हरियाणा राज्यसभा चुनाव 2022 का रहस्य फिर सुर्खियों में, एक अन्य कांग्रेस विधायक के अमान्य वोट से मिला कार्तिकेय शर्मा को फायदा: एडवोकेट हेमंत
बाबूशाही ब्यूरो
चंडीगढ़, 16 जून 22025–
जून 2022 में हुए हरियाणा राज्यसभा चुनाव को लेकर एक बार फिर राजनीतिक गलियारों में हलचल तेज हो गई है। हाल ही में एक सोशल मीडिया पोडकास्ट में निर्दलीय सांसद कार्तिकेय शर्मा ने दावा किया कि उन्हें कांग्रेस के दो विधायकों – कुलदीप बिश्नोई और किरण चौधरी – का समर्थन मिला था। इस दावे के बाद कांग्रेस सांसद दीपेंद्र हुड्डा ने X (पूर्व में ट्विटर) पर पोस्ट करते हुए लिखा, "राजनीतिक खेल का पर्दा अब हट गया है।"
हालांकि, इस पूरे घटनाक्रम में नया मोड़ तब आया जब चुनाव कानून के जानकार एडवोकेट हेमंत कुमार ने यह दावा किया कि कुलदीप बिश्नोई के अतिरिक्त एक अन्य कांग्रेस विधायक ने भी परोक्ष रूप से निर्दलीय प्रत्याशी कार्तिकेय शर्मा की मदद की थी। हेमंत के अनुसार, इस विधायक ने वोट डालते समय "टिक मार्क" लगाकर वोट को तकनीकी रूप से अमान्य बना दिया, जिससे कांग्रेस प्रत्याशी अजय माकन का एक वोट घट गया और अंततः वे हार गए।
क्या यह विधायक किरण चौधरी थीं?
हेमंत के अनुसार, यह अब तक स्पष्ट नहीं है कि वह कांग्रेस विधायक कौन था जिसने जानबूझकर या अनजाने में वोट को अमान्य कराया। हालांकि कार्तिकेय शर्मा द्वारा किरण चौधरी का नाम लिए जाने के बाद संदेह की सुई उनकी ओर घूमी है। परंतु इस पर अंतिम मुहर केवल कांग्रेस के अधिकृत एजेंट विवेक बंसल ही लगा सकते हैं, जो मतदान के दौरान मौजूद थे और जिन्हें पार्टी विधायकों द्वारा डाले गए वोटों को देखने की अनुमति थी।
वोटिंग प्रक्रिया और नियम
हेमंत कुमार ने यह भी बताया कि राज्यसभा चुनाव में ओपन बैलट प्रणाली लागू होती है, जिसके तहत विधायक अपने द्वारा दिया गया मत अपनी पार्टी के अधिकृत एजेंट को दिखाने के बाद ही बैलट बॉक्स में डाल सकते हैं। यदि ऐसा न किया जाए, तो वह मत स्वतः अमान्य हो जाता है।
बिश्नोई ने पार्टी प्रत्याशी को वोट नहीं दिया था, लेकिन उन्होंने अपने वोट को पार्टी एजेंट विवेक बंसल को दिखाया था, जिससे उनका वोट तकनीकी रूप से मान्य रहा। वहीं, दूसरे विधायक द्वारा डाले गए वोट को अमान्य करार दिया गया क्योंकि उसने नंबर की बजाय टिक मार्क किया था – जो निर्वाचन नियमों के अनुसार गलत है।
विवेक बंसल की भूमिका पर भी उठे सवाल
हेमंत कुमार ने इस बात पर जोर दिया कि यदि वोट डालते समय पार्टी एजेंट ने गलती नहीं देखी थी, तो मतगणना के बाद – रिटर्निंग ऑफिसर द्वारा मतपत्रों को सील करने से पहले – पार्टी एजेंट को वोटों की समीक्षा करने की अनुमति होती है। ऐसे में यह सवाल उठता है कि क्या विवेक बंसल ने इस प्रक्रिया को सही से अंजाम दिया था? और अगर हाँ, तो फिर उस विधायक की पहचान आज तक क्यों नहीं की गई?
निष्कर्ष
यदि कांग्रेस के एक भी वोट में चूक न होती, या कुलदीप बिश्नोई पार्टी लाइन पर मतदान करते, तो अजय माकन राज्यसभा में पहुंच सकते थे। मगर तीन साल बीतने के बाद भी पार्टी ने उस दूसरे विधायक की पहचान उजागर नहीं की है।
अब जबकि कार्तिकेय शर्मा द्वारा उस समय का "परदा" उठाया गया है, तो कांग्रेस नेतृत्व और विशेष रूप से विवेक बंसल की भूमिका पर एक बार फिर से गंभीर सवाल खड़े हो गए हैं। क्या यह जानबूझकर की गई चूक थी या अनजाने में हुई गलती? इसका जवाब अब भी राजनीतिक रहस्य बना हुआ है।
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