मानेसर भूमि घोटाला: हाई कोर्ट का बड़ा झटका, आरोप तय करने की मांग खारिज
बाबूशाही ब्यूरो
पंचकूला, 16 मई। मानेसर भूमि घोटाले के आरोपियों को पंजाब एवं हरियाणा हाई कोर्ट से बड़ा झटका लगा है। हाई कोर्ट ने आरोपियों द्वारा आरोप तय करने और समन आदेश रद्द करने की मांग को खारिज कर दिया है। हाई कोर्ट ने मामले में अपना फैसला फरवरी से सुरक्षित रखा हुआ था, जिसे वीरवार को सुनाया गया।
### **पूर्व नौकरशाहों ने दायर की थी याचिका**
हाई कोर्ट की जस्टिस मंजरी नेहरू कौल ने मामले संबंधी सभी याचिकाओं को खारिज करते हुए स्पष्ट किया कि इस मामले में मुकदमा जारी रहेगा। याचिका पूर्व नौकरशाहों राजीव अरोड़ा, एसएस ढिल्लों, छतर सिंह, एमएल तायल, जसवंत सिंह, अनिल कुमार, डॉक्टर ढींगरा, कुलवंत सिंह लांबा ने दायर की थी। इन सभी ने अलग-अलग समय पर तत्कालीन मुख्यमंत्री के प्रमुख सचिव के रूप में कार्य किया था।
दिसंबर 2020 से रुका था मुकदमा**
पूर्व मुख्यमंत्री भूपेंद्र सिंह हुड्डा और नौकरशाहों के खिलाफ मुकदमा दिसंबर 2020 से रुका हुआ था। इन नौकरशाहों ने हाई कोर्ट का दरवाजा खटखटाया था और अदालत से सुनवाई की वास्तविक तारीख तय करने का अनुरोध किया था। इस मामले में पिछले पांच वर्षों से रोक लगी हुई थी, जिस पर अब अंतिम रूप से सुनवाई और निपटारा होने की संभावना बढ़ गई है। सीबीआई ने पूर्व गृह सचिव राजीव अरोड़ा द्वारा दायर मुख्य याचिका के संबंध में आवेदन दायर किया था, जिसके चलते हाई कोर्ट ने दिसंबर 2020 में सुनवाई पर रोक लगा दी थी।
अरोड़ा को बतौर अतिरिक्त आरोपी बुलाया गया**
तत्कालीन विशेष सीबीआई न्यायाधीश, पंचकूला जगदीप सिंह ने 1 दिसंबर 2020 को राजीव अरोड़ा को धारा 420 (धोखाधड़ी) और धारा 120/बी (आपराधिक साजिश) के तहत अतिरिक्त आरोपी के रूप में मुकदमे का सामना करने के लिए बुलाया था। हाई कोर्ट में अपनी याचिका में अरोड़ा ने दावा किया था कि सीबीआई अदालत ने गलत तरीके से उन्हें आरोपी बनाया।
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**क्या है मानेसर लैंड डील केस?**
मानेसर भूमि घोटाला साल 2007 में शुरू हुआ, जब कांग्रेस नेता रॉबर्ट वाड्रा ने 1 लाख रुपये की पूंजी से स्काईलाइट हॉस्पिटैलिटी की शुरुआत की। इसके अगले साल वाड्रा की कंपनी ने गुरुग्राम के मानेसर-शिकोहपुर में ओंकारेश्वर प्रॉपर्टीज से 7.5 करोड़ रुपये में करीब 3.5 एकड़ जमीन खरीदी।
अगले ही दिन जमीन का म्यूटेशन स्काईलाइट हॉस्पिटैलिटी के नाम पर हो गया और 24 घंटे के अंदर मालिकाना हक भी ट्रांसफर हो गया, जबकि सामान्य प्रक्रिया में यह कम से कम तीन महीने का समय लेती है।
एक महीने बाद, कांग्रेस के नेतृत्व वाली तत्कालीन हरियाणा सरकार ने इस भूमि को हाउसिंग प्रोजेक्ट के तहत विकसित करने की इजाजत दी, जिससे इसकी कीमत में भारी इजाफा हुआ। इसके कुछ ही महीनों बाद, डीएलएफ ने 58 करोड़ रुपये में इस जमीन को खरीदने का प्रस्ताव दिया। इस डील में जमीन की कीमत 700% तक बढ़ गई।
अब हाई कोर्ट के इस फैसले के बाद मानेसर भूमि घोटाला एक बार फिर चर्चा में आ गया है, और पांच साल बाद मुकदमे की सुनवाई फिर से शुरू होने की उम्मीद है।""
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