पंजाब की पंथक राजनीति में 'अकाली दल वारिस पंजाब दे' का प्रवेश
राजनीतिक पार्टी बनाकर अमृतपाल सिंह का भारत की मुख्यधारा में प्रवेश स्वागत योग्य :
प्रो. सरचंद सिंह ख्याला
बाबूशाही ब्यूरो, 17 जनवरी 2025
पंजाब। श्री मुक्तसर साहिब की पवित्र धरती पर माघी जोर मेले के अवसर पर पंजाब के राजनीतिक क्षेत्र में अस्तित्व में आई नई राज्य पार्टी 'अकाली दल वारिस पंजाब दे' के शुभारंभ के साथ पंथक राजनीति में नया समीकरण स्थापित हो गया है। जिसने सबका ध्यान आकर्षित किया है।
इस नई पार्टी की पहचान 'वारस पंजाब दे' के नेता और खडूर साहिब लोकसभा क्षेत्र से सांसद अमृतपाल सिंह, जो फिलहाल असम की डिब्रूगढ़ जेल में बंद हैं, के व्यक्तित्व और उनके द्वारा प्रस्तुत विजन से जुड़ी है।
अमृतसर से पंजाब भाजपा के प्रवक्ता प्रो. सरचंद सिंह ख्याला ने कहा कि यह स्वागत योग्य है कि अमृतपाल सिंह के गुट ने एक राजनीतिक पार्टी बनाई है और भारत की राजनीतिक मुख्यधारा में प्रवेश किया है। यद्यपि नई पार्टी ने स्वयं को 'राज करेगा खालसा' की अवधारणा से अलग नहीं किया, लेकिन इसने स्वयं को किसी भी अलगाववादी विचारधारा से जोड़ने से परहेज किया तथा स्वयं को कट्टरपंथी राजनीति से भी दूर किया। उन्होंने भारतीय संविधान, समाजवाद, धर्मनिरपेक्षता और लोकतंत्र के प्रति आस्था और निष्ठा रखते हुए जनप्रतिनिधित्व अधिनियम, 1951 की धारा 29ए के तहत शपथ लेकर भारत की संप्रभुता, एकता और अखंडता को बनाए रखने की बात स्वीकार की।
नई पार्टी पिछले कुछ वर्षों में बादल परिवार के नेतृत्व वाले अकाली दल द्वारा पैदा किए गए शून्य को भरने के लिए एक वैकल्पिक संगठन, विचारधारा और पंथ के एजेंडे और पंजाब की चिंताओं को लागू करने पर ध्यान केंद्रित कर रही है, जो अब बादल पार्टी के अस्तित्व से गायब हो गया है। पंजाब के लोगों के लिए यह बहुत बड़ी बात है। साथ ही, यह महसूस करते हुए कि वर्तमान बादल अकाली दल का नेतृत्व सिख परंपराओं, सिद्धांतों और अपने स्वयं के पंथक लक्ष्य से भटक कर 'राजनीतिक लालच' के तहत सिख समुदाय के साथ विश्वासघात कर रहा है, नई पार्टी ने इस का पूर्ण बहिष्कार का आग्रह किया। अपना फैसला दिया और कहा कि समुदाय के अस्तित्व के लिए धार्मिक और राजनीतिक मतभेद भुला कर पंथ के सभी अनुयायियों से पंथ की उन्नति के लिए संयुक्त प्रयास शुरू करने का आग्रह किया है।
उन्होंने कहा कि अमृतपाल सिंह और फरीदकोट से सांसद सरबजीत सिंह ने लोकतंत्र का महत्व समझ लिया है कि किसी न किसी स्तर पर ऐसी ताकतों के साथ समन्वय करके ही अपनी राजनीतिक जगह बनाने में सफल हो सकता है। अमृतपाल सिंह की अनुपस्थिति में उनके पिता तरसेम सिंह ने गुट और मुद्दे को उपयुक्त नेतृत्व प्रदान करने की पूरी कोशिश की है। नई पार्टी की संविधान निर्माण एवं एजेंडा समिति में शामिल व्यक्तित्व किसी परिचय के मोहताज नहीं हैं, उनकी पंथक सहानुभूति एवं राजनीतिक सूझबूझ पर संदेह नहीं किया जा सकता। सिख स्टूडेंट्स फेडरेशन से जुड़ी पृष्ठभूमि वालों के लिए यह पंथक सरोकारों से भरी अपनी आकांक्षाओं को पूरा करने का एक अच्छा अवसर है।
सरकारी और गैर-सरकारी प्रतिबंधों के बावजूद माघी के अवसर पर लोगों का बड़ी संख्या में एकत्र होना निश्चित रूप से इस पार्टी की बड़ी उपलब्धि है।
इस पार्टी के प्रति समर्थकों की बढ़ती दिलचस्पी उनके राजनीतिक दृष्टिकोण में आया बदलाव है, जिससे पंथक राजनीतिक दलों को निश्चित रूप से आश्चर्य हुआ है। और उन्होंने उन लोगों की धारणाओं को गलत साबित कर दिया है जो सोचते हैं कि वह उनका स्थान ले लेंगे तथा नरमपंथी अकाली दल बादल की धारणा को भी गलत साबित कर दिया है कि वह उनका स्थान नहीं ले पाएंगे।
इसका कारण अमृतपाल सिंह का पिछला राजनीतिक दृष्टिकोण था, जहां शुरू में उनके व्यक्तित्व को एक उग्र व्यक्ति तथा पंजाब में तथाकथित खालिस्तानी आंदोलन को पुनर्जीवित करने के इच्छुक व्यक्ति के रूप में देखा गया था। यही कारण है कि माघी के दिन अकाली दल मान और उसके सहयोगियों ने खूब खालिस्तान समर्थक प्रचार अभियान चलाया और सुखबीर सिंह बादल ने तो यहां तक भविष्यवाणी कर दी कि नई पार्टी " तुम से गोली चलाएगी और खुद बाहर निकल जाएंगे" । अपनी राजनीतिक प्रतिष्ठा बनाए रखने के लिए, बेशक, उस दिन बादल दल लोगों को श्री अकाल तख्त साहिब द्वारा प्रकाश सिंह बादल से छीनी गई 'फखर-ए-कौम' उपाधि को बहाल करने की मांग के अलावा कोई और एजेंडा नहीं दे सका।
अमृतपाल सिंह और उनके समर्थकों के लिए यह राजनीतिक कौशल की परीक्षा का समय है। यह भविष्यवाणी करना अभी जल्दबाजी होगी कि उनकी राजनीतिक चालें पंजाब को नई दिशा देंगी या उसे गहरे रसातल में ले जाएंगी। बकौल प्रो. ख्याला एक बात मैं निश्चितता से कह सकता हूं कि अमृतपाल सिंह के राजनीतिक विरोधियों, नफरत करने वालों और ईर्ष्या करने वालों की संख्या निश्चित रूप से बढ़ेगी। माघी मेले के दौरान मंच पर बोलते हुए अकाली दल बादल और अकाली दल मान के वक्ताओं के लहजे से इस बात के संकेत मिले हैं।
यह कहना अतिशयोक्ति नहीं होगी कि यह विरोध भविष्य में और भी गहरे षडयंत्रों और घृणित चालाकियों तक पहुंच जाएगा। इसमें खालिस्तानी पहचान से जुड़े वे दल खासतौर पर दुष्प्रचार में शामिल होंगे, जिन्होंने लंबे समय से खालिस्तानी पहचान को महज कारोबार बना रखा है।
मौजूदा हालात में अमृतपाल सिंह और पंजाब के अकाली दल वारिस पंजाब दे का भविष्य और राजनीतिक सफर चुनौतियों और मुश्किलों से भरा नजर आ रहा है। हालांकि यह स्थिति उनके लिए नई नहीं है, लेकिन अमृतपाल सिंह और उनके समर्थकों को राजनीतिक रूप से इस बारे में सचेत रहने की जरूरत है। ऐसा लगता है कि उनके व्यक्तित्व का निजी लाभ के लिए उपयोग करने की कुछ लोग प्रतीक्षा कर रहे हैं। नई पार्टी के गठन का कोई कैसा भी मतलब निकले, लेकिन मेरे जैसे उन लोगों के लिए जिन्होंने 80 के दशक का दर्द झेला है, के लिए यह आश्वस्त करने वाली बात है कि अमृतपाल सिंह ने सिख युवाओं को कट्टरपंथ के बजाय लोकतंत्र और चुनावी व्यवस्था के जरिए आगे बढ़ने के लिए प्रोत्साहित किया है। (SBP)
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