हरियाणा विधानसभा में नौ माह बाद भी नेता प्रतिपक्ष की नियुक्ति नहीं, कैबिनेट दर्जे के पद पर सरकार कर रही बचत: एडवोकेट हेमंत कुमार
तीन दर्जन से अधिक विपक्षी विधायकों के बावजूद कांग्रेस ने नहीं चुना सदन में अपना नेता
रमेश गोयत
चंडीगढ़, 26 जुलाई 2025:
हरियाणा विधानसभा के गठन को नौ महीने पूरे हो चुके हैं, लेकिन अब तक सदन में नेता प्रतिपक्ष जैसे महत्वपूर्ण संवैधानिक पद पर किसी की नियुक्ति नहीं हो सकी है। एडवोकेट हेमंत कुमार, जो कि विधायी मामलों के जानकार हैं, ने इसे बेहद असामान्य स्थिति बताते हुए कहा कि यह हरियाणा विधानसभा के छह दशकों के इतिहास में पहली बार हो रहा है कि विपक्ष के पास बहुसंख्यक विधायक (कांग्रेस के 37 विधायक) होने के बावजूद नेता प्रतिपक्ष का पद खाली पड़ा है।
हेमंत के अनुसार, चूंकि कांग्रेस विधायक दल (सीएलपी) ने आज तक विधानसभा अध्यक्ष हरविन्द्र कल्याण के समक्ष अपने नेता का औपचारिक रूप से चयन कर नाम प्रस्तुत नहीं किया है, इसलिए अध्यक्ष द्वारा उसे नेता प्रतिपक्ष के रूप में मान्यता देने की प्रक्रिया भी लंबित है।
ऐतिहासिक दृष्टांत और कानूनी प्रावधान
हेमंत कुमार ने बताया कि वर्ष 1982 में भी छठी विधानसभा में लोकदल-भाजपा गठबंधन के पास 37 सीटें थीं, लेकिन विवादास्पद फैसले के तहत भजनलाल को मुख्यमंत्री नियुक्त कर दिया गया था। उस समय भी चंद्रावती को नेता प्रतिपक्ष के रूप में मान्यता मिली थी, हालांकि तब दल-बदल कानून अस्तित्व में नहीं था।
वर्तमान में हरियाणा विधानसभा में नेता प्रतिपक्ष की नियुक्ति को लेकर स्पष्ट प्रावधान हैं।
1975 के "हरियाणा विधानसभा (सदस्यों का वेतन, भत्ते और पेंशन) अधिनियम" की धारा 2(डी) और 4 में नेता प्रतिपक्ष की परिभाषा, वेतन, भत्ते और कैबिनेट मंत्री के समकक्ष दर्जे का स्पष्ट उल्लेख है।
साथ ही, मार्च 2021 में प्रक्रिया एवं कार्य संचालन नियमावली में संशोधन कर यह स्पष्ट कर दिया गया कि नेता प्रतिपक्ष वह होगा जो सरकार को छोड़कर सबसे बड़े विपक्षी दल का नेता हो और उसकी सदस्य संख्या न्यूनतम 10 हो।
सरकार को हो रही ‘वेतन-भत्तों’ में बचत
हेमंत का मानना है कि नेता प्रतिपक्ष के अभाव में जहां एक ओर लोकतांत्रिक प्रक्रिया की कमजोरी झलक रही है, वहीं राज्य सरकार को इस पद के वेतन-भत्तों, सरकारी आवास, वाहन, स्टाफ आदि पर होने वाला मासिक खर्च—जो औसतन ₹3 से ₹4 लाख के बीच होता है—की बचत भी हो रही है।
उल्लेखनीय है कि पूर्व नेता प्रतिपक्ष भूपेंद्र सिंह हुड्डा ने अब तक सेक्टर-7, चंडीगढ़ स्थित वह सरकारी कोठी खाली नहीं की है, जो उन्हें 14वीं विधानसभा में इस पद पर रहते हुए आवंटित की गई थी।
नियुक्तियों में पड़ रहा असर
विधानसभा में नेता प्रतिपक्ष न होने से कई संवैधानिक निकायों की नियुक्ति प्रक्रिया भी प्रभावित हो रही है। हालांकि कानून में यह भी प्रावधान है कि समिति में रिक्ति के कारण नियुक्ति अमान्य नहीं मानी जाएगी, फिर भी हरियाणा मानवाधिकार आयोग और राज्य सूचना आयोग जैसी संस्थाओं की चयन समितियों में यह पद रिक्त रहा। मई 2025 में भूपेंद्र हुड्डा को कांग्रेस प्रतिनिधि के तौर पर समिति में शामिल किया गया, न कि औपचारिक नेता प्रतिपक्ष के रूप में।
Click to Follow हिन्दी बाबूशाही फेसबुक पेज →