RTI में मांगी जानकारी तो भेजे एक क्विंटल कागज, 80 हजार वसूले — कुरुक्षेत्र के आरटीआई एक्टिविस्ट का बड़ा आरोप
बाबूशाही ब्यूरो
कुरुक्षेत्र, 6 जुलाई 2025: हरियाणा के कुरुक्षेत्र से आरटीआई के दुरुपयोग और सिस्टम की जटिलता को लेकर एक चौंकाने वाला मामला सामने आया है। सेक्टर-13 निवासी पंकज अरोड़ा, जो एक आरटीआई एक्टिविस्ट हैं, ने पब्लिक हेल्थ विभाग से दो साल का लेखा-जोखा मांगा था, लेकिन इसके बदले में उन्हें एक क्विंटल से ज्यादा वजनी 37,443 पेज की फोटोकॉपी थमा दी गई। इतना ही नहीं, विभाग ने इसके बदले पंकज से 80 हजार रुपये वसूले, जिसमें 5 हजार पोस्टल चार्ज भी शामिल थे।
RTI का जवाब या सिस्टम से बदला?
पंकज अरोड़ा ने बताया कि उन्होंने 30 जनवरी को RTI दाखिल की थी, जिसमें 15 बिंदुओं पर जानकारी मांगी गई थी। लेकिन 3 फरवरी को विभाग ने एक के बाद एक दो पत्र भेजे — पहले में बताया गया कि जानकारी कितने पेज की होगी, दूसरे में सीधे 85 हजार रुपये जमा कराने के निर्देश दिए गए।
जब पंकज ने पोस्टल चार्ज को लेकर आपत्ति जताई, तब भी उन्हें मजबूरन पैसे जमा कराने पड़े। उन्होंने 10 फरवरी को 10 हजार और 5 मार्च को 70 हजार रुपये जमा कराए, लेकिन फिर भी समय पर जानकारी नहीं दी गई।
डीसी की फटकार के बाद भेजे दस्तावेज
पंकज ने जब राज्यपाल सचिवालय, मुख्यमंत्री नायब सैनी और डीसी को मेल कर शिकायत की, तो 24 अप्रैल को डीसी ने इस पर संज्ञान लेते हुए एक्सईएन को निर्देश दिए। इसके बाद पब्लिक हेल्थ विभाग ने पंकज को 37,443 पन्नों की जानकारी भेजी, जिसका वजन करीब 1 क्विंटल 8 किलो 200 ग्राम निकला।
पंकज का आरोप है कि इनमें हजारों पन्ने ऐसे हैं जिनकी उन्हें जरूरत ही नहीं थी। साथ ही उन्होंने दावा किया कि उनके द्वारा दिए गए 80 हजार रुपये भी विभागीय खाते में जमा नहीं किए गए, बल्कि 10 हजार का ड्राफ्ट और 70 हजार का बैंकर चेक निजी रूप से लिया गया।
विभाग का बचाव
पब्लिक हेल्थ विभाग के एक्सईएन सुमित गर्ग का कहना है कि नियमों के तहत हर पेज के लिए 2 रुपये चार्ज किया गया है और मांगी गई जानकारी सही पते पर भेज दी गई है। उनका कहना है कि "सूचना अधिनियम के तहत जो मांगा गया था, उसे ही भेजा गया है।"
अब अपील पर उम्मीद
पंकज अरोड़ा ने अब इस मामले को राज्य सूचना आयोग के पास अपील के रूप में भेजा है, जिसे स्वीकार कर लिया गया है। वह अब इस बात की भी जांच चाहते हैं कि क्या वाकई जानकारी देने के नाम पर उन्हें परेशान किया गया या फिर नियमों की आड़ में मनमानी की गई।
यह मामला आरटीआई एक्ट की कार्यप्रणाली, सरकारी पारदर्शिता और जवाबदेही पर कई गंभीर सवाल खड़े करता है।
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