"मेरे यहां तो खुला दरबार है": केंद्रीय मंत्री राव इंद्रजीत सिंह ने चंडीगढ़ डिनर को लेकर तोड़ी चुप्पी
— बोले: बेटी आरती राव का पहला घर बना है चंडीगढ़ में, अपने लोगों को बुला लिया था, राजनीति न बनाई जाए
बाबूशाही ब्यूरो
रेवाड़ी, 3 जुलाई:। चंडीगढ़ डिनर को लेकर उठे सियासी सवालों के बीच केंद्रीय राज्य मंत्री राव इंद्रजीत सिंह ने आखिरकार चुप्पी तोड़ी है। गुरुवार को रेवाड़ी में पत्रकारों से बात करते हुए उन्होंने साफ किया कि उनका इरादा किसी राजनीतिक संदेश का नहीं था, बल्कि पारिवारिक वजह से यह आयोजन हुआ था।
उन्होंने कहा, “मेरी बेटी आरती राव का घर पहली बार हरियाणा की राजधानी चंडीगढ़ में बना है। नया घर बनता है तो लोग अपने नजदीकी लोगों को बुलाते हैं। मैंने भी वही किया। इसमें कोई नई बात नहीं है।”
राव इंद्रजीत ने अपने पुराने पारिवारिक परंपराओं का जिक्र करते हुए कहा, “जैसे मैं चलता आया हूं, वैसे ही चलता रहूंगा। मेरे यहां दरवाजे हमेशा खुले रहते हैं। पहले भी दिल्ली और रामपुरा हाउस में डिनर आयोजित करता रहा हूं। 20 साल से यही परंपरा चल रही है।”
भाजपा से पूछताछ की बात को नकारा
उन्होंने उन अटकलों को भी खारिज किया जिनमें दावा किया जा रहा था कि भाजपा नेतृत्व ने इस डिनर को लेकर नाराजगी जाहिर की है। उन्होंने स्पष्ट कहा, “भाजपा की ओर से किसी ने मुझे नहीं पूछा कि आप डिनर पर क्यों गए। आगे भी लोग आएंगे और हम ऐसे ही मिलते रहेंगे।”
"मेरे मिलने पर ही क्यों सवाल?"
राव इंद्रजीत ने इस बात पर भी नाराजगी जताई कि हर बार उनके किसी से मिलने पर सियासी अर्थ निकाल लिए जाते हैं। “बाकी सारे लोग अपॉइंटमेंट लेकर मिलते हैं, मेरे यहां तो कोई भी आ सकता है। मेरे पिता राव बीरेंद्र सिंह का भी खुला दरबार होता था। आज भी वही परंपरा है।”
राजनीतिक संकेत या पारिवारिक मिलन?
गौरतलब है कि चंडीगढ़ स्थित आरती राव के नए घर में हुए डिनर में कई राजनीतिक चेहरों की मौजूदगी को लेकर चर्चाओं का बाजार गर्म हो गया था। इसे हरियाणा की बदलती सियासत और संभावित गुटबाज़ी से जोड़कर देखा जा रहा था। हालांकि राव इंद्रजीत सिंह के इस स्पष्टीकरण के बाद यह बात साफ होती है कि आयोजन व्यक्तिगत था, न कि राजनीतिक।
निष्कर्ष
राव इंद्रजीत सिंह का यह बयान हरियाणा की राजनीति में उठ रहे कयासों को कुछ हद तक विराम दे सकता है, लेकिन चंडीगढ़ के डिनर को लेकर चर्चाएं शायद इतनी जल्दी थमेंगी नहीं। आने वाले दिनों में यह देखना दिलचस्प होगा कि इस कथित ‘डिनर डिप्लोमेसी’ का कोई असर भाजपा की आंतरिक राजनीति पर पड़ता है या नहीं।
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