चंडीगढ़ एसडीएम कार्यालय में "वायलेशन" का खेल: नोटिस, डर और सेटिंग का चक्रव्यूह;
मामले से जुड़े जेई की भी "मजबूत सेटिंग
जांच की ज़द में बिल्डिंग ब्रांच, नोटिस से लेकर डील तक सब सवालों के घेरे में
रमेश गोयत
चंडीगढ़, 8 जुलाई 2025:। चंडीगढ़ एसडीएम कार्यालय के बिल्डिंग ब्रांच में इन दिनों वायलेशन नोटिस के नाम पर चल रहे "खेल" की चर्चा हर गली-मोहल्ले और सरकारी गलियारों में है। सेक्टर-43 के एक चर्चित होटल में हुए कथित वायलेशन और उसके बाद "डील" को लेकर उठे सवालों ने पूरे सिस्टम की साख पर सवाल खड़े कर दिए हैं।
पहले वायलेशन का नोटिस, फिर डर, फिर डील:
बिल्डिंग ब्रांच में यह सिलसिला आम हो चला है—पहले किसी भवन या निर्माण पर नियम उल्लंघन के नाम पर नोटिस जारी किया जाता है। फिर "तोड़फोड़" की कार्रवाई का डर दिखाकर संबंधित व्यक्ति को मानसिक दबाव में लाया जाता है और अंततः अंदरखाने "सेटिंग" के जरिए मामला निपटा दिया जाता है।
सूत्रों के अनुसार, यह गंभीर जांच का विषय है कि: वायलेशन नोटिस कौन और किस स्तर पर जारी कर रहा है?
उल्लंघन का जुर्माना किस आधार पर तय होता है?
नोटिस रद्द करने या कार्रवाई रोकने की "डील" किस स्तर पर और किन लोगों की मिलीभगत से होती है?
दो साल में कितने नोटिस, कितनी कार्रवाई?
प्रश्न उठता है कि बीते दो वर्षों में कितने वायलेशन नोटिस जारी हुए?
इनमें से कितनों पर वास्तविक कार्रवाई हुई?
कितने नोटिस वापस ले लिए गए या "कैंसिल" कर दिए गए?
और सबसे बड़ा सवाल—वायलेशन के नाम पर सरकारी खजाने में कितनी राशि जमा हुई और बाकी कहां गई?
सेक्टर 43 के होटल में कितने में हुई डील?
सेक्टर 43 के एक बड़े होटल पर वायलेशन को लेकर उठा विवाद अब तक शांत नहीं हुआ है। अंदरखाने चर्चाएं हैं कि लाखों रुपये में "डील" हुई, पर सवाल यह है कि आखिर किसने यह डील करवाई? और क्या इस मामले में किसी बड़े अधिकारी की भूमिका रही?
बिपिन बग्गा रिश्वत केस—इस खेल की एक परत उजागर
इसी तरह के एक मामले में, 27 अप्रैल 2024 को बिल्डिंग ब्रांच के हेड ड्राफ्ट्समैन बिपिन बग्गा को विजिलेंस ने ₹15,000 रिश्वत लेते हुए रंगे हाथों गिरफ्तार किया था। आरोप था कि वह निरीक्षण और वायलेशन क्लियरेंस के नाम पर रिश्वत मांग रहा था।
इस गिरफ्तारी के बाद कुछ कनिष्ठ अभियंताओं को बिल्डिंग ब्रांच से इंजीनियरिंग विंग में भेजा गया था। मगर मामले से जुड़े जेई की "मजबूत सेटिंग" की बदौलत मात्र एक साल में ही वह दोबारा उसी सीट पर— एसडीओ बिल्डिंग ब्रांच में वही जेई लौट आए, जबकि चंडीगढ़ प्रशासन के इंजीनियरिंग विंग में सैकड़ों योग्य जेई मौजूद हैं। यह वापसी भी अब सवालों के घेरे में है।
कब होगी निष्पक्ष जांच?
इन तमाम घटनाओं और आरोपों ने यह स्पष्ट कर दिया है कि वायलेशन नोटिस, कार्रवाई और डील—ये तीनों एक सुनियोजित "चक्र" में फंसे हुए हैं। अब जरूरत है एक निष्पक्ष और पारदर्शी जांच की, जिससे यह पता चल सके कि किसकी जेब में नोटिस की रकम जाती है और कौन हैं इस पूरे खेल के असली खिलाड़ी।
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