‘श्री अकाल तख्त साहिब की आवाज को कमजोर और बेबस न बनाएं’..बलवंत राजोआना की जत्थेदार गड़गज को चिट्ठी
Babushahi Bureau
पटियाला/अमृतसर, 19 दिसंबर: पंजाब के पूर्व मुख्यमंत्री बेअंत सिंह हत्याकांड के दोषी बलवंत सिंह राजोआना (Balwant Singh Rajoana) ने जेल से श्री अकाल तख्त साहिब के जत्थेदार कुलदीप सिंह गड़गड़ को एक पत्र लिखा है। राजोआना ने जत्थेदार द्वारा सिख सांसदों को 'वीर बाल दिवस' का नाम बदलने के लिए पत्र लिखने पर कड़ा ऐतराज जताया है। उनका कहना है कि तख्त की मर्यादा सर्वोच्च है और सांसदों से गुहार लगाना इसकी अहमियत को कम करने जैसा है, क्योंकि अकाल तख्त की आवाज किसी संसद की मोहताज नहीं है।
'इतिहास का काला दस्तावेज'
अपनी चिट्ठी में राजोआना ने बेहद सख्त शब्दों का इस्तेमाल किया है। उन्होंने लिखा कि जत्थेदार का यह कदम श्री अकाल तख्त साहिब के इतिहास में एक 'काले और कलंकित दस्तावेज' के तौर पर जाना जाएगा। उन्होंने जत्थेदार को नसीहत देते हुए कहा कि यह अकाल पुरख का तख्त है, जिसकी आवाज सिर्फ देश की संसद (Parliament) या हुक्मरानों तक ही नहीं, बल्कि पूरी दुनिया में गूंजती है।
उन्होंने अपील की है कि अपनी मजबूरियों, कमजोरियों या निजी हितों के लिए इस बुलंद आवाज को कमजोर और बेबस न बनाया जाए।
क्या था जत्थेदार का फैसला?
दरअसल, यह पूरा विवाद 8 दिसंबर को शुरू हुआ था, जब श्री अकाल तख्त साहिब के कार्यवाहक जत्थेदार ज्ञानी कुलदीप सिंह गड़गड़ ने लोकसभा और राज्यसभा के 14 सिख सांसदों को एक पत्र भेजा था। इसमें डॉ. अमर सिंह, हरसिमरत कौर बादल (Harsimrat Kaur Badal), हरदीप सिंह पुरी, गुरजीत सिंह औजला और संत बलबीर सिंह सीचेवाल जैसे नाम शामिल थे। जत्थेदार ने इन सांसदों से अपील की थी कि वे केंद्र सरकार (Central Government) द्वारा मनाए जाने वाले 'वीर बाल दिवस' का नाम बदलकर 'साहिबजादे शहादत दिवस' करने का मुद्दा संसद में मजबूती से उठाएं।
सम्मान की लड़ाई
जत्थेदार का तर्क था कि यह केवल नाम बदलने की बात नहीं है, बल्कि यह सिख इतिहास और भावनाओं के सम्मान का सवाल है। हालांकि, राजोआना का मानना है कि अकाल तख्त साहिब एक सर्वोच्च संस्था है और उसे राजनेताओं के जरिए अपनी बात रखने की बजाय, अपने आदेशों का पालन करवाना चाहिए। राजोआना के इस पत्र ने अब पंथक हलकों में एक नई बहस छेड़ दी है।
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