पानी का संकट: भाखड़ा नहर के बहाने फिर आमने-सामने हुए पंजाब-हरियाणा, जानिए पूरा मामला
बाबूशाही ब्यूरो
चंडीगढ़, 4 मई 2025 — पंजाब और हरियाणा, दो पड़ोसी राज्य जो कभी एक ही प्रशासनिक इकाई थे, एक बार फिर पानी के बंटवारे को लेकर आमने-सामने हैं। विवाद की जड़ इस बार भाखड़ा नहर से जुड़ी है, जिससे हरियाणा को मिलने वाले पानी में अचानक कटौती कर दी गई। इस कदम से न सिर्फ राजनीतिक माहौल गरमा गया है, बल्कि हरियाणा के कई जिलों में पीने और सिंचाई के पानी की किल्लत भी पैदा हो गई है।
? ताजा विवाद: 29 अप्रैल से बढ़ता तनाव
विवाद की शुरुआत 29 अप्रैल 2025 को हुई, जब पंजाब के मुख्यमंत्री भगवंत मान ने एक वीडियो संदेश में ऐलान किया कि पंजाब अब हरियाणा को "एक बूंद भी अतिरिक्त पानी" नहीं देगा। उनका तर्क था कि हरियाणा पहले ही अपने हिस्से से ज्यादा पानी ले चुका है।
इसके तुरंत बाद हरियाणा के मुख्यमंत्री नायब सैनी ने पलटवार किया और पंजाब पर राजनीति करने का आरोप लगाया। हरियाणा की सिंचाई मंत्री श्रुति चौधरी ने तुरंत केंद्रीय जल शक्ति मंत्री सी. आर. पाटिल से मुलाकात की और केंद्र से हस्तक्षेप की मांग की।
? प्रमुख घटनाक्रम: कब क्या हुआ?
30 अप्रैल: हरियाणा ने मामला धारा 7 के तहत केंद्र को भेजने की मांग की। BBMB (भाखड़ा ब्यास मैनेजमेंट बोर्ड) ने केंद्र को पत्र लिखा। केंद्रीय ऊर्जा मंत्री मनोहर लाल खट्टर ने पंजाब सरकार को "राजधर्म न निभाने" का आरोप लगाया। इसके बाद दोनों मुख्यमंत्रियों के बीच पत्र युद्ध शुरू हुआ।
1 मई: BBMB के दो वरिष्ठ अधिकारियों का अचानक तबादला हुआ। इससे राजनीतिक हलचल और बढ़ गई। पंजाब पुलिस की तैनाती ने और भी सवाल खड़े किए, हालांकि प्रशासन ने इसे "सुरक्षा समीक्षा" बताया। भगवंत मान ने नंगल डैम का निरीक्षण कर ऑल पार्टी मीटिंग और विधानसभा सत्र बुलाने का ऐलान किया।
2 मई: गृह मंत्रालय की बुलाई बैठक भी बेनतीजा रही। हरियाणा ने सुप्रीम कोर्ट का रुख करने की घोषणा की। पानी की सप्लाई में कटौती से सिरसा, फतेहाबाद, कैथल जैसे जिलों में जल संकट गहरा गया।
3 मई: हरियाणा सरकार ने सर्वदलीय बैठक बुलाई। इस मुद्दे ने राज्य की सियासत को एकजुट कर दिया।
? भाखड़ा नहर क्या है और इसका महत्व?
भाखड़ा नहर की नींव सतलुज नदी पर बने भाखड़ा नांगल डैम से जुड़ी है। इसका निर्माण 1948 से 1963 के बीच हुआ था और यह भारत के पहले बड़े नदी परियोजनाओं में से एक है।
लंबाई: 226 मीटर ऊंचा बांध
जल संग्रहण क्षमता: 9.34 बिलियन क्यूबिक मीटर
राज्यों को लाभ: पंजाब, हरियाणा, राजस्थान, दिल्ली
प्रबंधन: BBMB (केंद्र सरकार के अधीन)
हरियाणा को इसमें 32% पानी का हिस्सा मिलना तय है, जो सालाना 4.4 मिलियन एकड़ फीट है।
डैम का संचालन दो अवधियों में होता है:
फिलिंग पीरियड (21 मई–20 सितंबर): पानी सीमित रूप से दिया जाता है
डिप्लीशन पीरियड (21 सितंबर–20 मई): पानी राज्यों को सामान्य रूप से दिया जाता है
हरियाणा को अप्रैल–जून में औसतन 9000 क्यूसिक पानी मिलना चाहिए था, लेकिन पंजाब ने इसे घटाकर 4000 क्यूसिक कर दिया, जिससे विवाद भड़का।
? कौन क्या कह रहा है?
पंजाब का पक्ष:
भूजल स्तर खतरनाक स्तर पर पहुंच गया है (300 फीट से भी नीचे)
हरियाणा 103% पानी पहले ही ले चुका है
राज्य की ज़रूरतें ज़्यादा हैं और पानी सीमित है
केंद्र से मांग: नया फॉर्मूला बनाया जाए
हरियाणा का पक्ष:
पंजाब जल समझौतों का उल्लंघन कर रहा है
भाखड़ा नहर से हरियाणा के कई जिलों की सिंचाई और पीने के पानी की ज़रूरतें जुड़ी हैं
यह सिर्फ हरियाणा नहीं, बल्कि दिल्ली और राजस्थान को भी प्रभावित करेगा
केंद्र को तुरंत हस्तक्षेप करना चाहिए
⚖️ पानी की लड़ाई: क्या है SYL विवाद?
यह विवाद सतलुज-यमुना लिंक (SYL) नहर से भी जुड़ा हुआ है, जो पंजाब और हरियाणा के बीच दशकों से चला आ रहा है। सुप्रीम कोर्ट ने SYL को हरियाणा को पानी देने के लिए जरूरी बताया, लेकिन पंजाब में इसका भारी विरोध हुआ। पंजाब विधानसभा ने 2004 में पंजाब टर्मिनेशन ऑफ एग्रीमेंट एक्ट पास कर सभी जल समझौते रद्द कर दिए।
? आम लोगों पर असर
सिरसा, फतेहाबाद, हिसार, कैथल, जींद जैसे जिलों में सिंचाई बाधित
पीने के पानी की सप्लाई पर संकट, टैंकरों से आपूर्ति की नौबत
किसानों में आक्रोश, कई जगह प्रदर्शन शुरू
ग्रीष्मकाल में जल संकट से स्वास्थ्य और आर्थिक असर की आशंका
? आगे की राह
क्या सुप्रीम कोर्ट इस विवाद में स्थायी समाधान दे सकेगा?
क्या केंद्र सरकार पंजाब को बाध्य कर सकती है कि वह जल समझौते माने?
क्या दोनों राज्यों के बीच नया जल बंटवारा समझौता हो सकता है?
? निष्कर्ष
पानी सिर्फ एक संसाधन नहीं, बल्कि जीवन रेखा है। पंजाब और हरियाणा जैसे कृषि आधारित राज्यों के लिए यह विवाद सिर्फ राजनैतिक बहस नहीं, बल्कि किसानों और आम जनता के अस्तित्व का सवाल है। समाधान राजनीतिक इच्छाशक्ति, वैज्ञानिक जल प्रबंधन और केंद्र के दृढ़ हस्तक्षेप से ही संभव है। वरना आने वाले वर्षों में ये जल विवाद और अधिक गहरा हो सकता है।
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