धरोहर:1896 की पनचक्की आज भी पीस रही शुद्ध आटा
कैथल जिले की ऐतिहासिक विरासत बनी अंग्रेजों के जमाने की चक्की, नहर के पानी से होती है ठंडी पिसाई
रमेश गोयत
कैथल, हरियाणा, 03 मई। जब आज का समाज कैमिकल और प्रोसेस्ड खाद्य पदार्थों से परेशान है, ऐसे समय में कैथल जिले के नैना-धौंस गांव में एक ऐतिहासिक पनचक्की आज भी लोगों को शुद्ध और बिना मिलावट वाला आटा मुहैया करवा रही है। सिरसा ब्रांच नहर पर स्थित यह पनचक्की वर्ष 1896 में अंग्रेजों के शासनकाल में बनाई गई थी और आज भी बिना बिजली, केवल नहर के बहते पानी से संचालित होती है।
न गर्म होता आटा, न कटती तौल
पनचक्की की सबसे बड़ी खासियत इसकी ठंडी पिसाई है। आम चक्कियों में जहां ज्यादा घर्षण के कारण आटा गर्म हो जाता है और पोषक तत्व नष्ट हो जाते हैं, वहीं इस पनचक्की में गेहूं का आटा प्राकृतिक रूप से ठंडा रहता है, जिससे उसकी पौष्टिकता बरकरार रहती है। इसके अलावा यहां न तो गेहूं का वजन काटा जाता है और न ही किसी प्रकार की मिलावट की जाती है। पिसाई का चार्ज मात्र ₹40 प्रति थैला रखा गया है।
पांच चक्कियां, 125 मण प्रतिदिन क्षमता
इस स्थान पर कुल पांच चक्कियां मौजूद हैं। जब भी नहर में पानी आता है, ये सभी चक्कियां एकसाथ चलती हैं और एक दिन-रात में करीब 125 मण गेहूं पीस सकती हैं। यह व्यवस्था ग्रामीणों के लिए किसी वरदान से कम नहीं।
55 वर्षों से संभाल रहा है एक ही परिवार
शुरुआत में इस पनचक्की का संचालन एक पंजाबी परिवार करता था, लेकिन बाद में वह दिल्ली चला गया। तब से लेकर अब तक मुंदड़ी गांव के कश्यप समाज के रामकुमार कश्यप और उनका परिवार इसे चला रहे हैं। रामकुमार बताते हैं कि न केवल स्थानीय लोग, बल्कि आसपास के गांवों – मुंदड़ी, फतेहपुर, म्योली आदि के लोग भी शुद्ध आटे के लिए इसी चक्की का रुख करते हैं।
न बिजली, न कमरा – फिर भी सेवा जारी
यह चक्की भले ही विभागीय ठेके पर दी जाती है और प्रति दिन के हिसाब से किराया वसूला जाता है, लेकिन सुविधाओं के नाम पर कुछ भी नहीं। ठेकेदार के रहने के लिए कोई कमरा नहीं बना है और न ही बिजली की व्यवस्था है। इसके बावजूद यह धरोहर आज भी बिना किसी मशीन के, केवल पानी की ताकत से चल रही है।
सिंचाई विभाग के अधीन है यह धरोहर
सिंचाई विभाग, पूंडरी के कार्यकारी अभियंता के अनुसार, यह पनचक्की विभाग की ऐतिहासिक धरोहर है। विभाग हर साल इसका टेंडर छोड़ता है, और स्थानीय ठेकेदार इसे चला रहे हैं। संरक्षण की दृष्टि से यह स्थान महत्वपूर्ण है, जिसे बेहतर रखरखाव की जरूरत है।
इस पनचक्की की कहानी केवल आटे की पिसाई की नहीं, बल्कि हमारे अतीत से जुड़ी लोक परंपराओं, स्वदेशी तकनीक और शुद्धता की विरासत की है। यदि इस जैसे स्थलों को संरक्षित किया जाए, तो यह न केवल स्वास्थ्य के लिहाज़ से बेहतर विकल्प बन सकते हैं, बल्कि हमारी आने वाली पीढ़ियों के लिए भी प्रेरणा का स्रोत बन सकते हैं।
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