चंडीगढ़: प्रॉपर्टी टैक्स बिलों को लेकर जनता परेशान, समाजसेवी आर.के. गर्ग ने एमसी पर उठाए सवाल
रमेश गोयत
चंडीगढ़, 5 मई: चंडीगढ़ नगर निगम द्वारा प्रॉपर्टी टैक्स में अचानक की गई बढ़ोतरी और उसके बाद की प्रक्रिया को लेकर समाजसेवी एवं आरटीआई एक्टिविस्ट आर. के. गर्ग ने प्रशासन और एमसी पर कड़ा हमला बोला है। उन्होंने कहा कि "चाहे नगर निगम हो या प्रशासन, आम लोगों को परेशान करने का कोई भी मौका वे नहीं छोड़ते।"
गर्ग ने बताया कि पहले प्रॉपर्टी टैक्स को तीन गुना कर दिया गया था, जिस पर भारी विरोध के बाद इसे दो गुना कर दिया गया और इस पर नोटिफिकेशन भी जारी हो चुकी है। साथ ही 'सम्पर्क' ऐप पर भी यह सुधार अपडेट हो गया है। लेकिन अब नई परेशानी यह सामने आ रही है कि 5 मई तक शहर के अधिकांश नागरिकों को पुराने यानी तीन गुना दर वाले बिल ही थमाए जा रहे हैं।
उन्होंने कहा कि "हर कोई 'सम्पर्क' ऐप का इस्तेमाल नहीं करता। बहुत से बुजुर्ग और तकनीक से दूर रहने वाले नागरिक अब इस बात को लेकर बेहद परेशान हैं कि उन्हें मिले बिलों का भुगतान करें या नहीं।"
गर्ग ने बताया कि उन्हें इस मुद्दे को लेकर दो दर्जन से अधिक कॉल्स आ चुकी हैं। “लोग पूछते हैं कि बिल आया है, पे करना है कि नहीं? हम भी हर किसी को समझा-समझा कर थक गए हैं,” उन्होंने कहा।
प्रशासन को स्पष्टता लाने की मांग
आर. के. गर्ग ने नगर निगम से मांग की है कि वह एक सार्वजनिक नोटिस जारी करे, जिसमें साफ बताया जाए कि पुराने बिल (तीन गुना दर वाले) अमान्य हैं और नागरिकों को इनका भुगतान नहीं करना है। इसके बजाय, दो गुना दर वाले नए बिल जल्द ही अलग से भेजे जाएंगे।
रिबेट की तारीख बढ़ाने की मांग
एक और बड़ी समस्या की ओर इशारा करते हुए गर्ग ने कहा कि अभी तक केवल तीन गुना वाले बिल ही लोगों तक पहुंचे हैं, जबकि 31 मई तक टैक्स भुगतान करने पर रिबेट का प्रावधान है। “जब तक नए बिल लोगों तक नहीं पहुंचेंगे, वे भुगतान कैसे करेंगे?” उन्होंने सवाल किया।
इसी के तहत गर्ग ने यह मांग रखी है कि रिबेट की अंतिम तिथि 31 मई से बढ़ाकर 30 जून की जाए, ताकि सभी नागरिकों को समुचित समय मिल सके और किसी भी प्रकार की अनावश्यक वित्तीय या मानसिक परेशानी से बचा जा सके।
जहाँ एक ओर प्रशासन टैक्स वसूली को लेकर सख्त रवैया अपना रहा है, वहीं दूसरी ओर प्रक्रिया में पारदर्शिता और स्पष्टता की भारी कमी देखी जा रही है। समाजसेवी आर. के. गर्ग की यह अपील आने वाले दिनों में नगर निगम को अपने रुख पर पुनर्विचार करने को मजबूर कर सकती है।
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