50 साल बाद मलोट की टेलों तक पहुंचा नहरी पानी, पंजाब की मान सरकार ने किसानों के सपने किए सच – डॉ. बलजीत कौर*
*मलोट के गांवों की हक़ी पानी की ज़रूरत हुई पूरी*
चंडीगढ़, 5 मई:
बी.बी.एम.बी द्वारा अतिरिक्त पानी छोड़ने के मुद्दे पर पंजाब सरकार द्वारा बुलाए गए विशेष सत्र के दौरान पंजाब की कैबिनेट मंत्री डॉ. बलजीत कौर ने मुख्यमंत्री स. भगवंत सिंह मान के नेतृत्व वाली पंजाब सरकार द्वारा उठाए गए कदम की सराहना करते हुए कहा कि यह केवल एक प्रशासनिक फैसला नहीं, बल्कि पंजाब के पानी अधिकार और किसानों के हक के लिए एक ऐतिहासिक कदम है।
डॉ. बलजीत कौर ने कहा कि भारत की आजादी के बाद पंजाब के साथ हमेशा पानी बंटवारे में बेइंसाफी हुई है। नाजायज संधियों और कानूनों के माध्यम से पंजाब के अधिकारों की लूट की गई। उन्होंने कहा कि यह न सिर्फ केंद्र सरकार की भूमिका रही, बल्कि उस समय की पंजाब सरकारों की भी इसमें भागीदारी थी।
मलोट हलके का उदाहरण देते हुए उन्होंने बताया कि 50 सालों से ज्यादा समय से टेलों पर बैठे गांवों के लोग पानी के लिए तरस रहे थे। गांव बलमगढ़, रामगढ़, राम नगर, तरखानवाला आदि गांवों की हालत बताते हुए कहा कि यहां किसान कर्जों के नीचे दबकर दिहाड़ियां करने के लिए मजबूर हो गए। घरों में रिश्ते नहीं हुए, पिता-दादाओं की जिंदगी भी इन दुखों में कटी।
उन्होंने कहा कि यह वो गांव हैं, जिन्हें कई बार मुख्यमंत्री बने अकाली और कांग्रेसी ने गोद लिया था, लेकिन हकीकत में कभी इनकी सुनवाई नहीं हुई। डॉ. बलजीत कौर ने बताया कि एक दिन ये बुजुर्गों को लेकर मुख्यमंत्री स. भगवंत सिंह मान के पास जालंधर गईं। वहां मुख्यमंत्री ने लोगों की दर्द भरी बात सुनी और तुरंत काम शुरू करवाया।
उन्होंने कहा कि आज मुख्यमंत्री भगवंत सिंह मान सरकार ने वो हिम्मत की जो किसी सरकार ने नहीं की थी। जब पानी की बात आई, जब गांवों की आवाजें सुनने की बात आई, तो ये भगवंत मान साहब ही थे, जिन्होंने कहा कि "पहले पानी पहुंचेगा फिर चुनाव निशान।" उन्होंने कहा कि पहले लोग जीवनदायी जिएं फिर राजनीति है।
उन्होंने कहा कि आज ये मलोट हलका खुशकिस्मत है कि मोघों की मरम्मत हो रही है और नहरों का पानी खेतों की टेलों तक पहुंचाया जा रहा है। इसके लिए उन्होंने मुख्यमंत्री स. भगवंत सिंह मान और जल संसाधन मंत्री श्री बरिंदर गोयल का विशेष धन्यवाद किया।
अंत में डॉ. बलजीत कौर ने मीडिया वाहकों से विनती की कि ये केवल कहानी नहीं, आपबीती है, जो इन बुजुर्गों की जुबानी सुनी जाए। क्योंकि जो दुख-दर्द इन लोगों ने 50-50 साल सहा है, उसका जवाब भी इस सिस्टम से मांगना पड़ेगा।
kk
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