाकुंभ मेले में भाग ले रहे थे। 2019 में उन्हें योग रत्न अवॉर्ड से भी सम्मानित किया गया था।
अब केवल स्मृतियों में जीवित रहेंगे बाबा
उनका जीवन किसी ग्रंथ से कम नहीं था — हर दिन सेवा, हर सांस साधना। वे चले गए, लेकिन उनके द्वारा जलाई गई योग और सेवा की मशाल सदियों तक बुझने वाली नहीं।