चंडीगढ़ यूटी में डेपुटेशन पर आए अधिकारियों का चंडीगढ से हो रहा मोह भंग
पोस्टिंग और कार्यप्रणाली को लेकर बढ़ा असंतोष, एक HCS महिला अधिकारी ने दी वापस जाने की अर्जी
रमेश गोयत
चंडीगढ़, 6 मई –केंद्र शासित प्रदेश चंडीगढ़, जिसे देश का सबसे योजनाबद्ध और सुव्यवस्थित प्रशासनिक मॉडल माना जाता है, इन दिनों अंदरूनी रूप से गंभीर प्रशासनिक असंतुलन का सामना कर रहा है। खासकर उन अधिकारियों में भारी असंतोष है जो हरियाणा और पंजाब से डेपुटेशन पर यहां कार्यरत हैं। केंद्र शासित प्रदेश चंडीगढ़ में डेपुटेशन पर आए हरियाणा और पंजाब काडर के अधिकारियों का मोह अब टूटता नजर आ रहा है। सूत्रों के अनुसार, हाल ही में हरियाणा काडर की एक महिला एचसीएस अधिकारी ने चंडीगढ़ प्रशासन को पत्र लिखकर अपने मूल काडर में वापसी की अनुमति मांगी है। इसकी मुख्य वजह है प्रशासन में जारी पदस्थापन को लेकर असंतोष और कार्य संस्कृति में तालमेल की कमी। उपरोक्त महिला अधिकारी ने पिछले साल ही हरियाणा से चंडीगढ यूटी में ज्वाइन किया था।
प्रशासनिक गलियारों में चर्चा है कि चंडीगढ़ में डेपुटेशन पर आए सीनियर अधिकारियों को जूनियर अधिकारियों के अधीन काम करने के लिए मजबूर किया जा रहा है। इससे वरिष्ठता और अनुभव की अनदेखी हो रही है। न केवल अधिकारियों का मनोबल गिरा है, बल्कि कामकाज में भी असहजता देखने को मिल रही है। इसी प्रकार दूसरे अन्य उच्च पदों पर भी यही कार्य देखने को मिल रहा है।
यह पहला मौका नहीं है जब किसी अधिकारी ने बीच में ही चंडीगढ़ का डेपुटेशन छोड़ा हो। पिछले कुछ वर्षों में भी कई एचसीएस और पीसीएस अधिकारी असंतोष के चलते अपनी प्रतिनियुक्ति अधूरी छोड़कर वापस चले गए थे।
हालात यह हैं कि कई अधिकारी अंदर ही अंदर अपने काडर में लौटने की तैयारी कर रहे हैं। उनका आरोप है कि चंडीगढ़ प्रशासन में केवल चहेते अधिकारियों को ही "मलाईदार" पदों पर बैठाया जा रहा है, जबकि बाकी अधिकारियों को महत्वहीन विभागों में डाल दिया जाता है।
वरिष्ठता को किया जा रहा नजरअंदाज
जानकारी के मुताबिक, डेपुटेशन पर आए कई वरिष्ठ एचसीएस और पीसीएस अधिकारियों को ऐसे विभागों में तैनात कर दिया गया है जहां पहले से कार्यरत जूनियर अधिकारी उच्च पदों पर हैं। इससे न केवल वरिष्ठ अधिकारियों की गरिमा को ठेस पहुंची है, बल्कि प्रशासनिक निर्णय लेने की प्रक्रिया भी प्रभावित हो रही है।
एक वरिष्ठ अधिकारी ने नाम न छापने की शर्त पर बताया,
“मुझे एक ऐसे अधिकारी के अधीन काम करने के लिए कहा गया है, जो मेरी सेवा से सात साल जूनियर है। ऐसे में न तो काम में मन लग रहा है और न ही निर्णय लेने की स्वतंत्रता है। जब तक सिस्टम में पारदर्शिता नहीं आएगी, अच्छे अधिकारी टिक नहीं पाएंगे।”
‘चहेते अधिकारियों’ को ही मिल रही हैं महत्वपूर्ण पोस्टिंग
प्रशासन के अंदरूनी हलकों में यह भी आरोप लग रहे हैं कि कुछ चुनिंदा और प्रभावशाली अधिकारियों को ही ‘मलाईदार’ और प्रभावशाली विभागों की जिम्मेदारी दी जा रही है, जबकि डेपुटेशन पर आए बाकी अधिकारी महत्वहीन विभागों में डाल दिए जाते हैं।
एक अन्य अधिकारी का कहना है,
“यहां रिश्तों की राजनीति चल रही है। जिन्हें ऊपर का संरक्षण मिला हुआ है, उन्हें अच्छी पोस्टिंग मिल जाती है, चाहे वे जूनियर हों या अनुभवहीन। बाकी अधिकारी व्यवस्था से जूझते रह जाते हैं।”
पहले भी हो चुके हैं डेपुटेशन अधूरे
यह पहला मामला नहीं है जब किसी अधिकारी ने डेपुटेशन के दौरान असंतुष्ट होकर वापसी की मांग की हो। बीते कुछ वर्षों में भी कई एचसीएस और पीसीएस अधिकारी प्रतिनियुक्ति अधूरी छोड़कर अपने मूल राज्य लौट चुके हैं।
स्थिति गंभीर, प्रशासन बना मौन दर्शक
सबसे चिंताजनक बात यह है कि प्रशासन इस स्थिति को लेकर पूरी तरह से मौन है। न तो किसी अधिकारी की शिकायतों का संज्ञान लिया जा रहा है और न ही किसी तरह की स्पष्ट नीति अपनाई गई है जिससे अधिकारियों के मन में विश्वास कायम हो सके।
आगामी समय में हो सकती है अधिकारियों की भारी कमी
यदि यही स्थिति बनी रही, तो आने वाले समय में चंडीगढ़ प्रशासन को योग्य और अनुभवी अधिकारियों की भारी कमी से जूझना पड़ सकता है। वर्तमान में कई पीसीएस और एचसीएस अधिकारी अपने-अपने राज्य सरकारों से संपर्क साध रहे हैं और वापसी की संभावनाएं तलाश रहे हैं।
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