Chd' पुराने सरकारी कंडम वाहन सड़कों पर मौत बनकर दौड़ रहे, प्रशासन की नीति केवल कागजों तक सीमित
वाहनों की आरसी (रजिस्ट्रेशन सर्टिफिकेट) और बीमा जैसे अनिवार्य दस्तावेज़ खत्म फिर भी धड़ल्ले से सरकारी उपयोग
रमेश गोयत
चंडीगढ़, 12 मई। लगभग 2 वर्ष पूर्व चंडीगढ़ प्रशासन ने 15 साल पुराने वाहनों को स्क्रैप करने की नीति अपनाई थी। इस नीति का उद्देश्य था कि सड़कों पर चलने वाले जर्जर और खतरनाक सरकारी वाहनों को हटाकर सड़क सुरक्षा को बढ़ावा दिया जाए। लेकिन एक साल बाद भी यह नीति केवल फाइलों और कागजों तक सीमित नजर आ रही है। सड़कों पर आज भी दर्जनों कंडम सरकारी वाहन मौत बनकर दौड़ रहे हैं। हैरानी की बात यह है कि इन वाहनों की आरसी (रजिस्ट्रेशन सर्टिफिकेट) और बीमा जैसे अनिवार्य दस्तावेज़ भी खत्म हो चुके हैं, फिर भी इन्हें धड़ल्ले से सरकारी उपयोग में लाया जा रहा है।
इंजीनियरिंग विभाग और नगर निगम के पास सबसे अधिक कंडम गाड़ियां
सूत्रों से मिली जानकारी के अनुसार, सबसे अधिक कंडम सरकारी वाहन इंजीनियरिंग विभाग के अधीन कार्यरत एक्शन, एसडीओ वही तहसीलदार, नगर निगम और अन्य प्रशासनिक अधिकारियों के पास हैं। इन वाहनों की हालत इतनी खराब है कि किसी भी समय ये बड़े हादसे का कारण बन सकते हैं। बावजूद इसके, इन्हें रोजाना विभिन्न सरकारी कार्यों के लिए इस्तेमाल किया जा रहा है।
शहरवासियों का प्रशासन पर कटाक्ष: 'कानून सिर्फ जनता के लिए होता है, प्रशासन के लिए नहीं'
शहर के लोगों ने इस मुद्दे पर प्रशासन की कड़ी आलोचना की है। लोगों का कहना है कि प्रशासन ने जनता के लिए तो 15 साल पुराने वाहनों को स्क्रैप करने की नीति लागू कर दी, लेकिन खुद इसका पालन नहीं कर रहा। स्थानीय निवासी मनोज कुमार ने कहा, "यह दोहरे मापदंड का जीता-जागता उदाहरण है। जब आम आदमी का वाहन 15 साल पूरा करता है तो उसे तुरंत कार्रवाई का सामना करना पड़ता है, लेकिन सरकारी वाहन बिना बीमा और रजिस्ट्रेशन के भी सड़कों पर दौड़ते रहते हैं।"
अधिकारियों की मजबूरी: न नई गाड़ियाँ, न लीज पर वाहन
प्रशासन के एक वरिष्ठ अधिकारी ने नाम न छापने की शर्त पर बताया कि इन कंडम वाहनों को चलाने की मजबूरी है। प्रशासन की ओर से नई गाड़ियाँ खरीदने की अनुमति नहीं दी जा रही है और न ही प्राइवेट वाहन लीज पर लेने का विकल्प दिया जा रहा है। ऐसे में मजबूरन सरकारी कार्य के लिए इन जर्जर वाहनों को ही इस्तेमाल में लाना पड़ रहा है। उन्होंने यह भी कहा कि "प्रशासन में जिस अधिकारी की चलती है, उसे नई गाड़ी खरीदने की अनुमति महज 2 मिनट में मिल जाती है, जबकि बाकी लोग इन्हीं खटारा गाड़ियों में जान जोखिम में डालकर सफर करते हैं।"
प्रशासन की स्क्रैप नीति केवल दिखावा?
प्रशासन ने 15 साल से अधिक पुराने सरकारी वाहनों को स्क्रैप करने की योजना के तहत एक लिस्ट तैयार की थी। इसके अनुसार, ऐसे वाहनों को स्क्रैप कर प्रमाणपत्र (सीओडी) जारी किया जाना था। भारत सरकार के निर्देशानुसार, सरकारी विभागों को अपने पुराने वाहनों की जानकारी देनी थी और उन्हें नष्ट करने की प्रक्रिया अपनानी थी। प्रशासन ने इसके लिए नोटिस भेजने की रणनीति भी बनाई थी। लेकिन 2 साल बाद भी यह योजना केवल कागजों पर ही सिमटी हुई है।
क्या प्रशासन उठाएगा ठोस कदम?
अब देखने वाली बात यह है कि क्या प्रशासन इन कंडम वाहनों को सड़कों से हटाने की दिशा में कोई ठोस कदम उठाएगा या फिर यह नीति केवल सरकारी फाइलों तक ही सीमित रह जाएगी। शहरवासियों की मांग है कि प्रशासन को जल्द से जल्द इन वाहनों को हटाकर सड़क सुरक्षा को सुनिश्चित करना चाहिए।
ट्रैफिक पुलिस पर उठे सवाल
शहरवासियों ने प्रशासन के साथ-साथ चंडीगढ़ ट्रैफिक पुलिस पर भी सवाल उठाए हैं। लोगों का कहना है कि ट्रैफिक पुलिस बाहरी राज्यों से आने वाले वाहनों पर सख्ती से चेकिंग करती है। जरा सी भी कमी मिलने पर चालान काटे जाते हैं और कागजात पूरे न होने पर वाहन जब्त किए जाते हैं। लेकिन चंडीगढ़ प्रशासन के कंडम सरकारी वाहन, जिनके पास न तो वैध आरसी है और न ही बीमा, फिर भी खुलेआम सड़कों पर दौड़ते रहते हैं। हैरानी की बात यह है कि इन वाहनों पर ट्रैफिक पुलिस की कोई कार्रवाई नहीं होती।
स्थानीय निवासी रवि शर्मा ने तंज कसते हुए कहा, "क्या ट्रैफिक पुलिस को सिर्फ प्राइवेट गाड़ियाँ ही दिखती हैं? सरकारी खटारा गाड़ियाँ उनकी नज़रों से कैसे बच जाती हैं?"
शहर के कई लोगों का मानना है कि प्रशासन और ट्रैफिक पुलिस के बीच आपसी समन्वय की कमी के कारण ही ऐसे कंडम वाहन बिना रोक-टोक सड़कों पर चलते रहते हैं।
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