चंडीगढ़ नगर निगम की ऑडिट रिपोर्ट में बड़ा खुलासा: जनता की शिकायतों का कोई रिकॉर्ड नहीं, पारदर्शिता पर उठे सवाल
रमेश गोयत
चंडीगढ़, 4 मई 2025 — नगर निगम चंडीगढ़ की कार्यप्रणाली पर एक बार फिर सवाल उठ खड़े हुए हैं। वर्ष 2022 से 2024 तक की गई ऑडिट रिपोर्ट में चौंकाने वाले खुलासे हुए हैं। रिपोर्ट में स्पष्ट रूप से कहा गया है कि निगम ने इन तीन वर्षों के दौरान जनता द्वारा दर्ज कराई गई शिकायतों और उनके निपटारे का कोई व्यवस्थित रिकॉर्ड नहीं रखा। इससे न केवल निगम की पारदर्शिता पर सवाल उठते हैं, बल्कि जनता की समस्याओं के प्रति उसकी गंभीरता पर भी संदेह होता है।
शिकायतें दर्ज तो होती रहीं, पर ट्रैकिंग और समाधान गायब
ऑडिट रिपोर्ट के मुताबिक, नगर निगम की इंजीनियरिंग विंग को नागरिकों की शिकायतें विभिन्न माध्यमों — ऑनलाइन पोर्टल, ईमेल और डाक — के जरिए मिलती रहीं। ये शिकायतें बाद में संबंधित विभागों जैसे हॉर्टिकल्चर, पब्लिक हेल्थ, बिल्डिंग एंड रोड्स, और इलेक्ट्रिकल विंग को कार्रवाई के लिए भेजी जाती थीं।
लेकिन रिपोर्ट में यह स्पष्ट किया गया है कि इन शिकायतों की संख्या, लंबित मामलों और समाधान की स्थिति का कोई समुचित डेटा नहीं रखा गया। यानी यह पता ही नहीं चल पाता कि कितनी शिकायतें आईं, कितनी लंबित रहीं और कितनों का समाधान हुआ।
जवाबदेही और पारदर्शिता पर बड़ा प्रश्नचिह्न
यह स्थिति प्रशासनिक लापरवाही को उजागर करती है और जनता के बीच प्रशासनिक जवाबदेही को लेकर गंभीर सवाल पैदा करती है। नागरिकों की शिकायतों को सुनना और उनका समाधान करना किसी भी लोकतांत्रिक व्यवस्था की बुनियाद होती है, लेकिन चंडीगढ़ नगर निगम की यह रिपोर्ट बताती है कि यहां इस दिशा में गंभीर खामियां हैं।
नगर निगम के हालिया ऑडिट में हुआ खुलासा
समाजसेवी और आरटीआई एक्टिविस्ट आरके गर्ग ने चंडीगढ़ नगर निगम के हालिया ऑडिट में किए गए महत्वपूर्ण खुलासों का खुलासा किया है। ऑडिट रिपोर्ट ने नगर निगम की कार्यप्रणाली पर गंभीर सवाल उठाए हैं, जिसमें सबसे बड़ा मामला है — शिकायतों के निपटारे के लिए कोई प्रभावी तंत्र का न होना और स्टॉक रजिस्टर का अभाव।
ऑडिट रिपोर्ट की प्रमुख बातें
रिपोर्ट के अनुसार, नगर निगम के मुख्य अभियंता को नागरिकों की शिकायतों का निपटारा करना जिम्मेदारी होती है। शिकायतें ऑनलाइन पोर्टल, ईमेल, और डाक के माध्यम से आती हैं, जिन्हें संबंधित विभागों जैसे हॉर्टिकल्चर, पब्लिक हेल्थ, बिल्डिंग एंड रोड्स, और इलेक्ट्रिकल विंग को अग्रेषित किया जाता है। हर शिकायत के साथ एक एक्शन-टेकन रिपोर्ट की उम्मीद की जाती है।
शिकायतों के निपटारे का रिकॉर्ड नहीं रखा गया
ऑडिट में पाया गया कि नगर निगम के मुख्य अभियंता कार्यालय में शिकायतों के निपटारे का कोई समुचित रिकॉर्ड नहीं रखा गया था। इसका मतलब यह था कि कुल प्राप्त शिकायतों की संख्या, लंबित शिकायतें, और समाधान की स्थिति का कोई सही आंकड़ा मौजूद नहीं था। इसके अलावा, कोई कंट्रोल रजिस्टर या प्रणालीबद्ध ट्रैकिंग तंत्र भी नहीं था, जिससे शिकायतों का निपटारा ट्रैक किया जा सके।
इस स्थिति के कारण यह भी असंभव हो गया कि यह पता किया जा सके कि कितनी शिकायतें संबंधित विभागों को भेजी गईं और कितनी लंबित हैं। ऑडिट में इस लापरवाही को उजागर करने के बाद जब विभाग से स्पष्टीकरण मांगा गया, तो अभी तक कोई उत्तर नहीं मिला है और विभाग की ओर से जवाब का इंतजार किया जा रहा है।
स्टॉक रजिस्टर का रखरखाव न होना
दूसरी महत्वपूर्ण खामी जो रिपोर्ट में सामने आई, वह है स्टॉक रजिस्टर का अभाव। रिपोर्ट के अनुसार, जनरल फाइनेंशियल रूल्स 2017 के नियम 211 के तहत नगर निगम को स्थायी संपत्ति जैसे यंत्र, मशीनरी, उपकरण, फर्नीचर और फिक्स्चर का अलग से लेखा रखना चाहिए था, लेकिन ऐसा नहीं किया गया। इसके कारण निगम के द्वारा खर्च किए गए संसाधनों और उनकी स्थिति का कोई रिकॉर्ड नहीं था।
समाजसेवियों और नागरिकों की प्रतिक्रिया
इस खुलासे के बाद, समाजसेवी आरके गर्ग ने सरकार से इस गंभीर मुद्दे की जांच की मांग की है। उनका कहना है, "नगर निगम की यह लापरवाही नागरिकों के अधिकारों का उल्लंघन है। जब शिकायतों का सही तरीके से समाधान नहीं होगा, तो नागरिकों की समस्याओं का समाधान कैसे होगा?"
इसके अलावा, कई पार्षदों और शहरी नियोजन विशेषज्ञों ने भी इस मुद्दे को उठाया है और नगर निगम की कार्यप्रणाली में सुधार की आवश्यकता पर जोर दिया है। पार्षदों का कहना है कि यदि इस प्रकार की लापरवाही बनी रही, तो नगर निगम का कार्यान्वयन पारदर्शिता और जवाबदेही के मानकों पर खरा नहीं उतर पाएगा।
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